शंकर पुण्तांबेकर
शंकर पुण्तांबेकर एक हिन्दी साहित्यकार का नाम है। उनके उल्लेखनीय कार्यों में जहाँ देवता मरते हैं शामिल है। इसे वाणी प्रकाशन ने २०१४ में पहली बार छापा था[1]।
जीवन परिचय
संपादित करेंशंकर पुणतांबेकर अपने समय के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार रहे हैं। मराठी और हिन्दी, दोनों भाषाओं के साहित्य पर उनकी पकड़ गहरी रही है। खासकर व्यंग्य की विधा में उनका लेखन अतुलनीय माना जाता है। उनकी लघुकथाओं में भी कई बार व्यंग्य की धारा देखने को मिल जाती है। इन्हीं शंकर पुणतांबेकर की लिखी एक लघुकथा है ‘आम आदमी’ रही है जो वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को दिखाती है[2]।
सन्दर्भ
संपादित करेंयह जीवनचरित लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |