मैत्रक राजवंश
मैत्रक राजवंश ने ४७५ ई से ७६७ ई के मध्य गुजरात पर शासन किया। इस वंश का संस्थापक सेनापति भुटार्क था जो गुप्त साम्राज्य के अधीन सौराष्ट्र उपखण्ड का राज्यपाल था।
मैत्रक साम्राज्य |
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राजधानी | वल्लभी | |
धर्म | हिंदू | |
सरकार | राज-तंत्र |
यह भी एक राजवंश था जो कि भड़ौच के राजवंश का समकालिक था कादंबरी (बाणभट्ट) के अनुसार हर्षवर्धन की श्री नर्मदा के कछारों में वल्लभी पर आक्रमण के दौरान वातापी के चालुक्य, भडौच के नरपति व मैत्रक वंश से जबरदस्त निर्णायक जंग हुई और हर्षवर्धन का विजयरथ गुजरात देश में थम गया। महान इतिहासकार भगवान जी लाल इंद्र ने परम भट्टारक को वल्लभी का महान शासक कहा है। एवं साथ में यह भी स्पष्ट किया है कि ये तीनों राजवंश एक दूसरे के साथ आपसी रिस्ते में भी थे इसीलिए जातिय समानता होने से ये एकजुट होकर हर्षवर्धन के खिलाफ एकजुट हुए थे क्योंकि वर्धन वंश का मैत्रक से पीढ़ी दर पीढ़ी रंजिश रही थी बाणभट्ट के एवं चीनी यात्री ह्वेंग सांग ने भी अपनी पुस्तक में भीनमाल के नृपति का हवाला देते हुए कहा है कि अरब आक्रांताओं ने सौराष्ट्र, कच्छ को को कई बार लूटने की नाकाम कोशिश की पर ये राज्य एकजुट रहे और अरबों को हर बार खदेड़ कर भगा दिया।।
वल्लभीपुर का मैत्रक राजवंश नरेश शिलादित्य मैत्रक ( तृतीय , काल लगभग 720 ई) मैत्रक वंश भारत का प्राचीन वंश है, जिसकी स्थापना गुप्त वंश के एक सेनापति भट्टारक द्वारा 475 ई० में की गयी थी। वल्लभी इनके राज्य की राजधानी थी। मैत्रक एक वंश का नाम है । मैत्रक का संस्कृत में अर्थ सूर्य होता है, इतिहासकारो के अनुसार मैत्रक मिहिर से बना शब्द है व जिनके पूर्वज कुषाण थे। व कुषाण साम्राज्य के पतन के बाद गुप्तो के अधीन राज्य किया। मैत्रको ने गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद स्वतन्त्र सत्ता प्राप्त की। सम्राट हर्षवर्धन की पुत्री का विवाह नरेश धारासेन मैत्रक से हुआ था। नरेश शिलादित्य मैत्रक इस वंश के सबसे प्रतापी व पराक्रमी शासक हुए । शिलादित्य ने गुजरात से लेकर दक्षिण तक राज्य का विस्तार किया। इनके समय में बेहद प्रबल अरब आक्रमण हुए। मगर मैत्रक सैना के संख्या में कम होने के बावजूद भी अरबो की विशाल व संसाधनो से परिपूर्ण सेना को पराजित कर जीत का डंका बजा देते थे।
सोमनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मंदिर है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया। मैत्रक वंश भारत का प्राचीन वंश है, जिसकी स्थापना गुप्त वंश के एक सेनापति भट्टारक द्वारा 475 ई० में की गयी थी। वल्लभी इनके राज्य की राजधानी थी . इसके बाद प्रतिहार साम्राज्य के संस्थापक नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण किया। इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। 8वीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने सोमनाथ मंदिर को नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन १०२४ में कुछ ५,००० साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया। लेकिन 14वी सदी के बाद इतिहास मे मैत्रको का नाम ऐसे दबाया गया पूज्य ब्राह्मण ऋषि मुनियो द्वारा कि सोमनाथ मंदिर को मैत्रक ने दूसरी बार बनवाया था, पहली बार इस मंदिर को चंद्रदेवता ने बनवाया था। इन काल्पनिक बातो से मैत्रक वंश के शोर्य और कला का श्रेय एक गृह को देने का प्रयास किया जाता है जिसे हम आज भी रात को आकाश मे चमकता देखते। इतिहासकार इन काल्पनिक बातो को नकारदेते है क्या इन बातो का क्या कोई तर्क है? चंदा मामा धरती पर उतर कर गोल ग्रह से मनुष्य के रूप मे कैसे आए? मैत्रको ने गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद स्वतन्त्र सत्ता प्राप्त की। सम्राट हर्षवर्धन की पुत्री का विवाह धारासेन मैत्रक से हुआ था। शिलादित्य मैत्रक (तृतीय ,काल लगभग 720 ई) इस वंश के सबसे प्रतापी व पराक्रमी शासक थे।
नरेश शिलादित्य मैत्रक इस वंश के सबसे प्रतापी व पराक्रमी शासक हुए । शिलादित्य ने गुजरात से लेकर दक्षिण तक राज्य का विस्तार किया।
सन्दर्भ
संपादित करेंbook Maitrak by Jesse Russel, Ronald Cohn.
- बचे हुए मन्दिर
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फिरंगी देवल (कलसर)
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मग्देरु, द्रशनवेल, ओखमण्डल
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Ruined temples at Sonkansari, Ghumli
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Temple at Sonkansari, Ghumli
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