यह मार्ग दक्षिण-मध्य दिल्ली का एक प्रमुख मार्ग है। इस मार्ग पर दिल्ली के भूतपूर्व शासक खिलजी वँश के कई मकबरे हैं, जिन्हेँ बागोँ की शकल दे दी गई है, व अब लोधी बाग या लोधी गार्डन के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्हीँ के कारण इस मार्ग का यह नाम पङा। यह मार्ग सफदरजंग का मकबरा से लेकर निजामुद्दीन की दरगाह तक जाता है।

आसपास के क्षेत्र

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यह मार्ग चौदहवीं शताब्दी के एक मार्ग का नया रूप है, जो कि घियातपुर (वर्तमान) निजामुद्दीन गाँव को बाग-ए-जूङ (वर्तमान में जूङ बाग या जोर बाग) से जोङता था, जो कि दिल्ली सल्तनत के आँकङों में एक बङा बाग था। यह मार्ग फिर बङे मार्गों, जो कि रिवाङीगुङगाँवसे आते थे, उनसे जुङता था। बाहर से आने वाली सेनाओं ने, विशेषकर तैमूर लंग की सेनाओं से यहाँ सन १३९८ में पङाव डाले थे। यह मार्ग सदा ही एक विभाजन रेखा की तरह प्रयुक्त हुआ है।

  • 15वीं शताब्दी में (सैय्यद वंश के) कोटला मुबारक पुरलोधी वंश के नैक्रोपॉलिस के बीच।
  • 16-17वीं शताब्दी में यही मार्ग दिल्लीमहरौली तहसील के बीच।
  • एक ईंट पत्थर का पुल जो कि (अब सूख चुके जैतपुर के नाले पर था, जिस जैतपुर को अँग्रेजों द्वारा सन् 1912 में पूर्णतया नष्ट कर दिया गया था) पर बना था, मुगल बादशाह अकबर द्वारा बनवारया गया था। बाद की अट्ठारहवीं शताब्दी में यह अलीपुर गाँव की विवादित शिया सराय की हद भी बना रहा।
  • बाद में अँग्रेजों की नऐ दिल्ली की हद भी बना, जो की अब तक भी है। लोधी मार्ग की पौधशाला में ही लगभग दिल्ली की सङकों के किनारे लगे पेङ की पौध तैयार की जातीं रहीं थीं।

सन १९८० में नवम एशियाई खेल के पहले यह मार्ग काफी चौङा कर दिया गया।

वर्तमान में

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वर्तमान में यह दिल्ली का एक व्यस्ततम मार्ग है। यहाँ कई बङी इमारतें हैं, कार्यालय हैं।

क्षेत्र दृश्य

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