श्रावस्ती जिला

उत्तर प्रदेश का जिला
श्रावस्ती ज़िला
Shravasti district
मानचित्र जिसमें श्रावस्ती ज़िला Shravasti district हाइलाइटेड है
सूचना
राजधानी : भिनगा
क्षेत्रफल : 1,640 किमी²
जनसंख्या(2011):
 • घनत्व :
11,17,361
 680/किमी²
उपविभागों के नाम: तहसील
उपविभागों की संख्या: 3
मुख्य भाषा(एँ): हिन्दी




श्रावस्ती ज़िला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय भिनगा है।[1][2] अचिरावती (राप्ती) नदी श्रावस्ती के बीच से बहती है, पूर्व-उत्तर दिशा में बलरामपुर , दक्षिण-पूरब दिशा में गोंडा और पश्चिम-दक्षिण में बहराइच जिला पड़ता है। उत्तर दिशा में इसकी सीमा नेपाल से लगती है। श्रावस्ती और बलरामपुर जनपदों में फैला सुहेलवा वन्यजीव अभयारण्य जंगली जानवरों का एक हापस्पाट है , श्रावस्ती की मुख्य भाषा हिंदी है। तथा उपबोली अवधी है। तराई की मिट्टी नवीन जलोढ़ खादर है । यद्यपि यह एक उपजाऊ जिला है लेकिन विकास के वृष्टिछाया भाग में पड़ता है। अक्षम नेतृत्व के कारण अधिकांश जनता कृषि पर निर्भर है। गन्ना श्रावस्ती की नगदी फसल है लेकिन दुर्भाग्यवश कोई चीनी मिल पूरे जिले में नही है। इसलिए यहां के किसान अपने उत्पाद अन्य जिलों में बेचने को मजबूर हैं। यद्यपि श्रावस्ती से बड़े -बडे़ नेता चुनाव जीत कर संसद गए लेकिन उन्होंने जिले के विकास के लिए कुछ नही किया श्रावस्ती को उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में गिना जाता है। नीति आयोग के आकांक्षी जिला कार्यक्रम का हिस्सा है। उत्तरप्रदेश के पर्यटन स्थल भी है। यहाँ बौद्ध धर्म और जैन धर्म के अनुयायी हमेशा मंदिर दर्शन एवं पूजापाठ के लिए आते रहते है। यद्यपि श्रावस्ती विविध धर्मो का संगम है लेकिन आजादी के 75 साल बाद इस क्षेत्र को रेल से जोड़ने की घोषणा हुई श्रावस्ती में एक एअरपोर्ट है जिसका परिचालन शुरू हो गया है। विदेशी धार्मिक पर्यटन के लिए श्रावस्ती का अपना स्थान है। श्रावस्ती एअरपोर्ट बन जाने से बौद्ध पर्यटकों तथा हिन्दू पर्यटकों दोनों को आसानी हुई है। यहीं थोड़ी दूर पर बलरामपुर जिले में मां पाटेश्वरी देवी का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है जहां हिंदू धर्म को मानने वालों का तांता लगा रहता है। श्रावस्ती के उत्तरी भाग में थारु जनजाति का निवास है। श्रावस्ती का नेपाल से सटा क्षेत्र अभी काफी पिछड़ा हुआ है।

जिले का मुख्यालय, भिनगा, विकासशील नगर हैं। श्रावस्ती जनपद एक नवनिर्मित जनपद है जो बहराइच जनपद से अनुनिर्मित हैं। श्रावस्ती भारत की नेपाल से लगी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित एक एतिहासिक एवँ अन्तरवैश्विक धार्मिक महत्व वाला एक धर्मस्थल भी है। बौद्ध धर्म के सँस्थापक महात्मा बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश यही दिये थे। श्रावस्ती जिले में इस समय 5 विकास क्षेत्र इकौना, हरिहरपुररानी, गिलौला, जमुनहा व सिरसिया हैं। इसकी तीन तहसीलें भिनगा, इकौना और जमुनहा है। विकास क्षेत्र इकौना में 70, हरिहरपुररानी में 53, गिलौला में 71, जमुनहा में 71 व सिरसिया में 70 ग्राम पंचायतें है।

श्रावस्ती को बौद्धिक यानी बुद्ध से संबंधित एक नई विचारधारा के पहचान के रूप में बनाया गया। यह एक राजनैतिक कदम था जिसका एक फायदा यहाँ के नागरिकों को नए स्तर पर जनपद की कई सुविधाएं मिली और प्रशासनिक दूरी बहराइच से कम हुई।

श्रावस्ती में पहुंचने के दो मुख्य स्रोत हैं पहला सड़क मार्ग लखनऊ से श्रावस्ती 3 घं 48 मि (174.7 किमी) NH927 और NH730 से होकर और दूसरा हवाई मार्ग जोकि अभी निर्माणाधीन है

यह ज़िला पर्यटन के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है यहां जहां एक तरफ बौद्ध धर्म को मानने वाले अनुयायियों के लिए श्रावस्ती में कटरा सहेट महेट है तो वहीं हिंदू धर्म को मानने वाले अनुयायियों के लिए विभूति नाथ मंदिर और सोनपथरी, सीताद्वार जैसे मुख्य मंदिर है। विभूति नाथ में कजरी तीज मेले के अवसर पर लाखों की संख्या में लोग आते हैं एवं सीताद्वार में कार्तिक के माह में कार्तिक मेले का आयोजन भी होता है। श्रावस्ती में विकास से यहां के लोगों को ही सुख सुविधाएं, जैसे कि शिक्षा, एक उच्च स्तर तक पहुंची है। जेतवन के किनारे NH730 पर स्थित चौधरी राम बिहारी बुद्धा इंटर कॉलेज भिनगा में स्थित केंद्रीय विद्यालय एवं लव विद्या पीठ और इकौना में जनता इंटर कॉलेज स्त्यास द आर्यन,जगत जीत इंटर कॉलेज तथा सुभाष इंटर कॉलेज जैसे कई ऐसे विद्यालय हैं जो छात्रों को आगे लेकर जा रहे हैं।

श्रावस्ती हिमालय की तलहटी मे बसे भारत-नेपाल सीमा के सीमावर्ती जिले बहराइच से महज 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | उत्तर प्रदेश के इस जिले की पहचान विश्व के कोने-कोने मे आज बौद्ध तीर्थ स्थल के रूप मे है | इस जनपद का गठन दिनांक 22-05-1997 को हुआथा |दिनांक 13-01-2004 को शासन द्वारा इस जनपद का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया था | पुनः माह जून 2004 सी यह जनपद अस्तित्व मे आया है | जनपद का मुख्यालय भिंगा मे है ,जो श्रावस्ती से 55 किमी0की दूरी पर है |जनपद कोशल एक प्रमुख नगर था | भगवान बुद्ध के जीवन काल में यह कोशल देश की राजधानी थी | इसे बुद्धकालीन भारत के 06 महानगरो चम्पा ,राजगृह , श्रावस्ती ,साकेत ,कोशाम्बी ओर वाराणसी मे से एक माना जाता था | श्रावस्ती के नाम के विषय मे कई मत प्रतिपादित है| बोद्ध ग्रंथो के अनुसार अवत्थ श्रावस्ती नामक एक ऋषि यहाँ रहते थे , जिनके नाम के आधार पर इस नगर का नाम श्रावस्त पड़ गया था | महाभारत के अनुसार श्रावस्ती नाम श्रावस्त नाम के एक राजा के नाम पड़ गया | ब्राह्मण साहित्य , महाकाव्यों एवं पुराणों के अनुसार श्रावस्त का नामकरण श्रावस्त या श्रावास्तक के नाम के आधार पर हुआ था | श्रावस्तक युवनाय का पुत्र था ओर पृथु की छठी पीड़ी मे उत्पन्न हुआ था | वही इस नगर के जन्मदाता थे ओर उनही के नाम पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ गया | महाकाव्यों एवं पुराणों मे श्रावस्ती को राम के पुत्र लव की राजधानी बताया गया है | बोधह ग्रांटों के अनुसार, वहाँ 57 हज़ार कुल रहते थे ओर कोसल नरेशो की आमदनी सबसे ज्यादा इसी नगर से हुआ करती थी| यह चौड़ी गहरी खाई से खीरा हुआ था | इसके अतिरिक्त इसके इर्द –गिर्द एक सुरक्षा दीवार थी, जिसमे हर दिशा मे दरवाजे बानु हुए थे | हमारी प्राचीन कलाँ मे श्रावस्ती के दरवाजो का अंकन हुआ है | चीनी यात्री फ़ाहयान ओर हवेनसांग ने भी श्रावस्ती के दरवाजो का उल्लेख किया है | यहाँ मनुष्यो के उपयोग – परिभाग की सभी वस्तुए सुलभी थी, अतः इसे सावत्थी का जाता है | श्रावस्ती की भौतिक समृद्धि का प्रमुख कारण यह था कि यहाँ पर तीन प्रमुख व्यापारिक पाठ मिलते थे , जिससे यह व्यापार का एक महान केंद्र बन गया था | यह नगर पूर्वे मे राजग्रह से 45 योजना दूर आकर बुद्ध ने श्रावस्ती विहार किया था | श्रावस्ती से भगवान बुद्ध के जीवन ओर कार्यो का विशेष सम्बंध था | उल्लेखनीय है की बुद्ध ने अपने जीवन अंतिम पच्चीस वर्षो के वर्षवास श्रावस्ती मे ही व्ययतीत किए थे | बोद्ध धर्म के प्राचीर की दृस्टी से भी श्रावस्ती का महत्वपूर्ण स्थान था | भगवान बुद्ध के प्रथम निकायो के 871 सुत्तों का उपदेश श्रावस्ती मे दिया था, जिसमे 844 जेतवन मे, 23 पुब्बाराम मे ओर 4 श्रावस्ती के आस –पास के अन्य स्थानो मे उपविष्ट किए गए | श्रावस्ती मे जैन मतावलंबी भी रहते थे | इस धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी यहाँ कई बार आ चुके थे | बोद्ध मतावलंबीयो की भांति जैन धर्मानुयायी भी इस नगर को प्रमुख धार्मिक स्थान मानते थे | जैन साहित्य मे इसके लिए चंदपुरी तथा चंद्रिकापुरी नाम भी मिलते है | जैन धर्म के प्रचार केंद्र के रूप मे यह विख्यात था | श्रावस्ती जैन धर्म के तीसरे तीर्थकर संभवनाथ व आठवे तीर्थकर चंद्रप्रभानाथ की जन्मस्थली थी | महावीर ने भी यहाँ एक वर्षावास व्यतीत किया था जैन धर्म मे सावधि अथवा सावत्थीपुर के प्रचुर उल्लेख मिलते है| जैन धर्म भगवती सूत्र के अनुसार श्रावस्ती नगर आर्थिक क्षेत्र मे भौतिक समृधि के चमोत्कृष पर थी | यहाँ के व्यापारियो मे शंख ओर मकखली मुख्य थे, जिन्होने नागरिकों के भौतिक समृद्धि के विकास मे महत्वपूर्ण योगदान दिया था | जैन श्रोतों से पता चलता है कि कालांतर मे श्रावस्ती आजीवक संप्रदाय के एक प्रमुख केंद्र बन गया | श्रावस्ती का प्रगेतिहासिक काल का कोई प्रमाण नहीं मिला है शिवालिक पर्वत श्रखला कि तराई मे स्थित यह क्षेत्र सघन वन व औषधियों वनस्पतियों से आच्छादित था | शीशम के कोमल पत्तों कचनार के रकताम पुष्ट व सेमल के लाल प्रसूत कि बांसती आभा से आपूरित यह वन खंड प्रकृतिक शोभा से परिपूर्ण रहता था| श्रावस्ती के प्राचीन इतिहास को प्रकार्ण मे लाने के लिए प्रथम प्रयास जनरल कनिघम ने किया | उन्होने वर्ष 1863 मे उत्खनन प्रारम्भ करके लगभग एक वर्ष के कार्य मे जेतवन का थोड़ा भाग साफ कराया इसमे इसमे उनको बोधिसत्व की 7 फुट 4 इंच ऊंची प्रतिमा प्राप्त हुई, जिस पर अंकित लेख मे इसका श्रावस्ती बिहार मे स्थापित होना ज्ञात है | इस प्रतिमा के अधिस्ठन पर अंकित लेख मे तिथि नष्ट हो गयी है | परंतु लिपि शस्त्र के आधार पर यह लेख कुषाण काल का प्रतीत होता है | जनपद का प्रमुख प्रयटन स्थल पर भगवान बुद्ध की तपोस्थली कटरा श्रावस्ती थाना इकौना मे है कटरा श्रावस्ती मे बोद्ध धर्म अनुयायियों द्वारा बोद्ध मंदिरो का निर्माण कराया गया है | जिसमे वर्मा बोद्ध मंदिर , लंका बोद्ध मंदिर , चाइना मंदिर , दक्षिण कोरिया मंदिर के साथ –साथ थाई बोद्ध मंदिर है | थायलैंड द्वारा डेनमहामंकोल मेडीटेशन सेंटर भी निर्मित कराया गया , जहां पर भरी संख्या मे विदेशी पर्यटको का आवागमन रहता है |

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
  2. "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the वेबैक मशीन," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975