भोटिया

चरवाहा भोटिया गड़रिया समुदाय नेपाल भूटान भारत का समुदाय

भोटिया, भारत की एक प्रमुख जनजाति है।

सिक्किम का एक वरिष्ठ अधिकारी, जो भोटिया जनजाति के थे (१९३८)

किरात-भील वंशीय भोटिया एक अर्धघुमंतु जनजाति है। कश्मीर के लद्दाख में इन्हे भोट और हिमाचल प्रदेश के किनोर में इन्हे भोट के नाम से जाना जाता है। जबकि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के तिब्बत व नेपाल से सटे सीमावर्ती क्षेत्र (भोट प्रदेश) में इन्हे 'भोटिया' कहा जाता है। भोटिया लोग नेपाल की कुल जनसंख्या का लगभग ०.१ प्रतिशत हैं। ये लोग व्यापारी होते हैं।

उपजातियाँ-मारछा, तोलछा, जोहरी, शोका, दरमिया, चोंदसी, व्यासी, जाड, जेठरा व छापड़ा (बखरिया) आदि उपजाति नामों से ये राज्य के पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी जिलों के उत्तरी भागों में स्थित भागीरथी, विष्णुगंगा, नीति, जड़गंगा,व्यास, जोहार व चोदश आदि घाटियों तथा वृहद हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में स्थित लगभग 291 ग्रामों मैं निवास करते हैं।

शारीरिक संरचना- शारीरिक संरचना की दृष्टि से ये तिब्बत एवम मंगोलियन जाती का मिश्रण है। इनका कद छोटा, सिर बड़ा चेहरा गोल, आंखे छोटी, वर्ण पीत लिए गौर, शरीर पर बालों की कमी तथा बालों का रंग भूरा होता है। आवास निवास भोटिया शीतकाल के अलावा वर्ष भर 2,134 से 3,648 मीटर की ऊंचाई वाले स्थानों, जहां चारागाह की सुविधा हो पर अपना आवास (मैत)बनाकर रहते है। शीतकाल के आरंभ होते ही ये अपने परिवार एवम पशुओं के साथ गोण्डा या मुनसा (शीतकालीन आवास) में आ जाते है। इनके आवास में लकड़ी का प्रयोग अधिक किया जाता है। दरवाजा छोटा बनाया जाता है।

भोजन- चावल या मुंडवा का भात (छाकू) सामान्य रोटी (कूटो) बड़े आकर की रोटी (पुली) पतोड़ा ज्यो मंडुवा गेहूं का सत्तू (सिल्दू) दाल सब्जी (छामा) व मांस इनके मुख्य भोजन है। मांस को ये शीतकाल के लिए सुखाकर रखते है।

साजामिक व्यवस्था- इनमे पित्सत्तात्मक एवम पितृ स्थानीय प्रकार का परिवार (मवासा) पाया जाता है। ये लोग परिवार के बुर्जुग को बहुत सम्मान देते है। संपति का विभाजन पिता के जीवित रहते हो जाता है। स्त्रियो को भी पुरुषों के समान ही अधिकार प्राप्त है।

धर्म - उत्तरकाशी में रहने वाली कुछ भोटिया जनजातियों के अलावा, जिन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया है, सभी हिंदू धर्म मानते है। भोटिया अपनी रक्षा तथा मनोकामनाएं की पूर्ति के लिए भूम्याल, ग्वाला, बैग रेग चिम, नंदादेवी, दुर्गा, कैलाशपर्वत, द्रोणागिरी हाथी पर्वत आदि देवी देवताओं की पूजा करते है।

मनोरंजन-तुबेरा (रसिया जैसे गीत) बाज्यू ( वीर रस प्रधान गीत), तिमली (सामाजिक विषय पर गीत) आदि इनके लोकगीत है। ये अपना विशेष वाद्ययंत्र हुडके को बजाकर मनोरंजन करते है।

अर्थव्यवस्था-इनका आर्थिक जीवन कृषि पशुपालन व्यापार व ऊनी दस्तकारी पर आधारित है। ये पर्वतीय ढालों पर ग्रीष्म काल में सीढ़ी नुमा खेती करते हैं। यहां पर झूम प्रणाली की तरह कटिल विधि से वनो को आग से साफ कर खेती योग्य भूमि तैयार करते है।

अब ये धीरे धीरे शिक्षा ग्रहण कर ये प्राइवेट व सरकारी सेवाओं से भी रोजगार प्राप्त करने लगे है।

इन्हें भी देखें

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