[[चित्र:Mathematics lecture at the Helsinki University of

Technology.jpg|thumb|200x200px|गणित की कक्षा में कुछ विद्यार्थी पढ़ते हुए।]] यह ठीक है लेकिन कुछ ही हैं

विद्या


र्थी वह व्यक्ति होता है जो कोई चीज सीख रहा होता है। विद्यार्थी दो शब्दों से बना होता है - "विद्या" + "अर्थी" जिसका अर्थ होता है 'विद्या चाहने वाला'। विद्यार्थी किसी भी आयुवर्ग का हो सकता है बालक, किशोर, युवा, या वयस्क। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि वह कुछ सीख रहा होना चाहिए।

संस्कृत सुभाषितों में विद्या और विद्यार्थी के बारे में बहुत अच्छी-अच्छी बातें कहीं गयीं हैं-

काकचेष्टा बकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च।
अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम्॥

अर्थात् (विद्यार्थी के पाँच लक्षण हैं- कौए की तरह चेष्टा (सब ओर दृष्टि, त्वरित निरीक्षण क्षमता), बगुले की तरह ध्यान, कुत्ते की तरह नींद (अल्प व्यवधान पर नींद छोड़कर उठ जाय), अल्पहारी (कम भोजन करने वाला), गृहत्यागी (अपने घर और माता-पिता का अधिक मोह न रखने वाला)।

सुखार्थी वा त्यजेत विद्या विद्यार्थी वा त्यजेत सुखम्।
सुखार्थिनः कुतो विद्या विद्यार्थिनः कुतो सुखम्॥

अर्थात् (सुख चाहने वाले को विद्या छोड़ देनी चाहिए और विद्या चाहने वाले को सुख छोड़ देना चाहिए। क्योंकि सुख चाहने वाले को विद्या नहीं आ सकती और विद्या चाहने वाले को सुख कहाँ?)

आचार्यात् पादमादत्ते पादं शिष्यः स्वमेधया ।
पादं सब्रह्मचारिभ्यः पादं कालक्रमेण च ॥

अर्थात् ( विद्यार्थी अपना एक-चौथाई ज्ञान अपने गुरु से प्राप्त करता है, एक चौथाई अपनी बुद्धि से प्राप्त करता है, एक-चौथाई अपने सहपाठियों से और एक-चौथाई समय के साथ (कालक्रम से, अनुभव से) प्राप्त करता है।

इन्हें भी देखें

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