देश की प्रथम व एकमात्र महिला विचित्रवीणा वादिका होने का गौरव प्राप्त राधिका ग्वालियर के एक संगीतकार घराने में पली-बढ़ी राधिका ने बचपन से ही संगीत की शिक्षा अपने पिता पंडित श्रीराम उमड़ेकर से पाई। वीणावादन में उन्होंने स्वर्णपदक के साथ कोविद की उपाधि प्राप्त की है साथ ही संगीत में एमए की डिग्री भी स्वर्णपदक के साथ प्राप्त की हैं। आकाशवाणी संगीत प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया हैं। साथ ही कई प्रतियोगिताओ में भी अपनी कला की स्वर्णिम आभा बिखेरी है और सोना पाया हैं। देश के प्रसिद्ध संगीत आयोजनों, तानसेन संगीत समारोह, उत्तराधिकार, स्वयंसिद्धा, हरिदास समारोह, दुर्लभ वाद्य विनोद आदि में वरिष्ठ संगीतकारों की उपस्थिति में राधिका वीणा वादन कर चुकी हैं और उनसे आशीष पाए हैं। उन्हें सुरमणि, संगीत कला रत्न, नाद साधक जैसे कई सम्मान मिल चुके हैं। लेखन से विशेष लगाव होने के कारण बचपन से ही लिखती रही हैं।

ग्वालियर संगीत घराने की राधिका ने सुरों की दुनिया से अपना रिश्ता विचित्रवीणा नाम के एक ऐसे वाद्ययंत्र से जोड़ा है जो सितार, सरोद, बांसुरी, वायलिन जैसे लोकप्रिय वाद्यों की तुलना में कम जाना-पहचाना है। खासतौर पर महिलाओं के लिए इस विशिष्ट मगर प्राचीन वाद्य को चुनना विरल सी बात है। विचित्रवीणा एक अत्यन्त कठिन वाद्य हैं। इसमें स्वर के परदे नही होते। यह वाद्य शालिग्राम से बजाया जाता हैं और यह आकार में बहुत बड़ा होता हैं। इस वाद्य की कठिनता के कारण इसका चलन प्रायः नहीं के बराबर है। राधिका ने इस वाद्य की लोकप्रियता बढाने के लिए इसमें परिवर्तन भी किए हैं। राधिका ने संगीत में ही हाल ही में अपना शोधप्रबंध भी पूरा किया हैं।

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