माध्यमान प्रमेय
गणित में, माध्यमान प्रमेय (mean value theorem) के अनुसार किन्हीं दो बिन्दुओं के मध्य दिये गये किसी चाप पर कम से कम एक ऐसा बिन्दु विद्यमान होगा जिसपर चाप की स्पर्शरेखा अन्तक विन्दुओं को मिलाने वाली छेदक रेखा के समानान्तर होगी।
यह प्रमेय अवकलन गणित और गणितीय विश्लेषण में महत्त्वपूर्ण परिणाम देता है और कलन का मूलभूत प्रमेय को सिद्ध करने में बहुत उपयोगी है। यह प्रमेय किसी फलन के किसी दिये गये अन्तराल में, इसके बिन्दुओं के मध्य अवकलज की स्थानिक परिकल्पना से सम्बंधित वैश्विक कथन को सिद्ध करने के लिए काम में ली जाता था।
दूसरे शब्दों में, यदि कोई फलन f बंद अंतराल [a, b] पर सतत है, जहाँ a<b है तथा विवृत अंतराल (a, b) पर अवकलनीय है तो (a, b) में कम से कम एक बिन्दु c इस प्रकार विद्यमान होगा कि
इतिहास
संपादित करेंसबसे पहले केरलीय गणित सम्प्रदाय के गणितज्ञ परमेश्वर (1370–1460) ने गोविन्दस्वामी और भास्कराचार्य के ग्रन्थों के भाष्य में माध्यमान प्रमेय के एक विशिष्ट रूप का वर्णन किया था।[2] सन १६९१ में माइकल रॉल ने माध्यमान प्रमेय के एक विशिष्ट रूप को सिद्ध किया जिसे अब रॉल प्रमेय कहा जाता है। सन १८२३ में ऑगस्टिन लुइस कौशी (1789–1857) ने माध्यमान प्रमेय को इसके आधुनिक रूप में प्रस्तुत किया और इसे सिद्ध भी किया।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ वाइसटीन, एरिक. "Mean-Value Theorem" [माध्य मान प्रमेय]. मैथवर्ल्ड (अंग्रेज़ी में). वोल्फार्म रिसर्च. मूल से 20 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १९ मार्च २०१५.
- ↑ J. J. O'Connor and E. F. Robertson (2000). Paramesvara Archived 2015-04-02 at the वेबैक मशीन, MacTutor History of Mathematics archive.