लेखन मानव भाषा का स्थायी प्रतिनिधित्व बनाने का कार्य है। भारत में लेखन ३३०० ईपू का है। सबसे पहले की लिपि ब्राह्मी लिपि थी, उसके पश्चात सरस्वती लिपि आई। देवनागरी लिपि, गुरुमुखी लिपि, आदि भी प्रसिद्ध लिपियाँ हैं। लेखन से ज्ञान-परिवर्तनकारी प्रभाव भी हो सकते हैं, क्योंकि यह मनुष्य को अपने विचारों को ऐसे रूपों में व्यक्त करने की अनुमति देता है, जिन पर चिंतन करना, विस्तार से बताना, पुनर्विचार करना और संशोधन करना आसान होता है।[1][2][3]

  1. बाज़रमैन, चार्लस; रस्सेल, डेविड, संपा॰ (1994). "Writing as a mode of learning". Landmark Essays: On Writing Across the Curriculum. Routledge. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-003-05921-9. डीओआइ:10.4324/9781003059219.
  2. Adler-Kassner, लिंडा; वार्डल, एलिजाबेथ ए., संपा॰ (2015). Naming What We Know: Threshold Concepts of Writing Studies. Logan: Utah State University Press. पपृ॰ 55–56. JSTOR j.ctt15nmjt7. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-87421-989-0.
  3. विंसर, डोरोथी ए. (1994). "Invention and Writing in Technical Work: Representing the Object". Written Communication. 11 (2): 227–250. S2CID 145645219. डीओआइ:10.1177/0741088394011002003.

इन्हें भी देखें

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