बिहार प्राचीन काल से ही भारतीय इतिहास में प्रशासन और धर्म का प्रमुख केन्‍द्र रहा है। लाल पहाड़ी का उत्खनन बिहार को बौद्ध धर्म की प्राचीनता और प्रसिद्धि की दिशा में एक नई पहचान देता है। लखीसराय जिले के लाल पहाड़ी पर गंगा घाटी का पहला पहाड़ी बौद्ध मठ पाया गया है। इससे पहले गंगा घाटी में मिले कई बौद्ध विहारों के जमीन पर ही निर्मित होने के प्रमाण मिले हैं। यह स्थान बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय का एक महान केंद्र माना जाता था। इस बौद्ध मठ का पहाड़ी की चोटी पर स्थित होने से ऐसा प्रतीत होता है कि महायानी बौद्धों ने मानव आबादी की हलचल से दूर एकांत में महायान अनुष्ठानों का अभ्यास करने के लिए इस मठ की स्थापना की थी। यह बौद्ध मठ मुख्य रूप से महिला भिक्षुणियों के लिए बनाया गया था। इस मठ की प्रमुख विजयश्री भद्रा नाम की एक महिला भिक्षुणी थी। इस स्थल पर मठ का नाम लिखी दो जली हुई मिट्टी की मोहरे मिली है। इन मोहरों पर ‘श्रीमद्धर्मविहारिक आर्यभिक्षुसंघस्‍य’ अंकित मिलता है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है कि ‘यह श्रीमद्धर्म विहार के भिक्षुओं की परिषद है।‘ इन मुहरों पर भाषा संस्‍कृत और लिपि 8वीं-9वीं शताब्‍दी की सिद्धमातृका प्राप्‍त होती है। विद्वानों का मानना है कि व्हेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में उल्लेख किया था कि इस क्षेत्र में कई मठ और मंदिर थे। व्हेनसांग के अनुसार महात्मा बुद्ध ने यहां अपना 13वां, 18वां और 19वां वर्षावास व्यतीत किया था। जिससे इस स्‍थल का महत्‍व और भी बढ जाता है। इस स्‍थान पर माननीय बिहार के मुख्‍यमंत्री श्री नितिश कुमार जी ने दो बार भ्रमण किया है तथा इस स्‍थान की उत्‍खनन के लिए सहयोग राशि की भी घोषणा की है। इस स्‍थान के संरक्षण के लिए उन्‍होंने विशेष प्रकार की गाइडलाइन भी जारी की है।

स्‍थानीय पता

संपादित करें

यह स्‍थल लखीसराय स्‍टेशन से मात्र 2 किलोमीटर दक्षिण की ओर है।