सारण ज़िला
निर्देशांक: 25°46′N 84°43′E / 25.77°N 84.72°E सारण भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त में स्थित एक प्रमंडल (कमिशनरी) एवं जिला है। यहाँ का प्रशासनिक मुख्यालय छपरा है। गंगा, गंडक एवं घाघरा नदी से घिरा यह जिला भारत में मानव बसाव के सार्वाधिक प्राचीन केंद्रों में एक है। संपूर्ण जिला एक समतल एवं उपजाऊ प्रदेश है। भोजपुरी भाषी क्षेत्र की पूर्वी सीमा पर स्थित यह जिला सोनपुर मेला, चिरांद पुरातत्व स्थल एवं राजनीतिक चेतना के लिए प्रसिद्ध है।[1]
सारण 𑂮𑂰𑂩𑂝 | |||||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||||
देश | भारत | ||||||
सांसद | राजीव प्रताप रूडी (भारतीय जनता पार्टी) | ||||||
जनसंख्या • घनत्व |
३२,४८,७०१ (२००१ के अनुसार [update]) • १,२३१ | ||||||
क्षेत्रफल | २,६४१ sq. kms कि.मी² | ||||||
विभिन्न कोड
| |||||||
आधिकारिक जालस्थल: http://facebook.com/KFAKWorld |
नामकरण
संपादित करेंप्राचीन काल में सारण की भूमि वनों के असीम विस्तार और इसमें विचरने वाले हिरणों के कारण प्रसिद्ध था। हिरण (सारंग) एवं वन (अरण्य) के कारण इसे सारंग अरण्य कहा गया जो कालक्रम में बदलकर सारन हो गया। ब्रिटिस विद्वान जेनरल कनिंघम ने यह ऐसी धारणा व्यक्त की है कि मौर्य सम्राट अशोक के काल में यहाँ लगाए गए धम्म स्तंभों को 'शरण' कहा जाता था जो बाद में सारन कहलाने लगा और इस क्षेत्र का नाम बन गया। सारण का मुख्यालय छपरा काफी प्रसिद्ध रहा है और अक्सर इसे छपरा जिला भी कहा जाता है। जिले का छपरा नाम के आगे धार्मिक कारण भी बतलाया जाता है कि भगवान श्री राम अपने वनवास के दौरान यहां 6 दिनों तक रुके थे। इस लिए इसका नाम छपरा पड़ा है। यहां पर भगवान श्री राम अपने भाई भरत जी से मिले थे जिस कारण इस स्थल को आज भी भरत मिलाप चौक के नाम से जाना जाता है।
इतिहास
संपादित करेंचिरांद, छपरा से ११ किलोमीटर स्थित, सारण जिला का सबसे महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल (2000 ईस्वी पूर्व) है। महाजनपद काल में सारण की भूमि कोसल का अंग रहा है। कोसल राज्य के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में सर्पिका (साईं) नदी, पुरब में गंडक नदी तथा पश्चिम में पांचाल प्रदेश था। इसके अंतर्गत आज के उत्तर प्रदेश का फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, गोरखपुर तथा देवरिया जिला के अतिरिक्त बिहार का सारण क्षेत्र आता है। इसा के शुरूआत से लेकर वर्तमान समय तक समस्त सारण क्षेत्र पर बघोचिया भूमिहार राजवंश का शासन कायम है। अंग्रेजों के आने के पूर्व इस क्षेत्र का मुख्यालय वर्तमान गोपालगंज शहर के नजदीक हुआ करता था। छठी शताब्दी के दौरान इस क्षेत्र पर बघोच साम्राज्य ( बघोचिया राजवंश) का शासन कायम था जिसका मुख्यालय उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में स्थित था। बघोच साम्राज्य के संस्थापक के रूप में राजा बीरसेन का नाम आता है। इस साम्राज्य के अंतर्गत समस्त पूर्वांचल, सारण , चंपारण और मोतिहारी के इलाके आते थे। बघोच साम्राज्य के पतन के बाद उनके वंशजों ने कल्याणपुर राज्य स्थापित किया जो मुगल के समय तक कायम था। बाद में शासन का मुख्यालय हुस्सेपुर गांव, गोपालगंज जिले में स्थापित हुआ। इस वंश के 99 वें शासक राजा फतेह बहादुर शाही ने बक्सर युद्ध के बाद 1765 ईस्वी में अंग्रेजों को कर देने से मना कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप राजा फतेह बहादुर शाही और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें फतेह बहादुर शाही हार गए और हुस्सेपुर राज्य का पतन हो गया। राजा के पराजित होने के बाद अंग्रेजी सेना ने तोप का प्रयोग करके राजा फतेह शाही के किले को ध्वस्त कर दिया जिसके अवशेष आज भी मौजूद है। बघोचिया राजवंश को विश्व में सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाले राजवंश के रूप में भी जाना जाता है। वीकिपीडिया पर ब्रह्मण राजवंश की सूची में भी बघोचिया राजवंश को देखा जा सकता है। हुस्सेपुर राज्य के पतन के बाद इस राजपरिवार के सदस्यों ने दो नए राज्य- हथुआ राज और तमकुही राज की स्थापना किया। दोनों राज्य अभी तक कायम है। महाराजा बहादुर मृगेंद्र प्रताप शाही हथुआ राज के वर्तमान मुखिया हैं। राजा महेश्वर प्रताप शाही तमकुही राज्य के वर्तमान मुखिया हैं । दोनों राजपरिवार विश्व के सबसे प्राचीन बघोचिया राजवंश के वंशज हैं।[2] बाबर के समय ही सारण मुगल शासन का हिस्सा हो गया था। अकबर के शासनकाल पर लिखे गए आईना-ए-अकबरी के विवरण अनुसार कर संग्रह के लिए बनाए गए ६ राज्यों (राजस्व विभाग) में सारण एक राज्य था और इसके अंतर्गत वर्तमान बिहार के हिस्से आते थे।[3] बक्सर युद्ध में विजय के बाद सन १७६५ में अंग्रेजों को यहाँ का दिवानी अधिकार मिल गया। १८२९ में जब पटना को प्रमंडल बनाया गया तब सारन और चंपारण को एक जिला बनाकर साथ रखा गया लेकिन १८६६ में चंपारण को जिला बनाकर सारण से अलग कर दिया गया। १९०८ में तिरहुत प्रमंडल बनने पर सारण को इसके साथ कर इसके अंतर्गत गोपालगंज, सिवान तथा सारण अनुमंडल बनाए गए। स्वतंत्रता पश्चात १९८१ में सारण को प्रमंडल का दर्जा देकर तीनों अनुमंडलों को जिला (मंडल) बना दिया गया। स्वतंत्रता की लड़ाई में यहाँ के मजहरुल हक़, राजेन्द्र प्रसाद जैसे महान सेनानियों नें बिहार का नाम ऊँचा किया है। 1942 की अगस्त क्रांति में पटना के सचिवालय पर तिरंगा फहराने के क्रम में शहीद होने वालों उन सात वीर सपूतों में से 2 सारण जिले के युवा थे .. एक थे नरेंद्रपुर गाँव के उमाकांत प्रसाद सिंह और दूसरे बनवारी चक - नयागांव के राजेन्द्र सिंह । इन्दिरा गाँधी द्वारा देश में लगाए गए आपातकाल के विरुद्ध यहाँ के जय प्रकाश नारायण ने समूचे देश में जनक्रांति की लहर पैदा कर सत्ता परिवर्तन किया।
सितंबर 2016 में सारण सृजन’ विवरणिका (गजेटियर) का लोकार्पण किया गया।[4] इस विवरणिका में सामान्य परिचय, इतिहास परिचय सहित 18 अध्याय 222 पृष्ठों का है।[5][6][7][8]
भूगोल
संपादित करेंगंगा, गंडक तथा घाघरा नदियों से घिरा सारण जिला एक त्रिकोणीय भूक्षेत्र है। यह जिला 25°36' से 26°13' उअत्तरी अक्षांश तथा 84°24' से 85°15' पूर्वी देशांतर के बीच बसा है। जिले के उत्तर में सिवान तथा गोपालगंज, दक्षिण में गंगा एवं घाघरा नदियों के पार पटना एवं भोजपुर जिला, पूर्व में मुजफ्फरपुर एवं वैशाली जिला तथा पश्चिम में सिवान तथा उत्तर प्रदेश का बलिया जिला अवस्थित है। समतल एवं उपजाऊ कृषि योग्य भूमि पर जिले की सघन आबादी बसती है। सिवान को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है।:
- नदियों के किनारे स्थित जलोढ मिट्टी का मैदान जो अक्सर बाढ का शिकार होता है। इसके अंतर्गत छपरा, दिघवारा, सोनपुर, रिवीलगंज, मांझी, तथा दरियापुर प्रखंड आते हैं।
- दियारा क्षेत्र जो नदियों के बीच स्थित नीची भूमि है।
- नदियों से दूर स्थित क्षेत्र जो बाढ का शिकार नहीं होता।
छपरा में भारत का सबसे बड़ा डबल डेकर फ्लाईओवर का निर्माण किया जा रहा है।[9] गांधी चौक से nagarपालिका चौक के 3.5 किमी लंबी डबल डेकर फ्लाईओवर, ₹ 411.31 करोड़ की लागत से बनाया जा रहा है,[10][11] सांता क्रूज़-चेम्बूर लिंक रोड में 1.8 किमी डबल-डेकर फ्लाईओवर से अधिक है।[12] मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जुलाई 2018 में इस डबल डेकर फ्लाईओवर का आधारशिला रखा,[13] जो जून 2022 तक पूरा होने वाला है।[14] फ्लाईओवर की चौड़ाई 5.5 मीटर होगी।[15] डबल-डेकर फ्लाईओवर का निर्माण एनएच -19 पर पुलिस लाइन, गांधी चौक, मौना चौक, नगरपालिका (राजेंद्र) चौक, बस स्टैंड और जिला स्कूल के पास दरोगा राय चौक में खत्म होने पर एनएच -19 पर भिखारी ठाकुर चौराहे के पूर्वी तरफ से किया जाएगा, छपरा के पश्चिमी तरफ।
कृषि एवं उद्योग
संपादित करेंसारण जिले के कुल 270245 हेक्टेयर भूमि में से 199300 हेक्टेयर खेती योग्य है। 3789.20 हेक्टेयर स्थायॉ रूप से जल से ढँका है। कृषि योग्य भूमि में से 27% ऊँची भूमि, 7% मध्यम ऊँची भूमि, 15% मध्यम भूमि, 12% नीची भूमि, 21% चौर एवं 15% दियार क्षेत्र है।[16] गेंहूँ, धान, मक्का, आलू, दलहन एवं तिलहन मुख्य फसलें हैं। कुल जोत का सार्वाधिक हिस्सा गेंहूँ एवं धान की बुआई में इस्तेमाल होता है। जिले में कोई वन क्षेत्र नहीं है और आम, इमली, सीसम जैसी लकड़ियाँ निजी भूक्षेत्र पर ८२७० हेक्टेयर में लगी हैं।
1972 से पहले अविभाजित सारण जिले को मनीआर्डर इकोनाॅमी का जिला कहा जाता था।[17][18]
संस्थान / संगठन
संपादित करेंए. औद्योगिक संस्थानों
- रेल पहिया कारखाना, बेला, दरियापुर
- डीजल रेल इंजन लोकोमोटिव कारखाना, मढ़ौरा
- सारण इंजीनियरिंग, मढ़ौरा
- सारणडिटेलरी, मढ़ौरा
- चीनी मिल, मढ़ौरा
- मोरर्न मिल, मढ़ौरा
- रेल कोच फैक्ट्री, सोनपुर
बी. सरकार शिक्षण संस्थान
- जयप्रकाश विश्वविद्यालय
- राजेंद्र कॉलेज
- राम जयपाल कॉलेज
- जगडम कॉलेज
- पॉलिटेक्निक कॉलेज, मढ़ौरा
- आईटीआई मढ़ौरा
- जिला स्कूल
- राजेंद्र कॉलेजिएट
- छपरा मेडिकल कॉलेज[19]
सी.अन्य संस्थान
शिक्षा
संपादित करें- प्राथमिक विद्यालय- 1265
- बुनियादी विद्यालय- 22
- मध्य विद्यालय- 607 (266)
- उच्च विद्यालय- 116
- उच्चतर विद्यालय (१०+२)- 6
- केन्द्रीय विद्यालय- 3 (छपरा, सोनपुर एवं मसरख)
- संस्कृत विद्यालय- 17
- मदरसा- 4
- शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय- 3 (२ डिप्लोमा एवं १ डिग्री स्तरीय)
- डिग्री महाविद्यालय- 11 (अंगीभूत इकाई) + 6 (संबद्ध इकाई)
- संत जलेश्वर अकादमी उच्चतर विद्यालय बड़ा लौवा बनियापुर सारण
जिले के सभी महाविद्यालय जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय के अंतर्गत आते हैं।
प्रशासनिक विभाजन
संपादित करें- अनुमंडलः छपरा सदर, सोनपुर, मढ़ौरा
- प्रखंड: 20 - छपरा, मांझी, दिघवारा, रिवीलगंज, परसा, बनियापुर, अमनौर, तरैया, सोनपुर, गरखा,एकमा, दरियापुर, जलालपुर, मढ़ौरा, मसरख, मकेर, नगरा, पानापुर, इसुआपुर, लहलादपुर
- पंचायतों की संख्या: ३३०
- गाँवों की संख्या: १७६७
- शहरों की संख्या: ५ (नगर निगम-१, नगर पंचायत-४)
- नगर पंचायत:दिघवारा ,सोनपुर , मढ़ौरा, रिवीलगंज[21]
जनगणना
संपादित करें2011 की जनगणना के अनुसार सारण जिले की जनसंख्या:[22]
- कुल:- 39,43,098
- शहरी क्षेत्र:- २९८६३७
- देहाती क्षेत्र:- २९५००६४
सारण जिले में प्रति वर्ग किलोमीटर (3,870 / वर्ग मील) 1,493 निवासियों की आबादी घनत्व है। 2001-2011 के दशक में इसकी जनसंख्या वृद्धि दर 21.37% थी। सारण के प्रत्येक 1000 पुरुषों के लिए 9 4 9 महिलाओं का लिंग अनुपात है, और साक्षरता दर 68.57% है।
भाषाओं में भोजपुरी, बिहारी भाषा समूह में एक जीभ है जिसमें लगभग 40 000 000 वक्ताओं हैं, जो देवनागरी और कैथी दोनों स्क्रिप्ट में लिखे गए हैं।
पर्यटन स्थल
संपादित करें- चिरांद:
छपरा से ११ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में डोरीगंज बाजार के निकट स्थित यह गाँव एक सारण जिले का सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है।[23] घाघरा नदी के किनारे बने स्तूपनुमा भराव को हिंदू, बौद्ध तथा मुस्लिम प्रभाव एवं उतार-चढाव से जोड़कर देखा जाता है।[24] भारत में यह नव पाषाण काल का पहला ज्ञात स्थल है। यहाँ हुए खुदाई से यह पता चला है कि यह स्थान नव-पाषाण काल (२५००-१३४५ ईसा पूर्व) तथा ताम्र युग में आबाद था।[25] खुदाई में यहाँ से हड्डियाँ, गेंहूँ की बालियाँ तथा पत्थर के औजार मिले हैं जिससे यह पता चलता है कि यहाँ बसे लोग कृषि, पशुपालन एवं आखेट में संलग्न थे।[26] स्थानीय लोग चिरांद टीले को द्वापर युग में ईश्वर के परम भक्त तथा यहाँ के राजा मौर्यध्वज (मयूरध्वज) के किले का अवशेष एवं च्यवन ऋषि का आश्रम मानते हैं। १९६० के दशक में हुए खुदाई में यहाँ से बुद्ध की मूर्तियाँ एवं धम्म से जुड़ी कई चीजें मिली है जिससे चिरांद के बौद्ध धर्म से लगाव में कोई सन्देह नहीं।
- सोनपुर मेला:
हाजीपुर के सामने सोनपुर में प्रत्येक वर्ष लगने वाला पशु मेला विश्व प्रसिद्ध है। सोनपुर एक नगर पंचायत और पूर्व मध्य रेलवे का मंडल है। इसकी प्रसिद्धि लंबे रेलवे प्लेटफार्म के कारण भी है। भागवत पुराण में वर्णित इस हरिहर क्षेत्र में गज-ग्राह की लडाई हुई थी जिसमें भगवान विष्णु ने ग्राह (घरियाल) को मुक्ति देकर गज (हाथी) को जीवनदान दिया था। उस घटना की याद में प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को गंडक स्नान तथा एक पक्ष तक चलनेवाला मेला लगता है।
- हरिहर नाथ मंदिर: सोनपुर में बाबा हरिहरनाथ (शिव मंदिर) तथा काली मंदिर के अलावे अन्य मंदिर भी हैं। मेला के दिनों में सोनपुर एक सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक केंद्र बन जाता है।
- मांझी: छपरा शहर से २० किलोमीटर पश्चिम गंगा के उत्तरी किनारे पर 1400' x 1050' के दायरे में प्राचीन किले का अवशेष है। ३० फीट ऊँचे खंडहर में लगी ईंटे 18" x 10" x 3” की है। यहाँ से प्राप्त दो मूर्तियों को स्थानीय मधेश्वर मंदिर में रखी गई है। इनमें एक मूर्ति भूमि स्पर्श मुद्रा में भगवान बुद्ध की है जो मध्य काल में बनी मालूम पड़ती है। टीले के पूर्व बने कम ऊँचाई वाले खंडहर को स्थानीय लोग राजा की कचहरी बुलाते हैं। अबुल फजल लिखित आइन-ए-अकबरी में मांझी को एक प्राचीन शहर बताया गया है। ऐसी धारणा भी है कि इस जगह का नाम चेरों राजा माँझी मकेर के नाम पर पड़ा है।
- अंबा स्थान, आमी: छपरा से 37 किलोमीटर पूर्व तथा दिघवारा से 4 किलोमीटर दूर आमी में प्राचीन अंबा स्थान है। दिघवारा का नाम यहाँ स्थित एक दीर्घ (बड़ा) द्वार के चलते पड़ा है। आमी मंदिर के पास एक बगीचे में कुँआ बना है जिसमें पानी कभी नहीं सूखता। इस कुएँ को यज्ञ कुंड माना जाता है और नवरात्र (अप्रैल और अक्टुबर) के दिनों में दूर-दूर से लोग जल अर्पण करने आते हैं।
- दधेश्वरनाथ मंदिर: परसागढ से उत्तर की ओर आश्रम में पुरातात्विक महत्व के कई वस्तुएं दिखाई पड़ती है। गंडक के किनारे भगवान दधेश्वरनाथ मंदिर है जहाँ पत्थर का विशाल शिवलिंग स्थापित है।
- गौतम स्थान: छपरा से ५ किलोमीटर पश्चिम में घाघरा के किनारे स्थित रिवीलगंज (पुराना नाम-गोदना) में गौतम स्थान है। यहाँ दर्शन शास्त्र की न्याय शाखा के प्रवर्तक गौतम ऋषि का आश्रम था। हिंदू लोगों में ऐसी आस्था है कि रामायण काल में भगवान राम ने गौतम ऋषि की शापग्रस्त पत्नी अहिल्या का उद्धार किया था। ऐसी ही मान्यता मधुबनी जिले में स्थित अहिल्यास्थान के बारे भी है।
- राहुल गेट: राहुल सांकृत्यायन ने बिहार में सारण जिला के "परसा गढ़" गाँव में कई साल बिताए।[27] गाँव के प्रवेश द्वार का नाम "राहुल गेट" है।
- गढ़देवी मंदिर : मढ़ौरा के एक कोने में स्थित , सारण जिले में बेस इस क्षेत्र में एक मंदिर है जो देवी माँ दुर्गा को अर्पित है। इस मंदिर को गढ़ देवी मंदिर कहते है। मंदिर के इतिहास के अनुसार यह माना जाता है की माँ दुर्गा यहाँ मढ़ौरा में थावे (गोपालगंज) तक की अपनी यात्रा में रुकी थी। इस मंदिर की यात्रा करने वाले भक्तों को बड़े शहरों की सुविधायें प्राप्त नहीं होती प्रान्तों गाँव में बेस इस मंदिर की अपनी अलग ही सुंदरता है। यहाँ गढ़देवी मेले में स्थानीय व्यवसाय करने वाले खिलोने, खाने पिने की वास्तु, अन्य घर की वस्तुए बेचने आते है। इस हर सोमवार व शुक्रवार को मेला लगता है जहां सैकड़ों श्रद्धालु माता की पुजा करते हैं मान्यता है कि यहाँ आये हुए जो भी भक्त माता से मन्नत मांगते हैं और माता पूरी करती है यहाँ खासकर चैत नवरात्र व शरदी्यनवरात्र में काफी भीड़ लगती है।
- बाबा शिलानाथ मंदिर: मढौरा से 1 किलोमीटर दूर सिल्हौरी के बारे में ऐसी मान्यता है कि शिव पुराण के बाल खंड में वर्णित नारद का मोहभंग इस स्थान पर हुआ था। प्रत्येक शिवरात्रि को बाबा शिलानाथ के मंदिर में जलार्पण करनेवाले भक्त यहाँ जमा होते हैं।
- गढ़देवी मंदिर पटेढ़ा: सारण जिले के नगरा प्रखंड अंतर्गत पटेढा चौक से करीब 200 मीटर उत्तर गंडकी नदी किनारे स्थित माता काली के पुरानी मंदिर है। यहां के लोगो की माने तो यह मंदिर करीब 700 वर्ष पुराना है। यहां से 500 मीटर की दूरी पर निर्मित एक गढ़देवी मंदिर भी है। जिसके बारे में लोग बताते है वहां मंदिर निर्माण के लिए इसी काली माता स्थान से मिट्टी गई है। यह मंदिर गंडकी नदी किनारे स्थित है। फिलहाल यह मंदिर एक तरफ से झाड़ियों से घिरा हुआ है तो दूसरी तरफ से स्थानीय लोगो का घर है। वर्तमान में यह क्षेत्र हवेली के नाम से भी जाना जाता है। कुंए के ऊपर पुराने मंदिर बनने का यहां इतिहास पुराना है। धीरे धीरे यह जगह साफ सफाई के अभाव में झाड़ियों से घिर गया है। परन्तु आज भी दूर दराज से लोग यहां पहुंचकर अपनी मुरादें पाते है। मंदिर नवनिर्माण में सहयोग की बात करते है। स्थानीय लोगो के अनुसार यह जगह धमसी राम की हवेली के नाम से जाना जाता है। करीब 800 वर्ष पहले यहां धमसी राम राजा हुआ करता थे। काफी दूर दूर तक उनका नाम प्रचलित था। उन्ही के द्वारा कुएं के ऊपर इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। कई बुजुर्गो ने इस मंदिर के बारे में बताया कि उनके बचपन के समय में उनके घरों के बुजुर्ग बताते थे, कि कभी यहां मेला लगता था। माता काली की धूमधाम से पूजा की जाती थी। कुएं के ऊपर मंदिर निर्माण के भी राज है। लेकिन ज्यादा समय बीतने की वजह से लोग धीरे धीरे यहां की गाथाएं भूलते गए। फिलहाल मंदिर पर लोग सोमवार एवं शुक्रवार को पूजा करने आते है । साथ ही दशहरे के समय यहां आज भी भीड़ जुटती है। इस मंदिर के पास से करीब 90 वर्ष पूर्व वहां के एक व्यक्ति पटेढा निवासी स्व. देवकी साह को सोने भरी गगरी मिली थी। जिसकी पुष्टि यहां के स्थानीय लोगों सहित पास के ही राम जानकी मंदिर में भगवान की सेवा कर रहे पुजारी 101 वर्षीय साधु गुलजार बाबा ने भी चर्चा के दौरान की थी। बताया जाता है कि आज भी वह गगरी मौजूद है।
● द्वारिकाधीश मंदिर :- सारण जिला मुख्यालय छपरा से 8 किलोमीटर की दूरी पर छपरा-जलालपुर NH-331 के बगल में स्थित मंदिर अपने आप में कलाकारी का बेजोड़ नमूना है। गुजरात के कारीगरों ने मंदिर का निर्माण 14 वर्षों में किया है। पूरे मंदिर में एक भी लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया है। दरवाजे और चौखट भी लकड़ी के कील और गोंद से तैयार किया गया है। बिना ईंट-सीमेंट, सरिया और बालू के बने इस मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। पूरा मंदिर गुजरात में पाए जाने वाले विशेष किस्म के पत्थर धागगरा (लाल पत्थर) से बनाया गया है। इस मंदिर के आसपास 2-3 और मंदिर है तथा पीछे बगीचा और एक बड़ा सा खेल का मैदान है जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते है ।
11 मई 2005 को मंदिर का शिलान्यास किया गया था। इसके बाद 2019 में मंदिर का उद्घाटन हुआ। मंदिर का निर्माण नैनी गांव के ही ई. राजीव कुमार सिंह उर्फ संटू सिंह ने अपने निजी कोष के 8 करोड़ की लागत से करवाया है।
- आमी मंदिर: यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और छपरा से 37 किमी पूर्व और दिघवारा से 4 किमी पश्चिम में स्थित है। मंदिर में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक का प्रतिरूप भी है।
- ढोढ आश्रम: यह आश्रम पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं का प्रदर्शन करता है और पसारगढ़ के उत्तर में स्थित है।
- गौतम अस्थान: गौतम ऋषि का आश्रम छपरा से 5 किमी की दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि गौतम ऋषि ने यहां तपस्या की थी।[28]
- शिलौड़ी: यह स्थान सारण और पूरे क्षेत्र में एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।
● डच मकबरा :- सारण जिला मुख्यालय छपरा से 5 किलोमीटर के दूरी पर छपरा- जलालपुर NH 331 पर करिंगा गाँव में डच मकबरा अवस्थित है. ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार, यह स्थान 1770 तक डच के नियंत्रण में था. यह स्थान यूरोपीय व्यापारियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा. उस अवधि के दौरान डच गवर्नर जैकवॉर्न का कब्रिस्तान यहाँ बनाया गया था जो आज भी खंडहर के रूप में मौजूद है.
करिंगा का इतिहास बहुत पुराना है और ऐतिहासिक अभिलेखों से पता चलता है कि 1770 ई. तक यह डच के कब्जे में रहा है। करिंगा के पास एक पुराना डच सिमेट्री था, जहां डच गर्वनर जैकवस वैन हर्न की याद में एक स्मारक बनाया गया था, जो उस समय की महता का प्रमाण है। 17 वीं सदी के अंत और 18 वीं सदी के प्रारंभ में यूरोपियन व्यापारी कंपनी के यह आकर्षण का केन्द्र भी रहा है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Bihar: A Quick Guide to Saran". https://www.outlookindia.com/outlooktraveller/. मूल से 14 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
|website=
में बाहरी कड़ी (मदद) - ↑ [1] Archived 2009-10-27 at the वेबैक मशीन सारण का इतिहास
- ↑ "छपरा: सांकृत्यायन की कर्मभूमि और विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला से होती है इस जगह की पहचान".
- ↑ "सृजन से जाने सारण जिले की थाती को". Dainik Jagran. मूल से 2 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "Saran Gazetteer PDF DM Deepak Anand". मूल से 26 जनवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "Execution of rail projects Saran's biggest gain in '16 - Times of India". The Times of India. मूल से 16 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "हिन्दी में प्रकाशित होगा ब्रिटिशकालीन सारण का गजेटियर". Dainik Jagran. मूल से 2 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "'सारण सृजन' विवरणिका का डीएम ने किया लोकार्पण". 7 सित॰ 2016. मूल से 2 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
|date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "Chhapra to get Bihar's first double-decker flyover - Times of India". The Times of India. मूल से 23 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "CM to open highway at Chhapra - Times of India". The Times of India. मूल से 9 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "Chhapra road bounty". www.telegraphindia.com. मूल से 2 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "Saran to beat Mumbai marvel". www.telegraphindia.com. मूल से 2 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "कहा से कहा तक जायेगा डबल डेकर फ्लाईओवर, जाने". 12 जुल॰ 2018. मूल से 13 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
|date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "Flyover first on Lalu's once turf". www.telegraphindia.com. मूल से 2 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "Soon, Chhapra to get double-decker flyover - Times of India". The Times of India. मूल से 16 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ [2] Archived 2009-04-10 at the वेबैक मशीन सारण जिले का भूमि विवरण
- ↑ "मनीऑर्डर इकॉनोमी से स्वावलंबन की ओर सारण". मूल से 13 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "दानापुर-दिघवारा प्रस्तावित पुल सारण को बनायेगा मिनी 'नोएडा'". मूल से 12 जून 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "Foundation stone for Chhapra medical college to be laid in October - Times of India". The Times of India. मूल से 16 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "Home minister to open ITBP buildings today - Times of India". The Times of India. मूल से 19 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "सारण जिलान्तर्गत मढ़ौरा अनुमंडल का गठन 4 अप्रैल, 1991 में हुआ" (PDF).
- ↑ "सारन की जनसंख्या". मूल से 9 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "Oldest hamlet faces extinction threat". www.telegraphindia.com. मूल से 14 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ [3] Archived 2009-04-10 at the वेबैक मशीन Historically speaking Chirand is the most important place in Saran district, which is connected with antiquity. The ruins of the ancient mounds tell that it has seen the rise and fall of the Buddhism, Hinduism and the Muslims
- ↑ Roy, Kumkum (1 मार्च 2009). "Historical Dictionary of Ancient India". Rowman & Littlefield. मूल से 30 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019 – वाया Google Books.
- ↑ [4] Archived 2015-04-04 at the वेबैक मशीन The Neolithic occupation (2500-1345 BC) contains evidence of small circular huts, and small scale farming of wheat, rice, mung, masur, and peas.
- ↑ "छपरा: सांकृत्यायन की कर्मभूमि और विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला से होती है इस जगह की पहचान".
- ↑ "सारण के इस जगह को, लोग कर रहे हैं टूरिस्ट स्पॉट बनाने की मांग". प्रभात खबर. 10 अप्रैल 2024. अभिगमन तिथि 6 मई 2024.