भारत के कई भागों के लोगों का कुलनाम मल्ल है।

मल्ल जाति के लोग द्वंद्वयुद्ध में बड़े निपुण होते थे; इसीलिये द्वंद्वयुद्ध का नाम 'मल्लयुद्ध' और कुश्ती लड़नेवाले का नाम 'मल्ल' पड़ गया है। इस जाति के लोग अखाड़ों में व्यायाम और युद्ध किया करते थे। महाभारत में मल्ल जाति, उनके राजा और उनके देश का उल्लेख हैं। प्राचीन भारतवर्ष के अनेक स्थान जैस मुलतान (मल्लस्यान), मालव, मालभूमि आदि में 'मल्ल' शब्द विकृत रूप में मिलता है। त्रिपिटक से कुशीनगर में मल्लों के राज्य का होना पाया जाता है। मनुस्मृति में मल्लों को लिछिबी (लिच्छाव) आदि के साथ क्षत्रिय' लिखा है। पर मल्ल क्षत्रिय जातियाँ बौद्ध मतावलंबी हो गई थी। इसका उल्लेख स्थान-स्थान पर त्रिपटक में मिलता है जिससे ब्राह्मणों के अधिकार से उनका निकल जाना और ब्रात्य होना ठीक जान पड़ता है और कदाचित् इललिये स्मृतियों मे वे 'व्रात्य' कह गए है।

मल्ल राजाओं की कुलदेवी मां भवानी देवी मंदिर कुशीनगर का मंदिर कुशीनगर के बुद्ध स्थली नाम से प्रचलित बुद्धा घाट परिसर में अवस्थित है। ऐसा माना जाता है कि पवित्र हिरण्यवती नदी के किनारे स्थित इस स्थान पर मल्ल युवराजों का मुकुट बंधन संस्कार सम्पन्न होता था[1]

महाभारत के काल में इनकी युद्धप्रणाली को राजा लोग इतना पसंद करते थे कि प्रायः सभी राजाओं के दरबार में मल्ल नियुक्त किए जाते थे और उन्हें अखाड़ों में लड़ाया जाता था। कितने लोग मल्लों को रखकर उनसे स्वयं शिक्षा प्राप्त करते थे और मल्लयुद्घ में निपुणता बड़े गौरव की बात मानी जाती थी। जरासंध और भीम मल्लयुद्ध के बड़े व्यसनी थे। जरासंध के यहाँ मल्लों की एक सेना भी थी।

इन्हें भी देखें

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  1. "उपेक्षित है मल्लों की कुल देवी का स्थान". Dainik Jagran. अभिगमन तिथि 2021-09-10.