वस्त्र कलाएं ऐसी कलाएं और शिल्प हैं जिनमें व्यावहारिक या सजावटी वस्तुओं के निर्माण के लिए पौधे, पशु या सिंथेटिक फाइबर का उपयोग किया जाता है।[1]

प्राचीन मिस्र में वस्त्र कला

सभ्यता के आरंभ से ही वस्त्र मानव जीवन का मूलभूत हिस्सा रहे हैं। इन्हें बनाने के लिए प्रयुक्त विधियों और सामग्रियों का बहुत विस्तार हुआ है जबकि वस्त्रों के कार्य वही बने हुए है तथा वस्त्रों के अनेक कार्य हैं। चाहे वह कपड़े हों या घर/आवास के लिए कुछ सजावटी सामान। वस्त्र कला का इतिहास अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का इतिहास भी है।

कला के रूप में वस्त्र

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परंपरागत रूप से कला शब्द का प्रयोग किसी कौशल या निपुणता को संदर्भित करने के लिए किया जाता था। यह अवधारणा उन्नीसवीं शताब्दी के रोमांटिक काल के दौरान बदल गई जब कला को धर्म और विज्ञान के साथ वर्गीकृत मानव मन की एक विशेष क्षमता के रूप में देखा जाने लगा।[2] शिल्प और ललित कला के बीच का यह अंतर वस्त्र कला पर भी लागू होता है। फाइबर कला या वस्त्र कला शब्द का प्रयोग अब वस्त्र-आधारित सजावटी वस्तुओं का वर्णन करने के लिए किया जाता है, व्यावहारिक उपयोग के लिए नहीं हैं।

प्राकृतिक रेशे 7000 ईसा पूर्व से ही मानव समाज का एक महत्वपूर्ण पहलू रहे हैं और ऐसा संदेह है कि इनका पहली बार सजावटी कपड़ों में उपयोग 400 ईसा पूर्व भारत में किया गया था जहां कपास की खेती सबसे पहले की गई।[3]

इन्हें भी देखें

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  1. गिल्लो, जॉन; सेंटेंस, ब्रायन (1999). वर्ल्ड टेक्सटाइल्स. लिटिल ब्राऊन. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0821226215.
  2. गोम्ब्रिच, अर्नस्ट (14 फरवरी 2008). "प्रेस स्टेटमेंट ऑन द स्टोरी ऑफ आर्ट". द गोम्ब्रिच आर्काइव. मूल से 14 फ़रवरी 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जनवरी 2025.
  3. पेंटेलिक, क्सेनिजा (23 दिसंबर 2016). "फाइबर आर्ट एंड इट्स स्कोप". www.widewalls.ch (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 24 जनवरी 2025.