अरविन्द घोष
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Lodh lodha लोधी राजपूत ठाकुर संसार के प्रथम क्षत्रिय राजपूत hai यह राजपूत है सबसे पहले से और राजपूत रेजिमेंट लोधी राजपूतो की hai
श्री अरविन्द घोष | |
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श्री अरविन्द घोष का सन् १९१६ में लिया गया चित्र। | |
जन्म |
अरविन्द अक्रोध्य घोष 15 अगस्त 1872 कलकत्ता, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु |
5 दिसम्बर 1950 पाण्डिचेरी |
साहित्यिक कार्य | दिव्य जीवन, द मदर, लेटर्स आन् योगा, सावित्री, योग समन्वय, फ्यूचर पोयट्री |
हस्ताक्षर | |
धर्म | हिन्दू |
दर्शन | हिन्दुत्व |
अरविन्द घोष या श्री अरविन्द (बांग्ला: শ্রী অরবিন্দ, जन्म: १८७२, मृत्यु: १९५०) एक योगी एवं दार्शनिक थे। वे १५ अगस्त १८७२ को कलकत्ता में जन्मे थे। इनके पिता एक डाक्टर थे। इन्होंने युवा अवस्था में स्वतन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारी के रूप में भाग लिया, किन्तु बाद में यह एक योगी बन गये और इन्होंने पांडिचेरी में एक आश्रम स्थापित किया। वेद, उपनिषद ग्रन्थों आदि पर टीका लिखी। योग साधना पर मौलिक ग्रन्थ लिखे। उनका पूरे विश्व में दर्शन शास्त्र पर बहुत प्रभाव रहा है और उनकी साधना पद्धति के अनुयायी सब देशों में पाये जाते हैं। यह कवि भी थे और गुरु भी।
प्रारम्भिक शिक्षा
संपादित करेंअरविन्द के पिता डॉक्टर कृष्णधन घोष उन्हें उच्च शिक्षा दिला कर उच्च सरकारी पद दिलाना चाहते थे, अतएव मात्र ७ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने इन्हें इंग्लैण्ड भेज दिया। उन्होंने केवल १८ वर्ष की आयु में ही आई० सी० एस० की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। इसके साथ ही उन्होंने अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, ग्रीक एवं इटैलियन भाषाओँ में भी निपुणता प्राप्त की थी।
युवावस्था
संपादित करेंदेशभक्ति से प्रेरित इस युवा ने जानबूझ कर घुड़सवारी की परीक्षा देने से इनकार कर दिया और राष्ट्र-सेवा करने की ठान ली। इनकी प्रतिभा से बड़ौदा नरेश अत्यधिक प्रभावित थे अत: उन्होंने इन्हें अपनी रियासत में शिक्षा शास्त्री के रूप में नियुक्त कर लिया। बडौदा में ये प्राध्यापक, वाइस प्रिंसिपल, निजी सचिव आदि कार्य योग्यता पूर्वक करते रहे और इस दौरान हजारों छात्रों को चरित्रवान देशभक्त बनाया।[1] 1896 से 1905 तक उन्होंने बड़ौदा रियासत में राजस्व अधिकारी से लेकर बड़ौदा काॅलेज के फ्रेंच अध्यापक और उपाचार्य रहने तक रियासत की सेना में क्रान्तिकारियों को प्रशिक्षण भी दिलाया था। हजारों युवकों को उन्होंने क्रान्ति की दीक्षा दी थी।
वे निजी रुपये-पैसे का हिसाब नहीं रखते थे परन्तु राजस्व विभाग में कार्य करते समय उन्होंने जो विश्व की प्रथम आर्थिक विकास योजना बनायी उसका कार्यान्वयन करके बड़ौदा राज्य देशी रियासतों में अन्यतम बन गया था। महाराजा मुम्बई की वार्षिक औद्योगिक प्रदर्शनी के उद्धाटन हेतु आमन्त्रित किये जाने लगे थे।
लार्ड कर्जन के बंग-भंग की योजना रखने पर सारा देश तिलमिला उठा। बंगाल में इसके विरोध के लिये जब उग्र आन्दोलन हुआ तो अरविन्द घोष ने इसमे सक्रिय रूप से भाग लिया। नेशनल लाॅ कॉलेज की स्थापना में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। मात्र ७५ रुपये मासिक पर इन्होंने वहाँ अध्यापन-कार्य किया। पैसे की जरूरत होने के बावजूद उन्होंने कठिनाई का मार्ग चुना। अरविन्द कलकत्ता आये तो राजा सुबोध मलिक की अट्टालिका में ठहराये गये। पर जन-साधारण को मिलने में संकोच होता था। अत: वे सभी को विस्मित करते हुए 19/8 छक्कू खानसामा गली में आ गये। उन्होंने किशोरगंज (वर्तमान में बंगलादेश में) में स्वदेशी आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। अब वे केवल धोती, कुर्ता और चादर ही पहनते थे। उसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालय से भी अलग होकर अग्निवर्षी पत्रिका बन्दे मातरम् (पत्रिका) का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
ब्रिटिश सरकार इनके क्रन्तिकारी विचारों और कार्यों से अत्यधिक आतंकित थी अत: २ मई १९०८ को चालीस युवकों के साथ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इतिहास में इसे 'अलीपुर षडयन्त्र केस' के नाम से जानते हैं। उन्हें एक वर्ष तक अलीपुर जेल में कैद रखा गया।| अलीपुर जेल में ही उन्हें हिन्दू धर्म एवं हिन्दू-राष्ट्र विषयक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभूति हुई। इस षड़यन्त्र में अरविन्द को शामिल करने के लिये सरकार की ओर से जो गवाह तैयार किया था उसकी एक दिन जेल में ही हत्या कर दी गयी। घोष के पक्ष में प्रसिद्ध बैरिस्टर चितरंजन दास ने मुकदमे की पैरवी की थी। उन्होने अपने प्रबल तर्कों के आधार पर अरविन्द को सारे अभियोगों से मुक्त घोषित करा दिया। इससे सम्बन्धित अदालती फैसले ६ मई १९०९ को जनता के सामने आये। ३० मई १९०९ को उत्तरपाड़ा में एक संवर्धन सभा की गयी वहाँ अरविन्द का एक प्रभावशाली व्याख्यान हुआ जो इतिहास में उत्तरपाड़ा अभिभाषण के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने अपने इस अभिभाषण में धर्म एवं राष्ट्र विषयक कारावास-अनुभूति का विशद विवेचन करते हुए कहा था[2]:।
- जब मुझे आप लोगों के द्वारा आपकी सभा में कुछ कहने के लिए कहा गया तो में आज एक विषय हिन्दू धर्म पर कहूँगा। मुझे नहीं पता कि मैं अपना आशय पूर्ण कर पाउँगा या नहीं। जब में यहाँ बैठा था तो मेरे मन में आया कि मुझे आपसे बात करनी चाहिए। एक शब्द पूरे भारत से कहना चाहिये। यही शब्द मुझसे सबसे पहले जेल में कहा गया और अब यह आपको कहने के लिये मैं जेल से बाहर आया हूँ।
- एक साल हो गया है मुझे यहाँ आए हुए। पिछली बार आया था तो यहाँ राष्ट्रीयता के बड़े-बड़े प्रवर्तक मेरे साथ बैठे थे। यह तो वह सब था जो एकान्त से बाहर आया जिसे ईश्वर ने भेजा था ताकि जेल के एकान्त में वह इश्वर के शब्दों को सुन सके। यह तो वह ईश्वर ही था जिसके कारण आप यहाँ हजारों की संख्या में आये। अब वह बहुत दूर है हजारों मील दूर[3]।
प्रमुख शिष्य
संपादित करेंचम्पकलाल, नलिनि कान्त गुप्त, कैखुसरो दादाभाई सेठना, निरोदबरन, पवित्र, एम पी पण्डित, प्रणब, सतप्रेम, इन्द्र सेन
== अ
रविन्द का दर्शन ==
कृतियाँ
संपादित करें- योगिक साधन
- "वंदे मातरम"
- कारा काहिनी (जेलकथा)
- धर्म ओ जातीयता (धर्म और राष्ट्रीयता)
- अरबिन्देर पत्र (अरविन्द के पत्र)
मुख्य ग्रन्थ हिंदी में
संपादित करें- दिव्य जीवन ISBN 978-81-7058-239-7
- सावित्री (पद्यानुवाद) ISBN 978-93-5210-103-0
- योग-समन्वय ISBN 978-81-7058-183-3
- श्रीअरविन्द अपने विषय में ISBN 978-93-5210-008-8
- माता ISBN 978-81-7058-106-2
- भारतीय संस्कृति के आधार ISBN 978-81-7058-691-3
- वेद-रहस्य ISBN 978-93-5210-067-5
- केन एवं अन्यान्य उपनिषद् ISBN 978-81-7058-858-0
- ईशोपनिषद ISBN 978-81-7058-873-3
- गीता-प्रबंध ISBN 978-93-5210-135-1
सम्पूर्ण संस्करण
संपादित करेंश्री अरविन्द की 125 वीं जयन्ती के अवसर पर, 1997 में श्री अरबिंदो आश्रम ने श्री अरविन्द की सम्पूर्ण कृतियों को 37 भागों में प्रकाशित किया।[4] ये भाग निम्नलिखित हैं-
1. Early Cultural Writings.
2. Collected Poems.
3.-4. Collected Plays and Stories.
5. Translations.
6.-7. Bande Mataram.
8. Karmayogin.
9. Writings in Bengali and Sanskrit.
10.-11. Record of Yoga.
12. Essays Divine and Human.
13. Essays in Philosophy and Yoga.
14. Vedic and Philological Studies.
15. The Secret of the Veda.
16. Hymns to the Mystic Fire.
17. Isha Upanishad.
18. Kena and Other Upanishads.
19. Essays on the Gita.
20. The Renaissance of India with a Defence of Indian Culture.
21.-22. The Life Divine.
23.-24. The Synthesis of Yoga.
25. The Human Cycle – The Ideal of Human Unity – War and Self-Determination.
26. The Future Poetry.
27. Letters on Poetry and Art
28.-31. Letters on Yoga.
32. The Mother with Letters on the Mother.
33-34. Savitri – A Legend and a Symbol.
35. Letters on Himself and the Ashram.
36. Autobiographical Notes and Other Writings of Historical Interest.
37. Reference Volume (unpublished)
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 सितंबर 2011.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 मई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 सितंबर 2011.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 सितंबर 2011.
- ↑ "Shri Arobindo's Writings". मूल से 16 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अगस्त 2019.
इन्हें भी देखें
संपादित करें- सम्पूर्ण शिक्षा (Integral education)
- श्री अरविन्द आश्रम
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंविकिसूक्ति पर अरविन्द घोष से सम्बन्धित उद्धरण हैं। |
विकिमीडिया कॉमन्स पर अरविन्द घोष से सम्बन्धित मीडिया है। |
- श्री अरविन्द - मेरी दृष्टि में (गूगल पुस्तक; लेखक - रामधारी सिंह दिनकर)
- अमर योगी—श्री अरविंद घोष
- श्री अरविन्द घोष
- Publishers of Books by Sri Aurobindo & the Mother
- Sri Aurobindo Ashram, Pondicherry, India
- The Relevance of Aurobindo:Political Life & Teachings - Nadesan Satyendra
- Auroville - a universal city based on Sri Aurobindo's vision, Near Pondicherry, India
- The Sri Aurobindo Society Pondicherry, India
- Sri Aurobindo Information
- Information on Sri Aurobindo and The Mother
- Biography of Sri Aurobindo
- Lotus Press U.S. publisher Sri Aurobindo's writings
- Meditations On Savitri
- Sri Aurobindo on Vedas
- Sri Aurobindo on Upanishads