"गुर्जर-प्रतिहार राजवंश": अवतरणों में अंतर

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प्रतिहारों की शक्ति राज्य के लिए आपसी संघर्ष के चलते क्षीण हुई। इसी दौरान इनकी शक्ति और राज्यक्षेत्र में पर्याप्त ह्रास की वज़ह राष्ट्रकूट राजा तृतीय इन्द्र का आक्रमण भी बना। इन्द्र ने लगभग ९१६ में कन्नौज पर हमला करके इसे ध्वस्त कर दिया। बाद में अपेक्षाकृत अक्षम शासकों के शासन में प्रतिहार अपनी पुरानी प्रभावशालिता पुनः नहीं प्राप्त कर पाए। इनके अधीन सामंत अधिकाधिक मज़बूत होते गए और १०वीं सदी आते आते अधीनता से मुक्त होते चले गये। इसके बाद प्रतिहारों के पास गंगा-दोआब के क्षेत्र से कुछ ज़्यादा भूमि राज्यक्षेत्र के रूप में बची। आख़िरी महत्वपूर्ण राजा राज्यपाल को [[महमूद गजनी]] के हमले के कारण १०१८ में कन्नौज छोड़ना पड़ा। उसे [[चंदेल|चंदेलों]] ने पकड़ कर मार डाला और उसके पुत्र त्रिलोचनपाल को एक प्रतीकात्मक राजा के रूप में राज्यारूढ़ करवाया। इस वंश का अंतिम राजा यशपाल था जिसकी १०३६ में मृत्यु के बाद यह राजवंश समाप्त हो गया।
 
== नाम एवं उत्पत्ति==
[[File:Bilingual old Kannada-Sanskrit inscription (866 AD) from Nilgund of Rashtrakuta King Amoghavarsha I.jpg|thumb|right|230px|कन्नड़-संस्कृत में अमोघवर्ष का नीलगुंड अभिलेख (८६६ ई॰) जिसमें उसने यह उल्लिखित किया है कि उसके पिता तृतीय गोविन्द ने चित्रकूट के गुर्जरों को हराया]]
{{Main|गुर्जर-प्रतिहार राजवंश की उत्पत्ति}}
 
गुर्जर-प्रतिहार राजवंश की उत्पत्ति इतिहासकारों के बीच बहस का विषय है। इस राजवंश के शासकों ने अपने लिए "प्रतिहार" का उपयोग किया जो उनके द्वारा स्वयं चुना हुआ पदनाम अथवा उपनाम था। इनका दावा है कि ये [[रामायण]] के सहनायक और [[राम]] के भाई [[लक्ष्मण]] के वंशज हैं, लक्ष्मण ने एक प्रतिहारी अर्थात द्वार रक्षक की तरह राम की सेवा की, जिससे इस वंश का नाम "प्रतिहार" पड़ा।{{sfn|Tripathi|1959|p=223}}{{sfn|Puri|1957|p=7}} कुछ आधुनिक इतिहासकार यह व्याख्या प्रस्तुत करते हैं कि ये राष्ट्रकूटों के यहाँ सेना में रक्षक (प्रतिहार) थे जिससे यह शब्द निकला।<ref>{{cite book |last=अग्निहोत्री |first=वी. के. |year=2010 |title=इंडियन हिस्ट्री |volume=26 |page=B8 |quote=Modern historians believed that the name was derived from one of the kings of the line holding the office of Pratihara in the Rashtrakuta court}}</ref>