स्वामीनारायण सम्प्रदाय

भगवान स्वामीनारायण द्वारा स्थापित एक हिंदू सम्प्रदाय

स्वामीनारायण सम्प्रदाय हिंदू धर्म के वैष्णव मार्ग के अंतर्गत एक संप्रदाय है। इसके संस्थापक स्वामीनारायण भगवान थे । इस संप्रदाय के अनुयायी भगवान स्वामीनारायण को अपने सर्वोच्च भगवान के रूप में पूजते हैं । वचनामृत , शिक्षापत्री , सत्संगी जीवन ,गुणातितानंद स्वामी नी वातो इस संप्रदाय के प्रमुख ग्रंथ हैं। [2]

स्वामीनारायण सम्प्रदाय
भगवान स्वामीनारायण अपने संप्रदाय के संतो भक्तों के साथ
भगवान स्वामीनारायण अपने संप्रदाय के संतो भक्तों के साथ
धर्मावलंबियों की संख्या
5,000,000[1]
स्थापक
स्वामीनारायण
महत्वपूर्ण आबादी वाले क्षेत्र
गुजरात
धर्म
हिंदू
धर्मग्रंथ
भाषाएँ

गढ्डा इस संप्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल है। संप्रदाय की कई शाखाएँ हैं, BAPS सबसे प्रसिद्ध है यह संप्रदाय हिंदू संस्कृति, परंपरा, साहित्य, दर्शन और वास्तुकला में अपना महत्व रखता है।

गुरु रामानंद स्वामी ने विशिष्टाद्वैत की सीख को बढ़ाने के लिए स्वामीनारायण (तब सहजानंद स्वामी) को ऊद्धव सम्प्रदाय का आचार्य बनाया। स्वामीनारायण सम्प्रदाय के प्रवर्तक स्वामी नारायण जी का जन्म उत्तर प्रदेश के गोण्डा जनपद के अन्तर्गत 'छपिया' नामक गाँव, में हुआ था। आज भी यहाँ स्वामीनारायण मन्दिर है जहाँ मेला लगता है। वर्तमान में यह गाँव स्वामीनारायण छपिया के नाम से जाना जाता है।

श्री स्वामीनारायण मन्दिर, अहमदाबाद
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टोरंटो में निर्मित baps स्वामीनारायण मंदिर

स्वामीनारायण के पश्चात सम्प्रदाय को अपनाने वालों की संख्या में वृद्धि हुई और १८ लाख लोग इसके अपना चुके हैं। शिक्षापत्री और वचनमृत स्वामीनारायण सम्प्रदाय की मूल सीखें हैं। स्वामीनारायण ने छः मन्दिर बनाए थे। मृत्यु के पहले स्वामीनारायण ने स्वामीनारायण सम्प्रदाय के दो विभाग बनाए, पहला, नर-नारायण देव गादी, जो अहमदावाद से चलई जाती हैं और दूसरा, लक्ष्मी नारायण देव गाड़ी, जो वड़ताल से चलाई जाती हैं। इन दोनो विभाग के मुख्या, स्वामीनारायण ने अपने दो भांजों को एक पत्र, देश विभाग लेख के शक्ति से बनाया जिससे अविवाहित होने से सम्पत्ति का अधिकार भांजे को दे दिया, जिसे बम्बई उच्च न्यायालय ने स्वामीनारायण की वसीयत माना हैं। इन दोनो की पीढ़ी इन दोनो विभागों के आचार्या के रूप में चलते हैं और पारिवारिक नियंत्रण बना हुआ है। [3]

सम्प्रदाय के नियम धर्म

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स्वामीनारायण संप्रदाय के कुछ मुख्य नियम इस प्रकार है:

1. मन-कर्म-वचन से किसी भी प्राणी की हिंसा न करें।

2. मन-कर्म-वचन से स्त्री-पुरुष के संग का त्याग |

3. मांस तथा मांस जैसे अन्य पदार्थ न खायें।

4. शराब, मदिरा का सेवन न करें।

5. जानबूझकर किसी विधवा को न छूएं जो रिश्तेदार न हो। यदि अनजाने में ऐसा हो तो स्नान करें (यह नियम केवल पुरुषों पर लागू होता है।)

6. कठिन परिस्थितियों में भी आत्महत्या न करें।

7. चुराएं नहीं।

8. किसी पर झूठा आरोप न लगाएं.

9. किसी भी देवी-देवता की निन्दा न करें।

10. ऐसा भोजन और जल न खायें और न पीयें जिसका सेवन न किया जाए (वर्णाश्रम धर्म को दूषित करता है)।

11। भगवान से विमुख व्यक्ति के मुख से भगवान की कथा (भले ही वह अच्छी-सुंदर-मधुर-मधुर भाषा में हो) भी नहीं सुनना चाहिये ।

मंदिर और स्थापत्य शैली

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स्वामीनारायण संप्रदाय के मंदिर मूर्तिकला और वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरण हैं। भगवान स्वामीनारायण ने अपने जीवनकाल में अहमदाबाद , भुज , धोलेरा ,जूनागढ़ , गढ्डा , मूली , वडताल में भव्य मंदिर बनवाये थे । उन्होंने पहला मंदिर वर्तमान अहमदाबाद के कालूपुर में और अंतिम मंदिर गढ़दा में बनवाया । इसके अलावा स्वामीनारायण संप्रदाय के दुनिया भर में ७५०० से अधिक मंदिर हैं। जिसमें सबसे अधिक मंदिर गुजरात में बनाये गये हैं । BAPS संस्था ने ही दिल्ली और गांधीनगर में १५०० से अधिक स्वामीनारायण मंदिर और विश्व प्रसिद्ध अक्षरधाम बनाए हैं । इसके अलावा संगठन अबू धाबी और रॉबिंसविले में भी मंदिर बना रहा है।


सम्प्रदाय की विविध शाखाएं

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१) वड़ताल तथा अहमदाबाद गादी: सम्प्रदाय का संचालन सुचारू ढंग से हो इसी लिए भगवान स्वामीनारायण ने दो मुख्य शाखा बनाई, इनमे से एक अहमदाबाद गादी है तथा दूसरी वडताल गादी।

२) BAPS स्वामीनारायण संस्था : बोचासनवासी अक्षर पुरूषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) स्वामीनारायण संप्रदाय की सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और व्यापक शाखा है, इसके संस्थापक एवं प्रवर्तक भगवान स्वामीनारायण थे। इसकी स्थापना 1907 में शास्त्रीजी महाराज (1865-1951) द्वारा की गई थी। इस संगठन के अनुयायी भगवान स्वामीनारायण को परब्रह्म के रूप में पूजते हैं , और मानते हैं कि वह हमेशा ब्रह्मस्वरूप गुरु के रूप में प्रकट रहते हैं। उनके पिछले गुरुओं में गुणातीतानंद स्वामी ,भगतजी महाराज, शास्त्रीजी महाराज , योगीजी महाराज , प्रमुख स्वामी महाराज और वर्तमान गुरु महंत स्वामी महाराज शामिल हैं ।

सम्प्रदाय के मुख्य शास्त्र

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1. शिक्षापत्री : स्वामीनारायण ने संवत् 1882 के महा सुद पंचम दिन को अपने हाथ से शिक्षापत्री लिखी । शिक्षापत्री में अभ्यास और आचरण के नियम शामिल हैं। स्वामीनारायण संप्रदाय के अनुयायी शिक्षापत्री को श्रुति मानते हैं।

2. वचनामृत : अपने अनुयायियों की सभाओं में विभिन्न स्थानों और समय पर भगवान स्वामीनारायण के उपदेशों का संग्रह है। वचनामृत का क्रम कालानुक्रमिक न होकर कालानुक्रमिक है। इसमें 262 उपदेशों को प्रमाण माना गया है। इन वचनामृतों को एकत्र करने और संपादित करने का कार्य मुक्तानंद स्वामी , गोपालानंद स्वामी ,ब्रह्मानंद स्वामी , नित्यानंद स्वामी और शुकानंद स्वामी ने किया ।

3. सत्संगजीवन : संस्कृत में रचित और पाँच भागों (जिन्हें प्राकरण कहा जाता है) में विभाजित यह पुस्तक उपरोक्त दो पुस्तकों के अलावा सम्प्रदाय में प्रथम स्थान पर है। "संप्रदाय के धर्मशास्त्र" के रूप में सम्मानित इस पुस्तक में स्वामीनारायण की जीवनी, शिक्षापत्री और संप्रदाय के मूल सिद्धांत शामिल हैं।

4. भक्तचिंतामणि : निश्कुलानंद स्वामी ने सत्संगी-जीवन जैसी लोकप्रिय भाषा में लेकिन सरल गुजराती पद्य में भक्तचिंतामणि नामक ग्रंथ लिखा। इसमें सरल और भावनात्मक शैली में स्वामीनारायण और उनकी यात्रा की पूरी जीवनी शामिल है, जो इसे सामान्य साक्षरता वाले लोगों के लिए भी सुलभ बनाती है।

5. सत्संगिभूषण: वासुदेवानंद मुनि ने इस ग्रंथ की रचना संस्कृत भाषा में की थी। इसमें स्वामीनारायण के जीवन और उनके अवतार का भक्तिपूर्ण वर्णन है। जिस प्रकार सत्संगिजीवन को धर्मशास्त्र माना जाता है, उसी प्रकार सत्संगिभूषण को भक्तिप्रधान होने के कारण संप्रदाय में भक्तिशास्त्र माना जाता है।

6. श्री हरिदिग्विजय  : नित्यानंद स्वामी ने इस काव्य की रचना संस्कृत में की थी। इसमें भगवान स्वामीनारायण और उनकी विजय गाथा,संप्रदाय,विशेष रूप से विष्टाद्वैत तत्व सिद्धांत की विद्वतापूर्ण व्याख्या शामिल है।

7. स्वामी नी वातो : इस खंड मेगुणातीतानंद स्वामी की धर्म, ज्ञान, वैराग्य और मोक्ष से संबंधित कहानियाँ, उपदेश आदि संग्रहीत हैं। वचनामृत को समझने के लिए यह पुस्तक बहुत उपयोगी है।

इसके अलावा इस संप्रदाय के संतों द्वारा कई ग्रंथों की रचना की गई है। स्वामीनारायण ने संप्रदाय की पुष्टि और वृद्धि के लिए संप्रदाय ग्रंथों को बहुत महत्व दिया है। 8. हरि संभव महाकाव्य: इस महाकाव्य की रचना स्वामी अचिंत्यानंद ने की है ।यह महाकाव्य संस्कृत भाषा में लिखी गई है।इस महाकाव्य में भगवान स्वामीनारायण के सम्पूर्ण जीवन के क्रिया कलापों का समावेश किया गया है।

  1. Rinehart 2004, पृ॰ 215.
  2. "Swaminarayan Sampradaya".
  3. "Introduction to Swaminarayan Hinduism, Raymond Brady Williams, 2001".