गोप
गोप (अंग्रेज़ी: Gop or Gopa) भारत और नेपाल में यादव (अहीर) जाति का पर्याय है।[1][2] आमतौर पर कुछ भारतीय राज्य जैसे कि बिहार, झारखंड आदि में यादव (अहीर) जाति द्वारा गोप उपनाम के तौर लगाया जाता है,[3][4] हालांकि जाति के संदर्भ में गोप शब्द का प्रयोग भारत के विभिन्न राज्यों में किया जाता है।[5]
गोप | |
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धर्म | वैष्णव धर्म (भागवत धर्म) |
देश | भारत और नेपाल |
उत्पत्ति और इतिहास
संपादित करेंमहाभारत तथा अन्य प्रामाणिक ग्रंथों में तीन शब्दों-गोप, अहीर तथा यादव का समानार्थी रूप से प्रयोग किया गया है।[6] अहीर, गोप और यादव एक ही थे; इस प्रकार, कृष्ण एक अहीर थे और साथ ही, एक गोप और एक यादव भी थे। महाभारत में तीनों शब्दों-गोप, यादव और अहीर-का समानार्थक शब्दों के रूप में उपयोग किया गया है। और ऐसा ही कई अन्य लोगों ने भी किया है, जैसे बुद्धस्वामी (बृहत्कथाश्लोकसंग्रहः), जयदेव (गीतागोविंद) और अमरसिंह (अमरकोश)।[7]
बुधस्वामिन ने अपने बृहत्कथाश्लोकसंग्रहः में एक आभीर की कहानी का उल्लेख किया है जो घोष में रहता था जहां आभीर और गोप दोनों शब्दों का इस्तेमाल एक ही लोगों के लिए किया गया है। ब्रह्मा ने विशेष रूप से कृष्ण के प्रसिद्ध शत्रु कालयवन की माँ का उल्लेख करते हुए गोपाली और घोषकन्या शब्दों का उपयोग किया, जबकि उसी पुराण में एक अन्य स्थान पर गोपालों को घोष में रहने वाले के रूप में वर्णित किया गया है। गोप बुद्ध की पत्नी का भी नाम था, और सुजाता एक यादव राजा की बेटी थी, जो बुद्ध को मिठाई परोसती थी, जो लंबे समय से उपवास पर थे और मिठाई खाने के बाद बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।[8]
ऋग्वेद के श्लोक 1.22.18 में विष्णु को गोप कहा गया है, जिसका अर्थ है "पशुओं का रक्षक" या केवल "रक्षक", यह कृष्ण का सीधा संदर्भ भी हो सकता है।[9][10][11]
ऋग्वेद में, राजा यदु (यादवों के पूर्वज) का गोप के रूप में उल्लेख किया गया है, यहाँ गोप शब्द का इस्तेमाल राजा या जनजाति के प्रमुख को संदर्भित करने के लिए किया गया होगा[12][13] क्योंकि गोप या गोपति भी उस काल में राजा को दिए जाने वाली पदवी भी थी।[14][15][16][17]
“ | उत् दासा परिविषे स्मत्दृष्टी गोपर् ईणसा यदुस्तुर्वशुश्च मामहे (ऋग्वेद, 10/62/10)[18] | ” |
इस पंक्ति से स्पष्ट होता है कि महाराज यदु एवं उनके भाई तुर्वशु गोप थे जो गायों से घिरे हुए रहते थे।[19][20]
“ | जातिः परा न विदिता भुवि गोपजातेः (गर्ग संहिता) | ” |
अर्थात - गोप जाति से बढ़कर इस भूतल पर दूसरी कोई जाति नही।[21][22]
भागवत पुराण के अनुसार महाभारत में वर्णित गोप देवताओं के पुन: अवतार हैं, वे कृष्ण के दूत हैं, वे गव्य या गायों के उत्पादों के शौकीन हैं, कृष्ण और गोपों के बीच एक वस्तु और उसकी छवि के बीच का संबंध है।[23]
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, गोप भगवान कृष्ण के त्वचा के छिद्रों से पैदा हुए हैं और गोपियां देवी राधा के त्वचा के छिद्रों से पैदा हुई हैं।[24]
हरिवंश पुराण के अनुसार गोप एवं यादव एक ही वंश के है, उन्हें गोप या यादव कहा जाता है।[25][26]
महाभारत
संपादित करेंमहाभारत काल के यादवों को वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी के रूप में जाना जाता था, श्री कृष्ण इनके नेता थे: वे सभी पेशे से गोप (गौपालक) थे, लेकिन साथ ही उन्होंने कुरुक्षेत्र की लड़ाई में भाग लेते हुए क्षत्रियों की स्थिति धारण की।वर्तमान अहीर भी वैष्णव मत के अनुयायी हैं।[27][28]
महाभारत में अर्जुन और दुर्योधन के बीच हुए एक समझौते के कारण श्रीकृष्ण ने नारायणी सेना के गोपों को कौरवों को दे दिया था।[29][30]
कौरवों के पक्ष में कुरुक्षेत्र युद्ध में, एक बड़ी गोपायण सेना में कई हजारों गोप, पांडवों के खिलाफ, अन्य सेनाओं जैसे गांधार, सौवीर, कलिंग, मद्रास, पांचाल इत्यादि के साथ मिलकर युद्ध लड़ा था।[31]
ये गोप, जिन्हें कृष्ण ने दुर्योधन को उनके समर्थन में लड़ने को कहा था जब वे स्वयं अर्जुन के पक्ष में शामिल हुए थे, वे कोई और नहीं बल्कि स्वयं यादव थे, उन्हें अभीर भी कहा जाता था।[32][33][34] वे दुर्योधन और कौरवों के समर्थन में लड़े थे[35][36] और महाभारत में,[37] अभीर, गोप, गोपाल,[38] और यादव सभी पर्यायवाची हैं।[39][40][41] उन्होंने महाभारत युद्ध के नायक (अर्जुन) को हराया, और जब उन्होंने श्रीकृष्ण के परिवार के सदस्यों की पहचान का खुलासा किया तब उन्हें बख्शा।[42]
गोप जातीय महासभा
संपादित करेंगोप जातीय महासभा का गठन 1911 में बाबू रास बिहारी लाल मंडल द्वारा किया गया था। यह बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के गोप या अहीर जाति का क्षेत्रीय संगठन था।[44][45]
बाद में गोप जाति महासभा और अहीर क्षत्रिय महासभा का विलय कर अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा का गठन किया गया। यादव महासभा का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन 17 से 20 अप्रैल तब 1924 में बिहार के पूर्णिया में आयोजित हुआ था और ज़मींदार राय साहेब बल्लभ दास के साथ राय साहेब स्वयंवर दास मुख्य आयोजक थे।[46]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
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The Mahabharata and other authori-tative works use the three terms-Gopa, Yadava and Ahir synonymously.
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The Yadavas of the Mahabharata period were known to be the followers of Vaisnavism, of which Krsna was the leader: they were gopas (cowherd) by profession, but at the same time they held the status of the Ksatriyas, participating in the battle of Kurukshetra. The present Ahirs are also followers of Vaisnavism.
- ↑ Vaidya, Chintaman Vinayak (2001). Epic India, Or, India as Described in the Mahabharata and the Ramayana. Asian Educational Services, 2001. पृ॰ 423. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120615649.
The fact that the Yadavas were pastoral in their habits is distinctly proved by the fact that Krishna's sister Subhadra when she was taken away by Arjuna is described as having put on the dress of a Gopi or female cowherd. It is impossible to explain this fact unless we believe that the whole tribe was accustomed to use this dress. The freedom with which she and other Yadava women are described as moving on the Raivataka hill in the festivities on that occasion also shows that their social relations were freer and more unhampered than among the other Kshatriyas. Krishna again when he went over to Arjuna's side is said in the Mahabharata to have given in balance for that act an army of Gopas to Duryodhana. The Gopas could have been no other than the Yadavas themselves.
- ↑ Soni, Lok Nath (2000). The Cattle and the Stick: An Ethnographic Profile of the Raut of Chhattisgarh (अंग्रेज़ी में). Anthropological Survey of India, Government of India, Ministry of Tourism and Culture, Department of Culture. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85579-57-3.
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