Janrao premdas khandare
आपल्या भोवतालचे जग पूर्णपणे बदललंय. आज आपल्याभोवती आहे खाजगीकरण, उदारीकरण, जागतिकीकरण. या तीनही शब्दांचा खरा अर्थ आहे स्पर्धा! आपल्या भोवताली आज सर्वत्र आहे एक जीवघेणी स्पर्धा. या स्पर्धेत जो टिकेल तो तरेल.
यापूर्वी आपल्या देशात काय होते हे स्वामी विवेकानंदांनी सांगितलंय. ते म्हणालेत, ‘‘आमच्या जातिव्यवस्थेत अनेक वाईट गोष्टी आहेत. पण या जातिव्यवस्थेने नकळत एक फार मोठी गोष्ट केली. जाती म्हणजे विस्तारित परिवार होता आणि व्यवसाय जातींसाठी राखीव होते. म्हणजे दोन वाण्यांची दुकाने समोरासमोर असली तरी ते एकाच परिवारातले होते. त्या दुकानांची आपापसांत स्पर्धा नव्हती तर सहकार्य होते. त्यातून एका दुकानदाराचे काही बरे-वाईट झाले तर त्याचे दुकान हडप न करता त्याच्या मुलाला दुकान चालवायला सक्षम बनवणे ही दुसऱ्या दुकानदाराची जबाबदारी होती. स्पर्धा थांबल्यामुळे विकासदर शून्यावर आला. मात्र त्याच वेळी मानसिक आनंदाचा, मानसिक समाधानाचा क्रमांक फार वर गेला.’’
आज ते जग बदललंय. आज प्रत्येक दिवशी तुम्ही स्पर्धेत उतरताय आणि स्पर्धेत टिकायचे असेल तर मंत्र आहे, ‘थांबला तो संपला’! या मंत्राचा खरा वैज्ञानिक अर्थ आहे, तुम्हाला थांबून संपायचे नसेल तर प्रश्नांना उत्तरे विचारुन थांबू नका. उत्तरांना प्रश्न विचारत पुढे जा.
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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 04:53, 29 अक्टूबर 2014 (UTC)
Lord Budhha.
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Janrao premdas khandare (
मनुष्य के जीवन में वास्तविक सम्पदा क्या होती है ? क्या धन, क्या यश, क्या पद और क्या नाम ? नहीं, यह सब कुछ भी नहीं होता है। वास्तविक सम्पदा होती है, मनुष्य का चरित्र। चरित्र बड़ा व्यापक शब्द है, उसके भीतर अनेक गुणों का समावेश होता है, जैसे-दया, क्षमा, परोपकार, अहिंसा, समता, मातृ भावना और पर दुःख कातरता आदि। मनुष्य अपने इस गुणों से लोक से उठकर परलोक में भी पहुंच जाता है। लोग उसे देवता कहने लगते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में कुछ ऐसे मनुष्यों के जीवन के चरित्र हैं, जो अपने चरित्रों से ही देवता के समान वन्दनीय बन गए हैं। इन चरित्रों के पठन-पाठन से भले ही कोई देवता न बने, पर उसके मन में चरित्र को ऊँचा उठाने की बात तो अवश्य पैदा होगी। लोग अपने चरित्र को ऊपर उठाएँ-इसी उद्देश्य से इस पुस्तक को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जा रहा है। हमें पूर्ण विश्वास है कि इस पुस्तक से तरुण समाज को प्रेरणा मिलेगी।