मूल अधिकार
[1]वे अधिकार जो लोगों के जीवन के लिये अति-आवश्यक या मौलिक समझे जाते हैं उन्हें मूल अधिकार (fundamental rights) कहा जाता है। प्रत्येक देश के लिखित अथवा अलिखित संविधान में नागरिक के मूल अधिकार को मान्यता दी गई है। ये मूल अधिकार नागरिक को निश्चात्मक (positive) रूप में प्राप्त हैं तथा राज्य की सार्वभौम सत्ता पर अंकुश लगाने के कारण नागरिक की दृष्टि से ऐसे अधिकार विषर्ययात्मक (negative) कहे जाते हैं। मूल अधिकार का एक दृष्टांत है "राज्य नागरिकों के बीच परस्पर विभेद नहीं करेगा"। प्रत्येक देश के संविधान में इसकी मान्यता
मूल अधिकारों का सर्वप्रथम विकास ब्रिटेन में हुआ जब १२१५ में सम्राट जॉन को ब्रिटिश जनता ने प्राचीन स्वतंत्रताओं को मान्यता प्रदान करेने हेतु "मैग्ना कार्टा" पर हस्ताक्षर करने को बाध्य कर दिया था। इसे भारत के संविधान का मैग्नार्टा भी कहते हैं। भारत के मूल अधिकार अमेरिका से लिए गए हैं।
मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे परन्तु वर्तमान में छः ही मौलिक अधिकार हैं| मौलिक अधिकार निम्नलिखित हैं [तथ्य वांछित]:
- समानता का अधिकार अनुच्छेद 14-18
- स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 19-22
- सम्पत्ति रखने का अधिकार(अब समाप्त हो गया)
- शोषण के विरूद्ध अधिकार अनुच्छेद 23-24
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 25-28
- शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार अनुच्छेद 29-30
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार अनुच्छेद 32
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- ↑ तनु श्री द्ववेदी; डॉ. रमेश चन्द्र मिश्रा (2023-08-16). "भारतीय संविधान में महिलाओं के अधिकार का विमर्श". International Journal of Advanced Research in Science, Communication and Technology: 382–384. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2581-9429. डीओआइ:10.48175/ijarsct-12464
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के मान की जाँच करें (मदद).