वराह पुराण
वराहपुराण वेदव्यास द्वारा रचित १८ पुराणो में से एक है। इसमें श्लोकों की संख्या २४ सहस्र है । इसमें भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह अवतार के बारे में संक्षिप्त रूप से बताया गया है । वराह पुराण एक वैष्णव पुराण है । इसमें २१७ अध्याय है ।
लेखक | वेदव्यास |
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भाषा | संस्कृत |
शृंखला | पुराण |
विषय | वराह भक्ति |
शैली | प्रमुख वैष्णव ग्रन्थ |
प्रकाशन स्थान | भारत |
पृष्ठ | २४,००० श्लोक |
वराह पुराण में भगवान् विष्णु के वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें भगवान् नारायण का पूजन-विधान, शिव-पार्वती की कथाएँ, सोरों सूकर (वराह) क्षेत्रवर्ती आदित्यतीर्थ, चक्रतीर्थ, वैवस्वततीर्थ, शाखोटकतीर्थ, रूपतीर्थ, सोमतीर्थ, योगतीर्थ आदि तीर्थों की महिमा, मोक्षदायिनी नदियों की उत्पत्ति और माहात्म्य एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है।[1]
विस्तार
संपादित करेंयह पुराण दो भागों से युक्त है और सनातन भगवान् विष्णु के माहात्म्य का सूचक है।वराहपुराण की श्लोक संख्या चौबीस हजार है, इसे सर्वप्रथम प्राचीन काल में वेदव्यास जी ने लिपिबद्ध किया था।[2] इसमें भगवान श्रीहरि के वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थों (मुख्यतः सोरों सूकरक्षेत्र), व्रत, यज्ञ-यजन, श्राद्ध-तर्पण, दान और अनुष्ठान आदि का शिक्षाप्रद और आत्मकल्याणकारी वर्णन है। भगवान श्रीहरि की महिमा, पूजन-विधान, हिमालय की पुत्री के रूप में गौरी की उत्पत्ति का वर्णन और भगवान शंकर के साथ उनके विवाह की रोचक कथा इसमें विस्तार से वर्णित है। इसके अतिरिक्त इसमें सोरों सूकर(वराह)क्षेत्रवर्ती आदित्यतीर्थ, चक्रतीर्थ, रूपतीर्थ, योगतीर्थ, सोमतीर्थ, शाखोटकतीर्थ, वैवस्वततीर्थ आदि तीर्थों का वर्णन, भगवान् श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं के प्रभाव से मथुरामण्डल और व्रज के समस्त तीर्थों की महिमा और उनके प्रभाव का विशद तथा रोचक वर्णन है।
कथा
संपादित करेंवराहपुराण में सबसे पहले पृथ्वी और वराह भगवान् का शुभ संवाद है, जोकि सतयुगीन गृद्धवट के नीचे सोरों शूकरक्षेत्र में हुआ था। तदनन्तर आदि सत्ययुग के वृतांत में रैम्य का चरित्र है, फ़िर दुर्जेय के चरित्र और श्राद्धकल्प का वर्णन है, तत्पश्चात महातपा का आख्यान, गौरी की उत्पत्ति, विनायक, नागगण सेनानी (कार्तिकेय) आदित्यगण देवी धनद तथा वृष का आख्यान है। उसके बाद सत्यतपा के व्रत की कथा दी गयी है, तदनन्तर अगस्त्य गीता तथा रुद्रगीता कही गयी है, महिषासुर के विध्वंस में ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र तीनों की शक्तियों का माहात्म्य प्रकट किया गया है, तत्पश्चात पर्वाध्याय श्वेतोपाख्यान गोप्रदानिक इत्यादि सत्ययुग वृतान्त मैंने प्रथम भाग में दिखाया गया है, फ़िर भगवद्धर्म में व्रत और तीर्थों की कथायें हैं, बत्तीस अपराधों का शारीरिक प्रायश्चित बताया गया है, प्राय: सभी तीर्थों के पृथक्-पृथक् माहात्म्य का वर्णन है, मथुरा की महिमा विशेषरूप से दी गयी है, उसके बाद श्राद्ध आदि की विधि है, तदनन्तर ऋषि पुत्र के प्रसंग से यमलोक का वर्णन है, कर्मविपाक एवं विष्णुव्रत का निरूपण है, गोकर्ण के पापनाशक माहात्म्य का भी वर्णन किया गया है, इस प्रकार वराहपुराण का यह पूर्वभाग कहा गया है, उत्तर भाग में पुलस्त्य और पुरुराज के सम्वाद में विस्तार के साथ सब तीर्थों के माहात्म्य का पृथक्-पृथक् वर्णन है। फ़िर सम्पूर्ण धर्मों की व्याख्या और पुष्कर नामक पुण्य पर्व का भी वर्णन है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "गीताप्रेस डाट काम". मूल से 12 मई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 मई 2010.
- ↑ वराहपुराण, गीताप्रेस गोरखपुर
बाहरी कडियाँ
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