भारत सरकार अधिनियम १८५८
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भारत सरकार अधिनियम 1858, यूनाइटेड किंगडम की संसद द्वारा पारित किया गया एक अधिनियम था। यूनाइटेड किंगडम के तत्कालीन प्रधान मंत्री लॉर्ड पामस्टर्न ने भारत की मौजूदा व्यवस्था में गंभीर दोषों का हवाला देते हुए, ईस्ट इंडिया कंपनी से भारतीय उपनिवेश का नियंत्रण ब्रितानी राजशाही को हस्तांतरण के लिए एक विधेयक पेश किया। हालांकि, इस बिल के पारित होने से पहले, पामर्स्टन को एक अन्य मुद्दे पर इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। बाद में डर्बी के 14वें अर्ल (जो बाद में भारत के पहले राज्य सचिव बन गये) एडवर्ड स्मिथ स्टैनले ने एक और विधेयक पेश किया, जिसे मूल रूप से "एन एक्ट फॉर द बेटर गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया" के रूप में शीर्षक दिया गया था और इसे 1नवंबर 1858 को पारित किया गया था। इस अधिनियम के द्वारा भारत को सीधे ब्रितानी राजशाही के नाम पर शासित किया जाना था। [उद्धरण चाहिए]
1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार को इस अधिनियम पारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा था।अंग्रेजी शासक ने भारत के सैनिकों को चर्बी लगे हुए कारतूस इंतेमाल करके के लिए दिए परिणाम स्वरूप वहा भारतीय सेनाओं ने ईस्ट इंडियन कंपनी के खिलाफ नारेबाजी लगाई
भारत शासन अधिनियम,1858 में ही मुगल शासन को लिखित रूप से समाप्त कर दिया गया।
प्रावधान
संपादित करें- भारत में कंपनी के शासन को ब्रिटिश राजमुकुट में निहित किया जाना था, कंपनी के पास से यह अधिकार छीन लिया गया। भारत को ब्रिटेन की रानी के नाम पर भारत के राज्य सचिव के द्वारा शासित किया जाना था।
- कंपनी के निदेशक मंडल के अधिकार और कर्तव्य रानी के प्रधान सचिव को दिया गया जिसको भारत का राज्य सचिव कहा गया। यह अपने कार्यों के लिए ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदाई होता था। ब्रिटेन और भारत के बीच सभी संचार के लिए, राज्य सचिव वास्तविक चैनल बने।
- भारत के राज्य सचिव को परिषद के परामर्श के बिना सीधे भारत में कुछ गुप्त प्रेषण भेजने का अधिकार था। वह अपनी परिषद की विशेष समितियों का गठन करने के लिए भी अधिकृत था| इसका काम भारत से सम्बंदित सभी मामलो की जांच करना था। भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा का आयोजन भी इसी के द्वारा होता था।
- भारत के गवर्नर-जनरल का नाम "वायसराय" (राजमुकुट का प्रतिनिधि) कर दिया गया तथा वह भारत सचिव की आज्ञा के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य था। महारानी द्वारा भारत के वाइसरॉय की नियुक्ति की जाति थी।
- ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण स्थापित किया गया।
- नियंत्रक मंडल व संचालक मण्डल को समाप्त कर दिया गया।
- एक भारतीय सिविल सेवा राज्य सचिव के नियंत्रण में बनाई जानी थी।
- भारत के राज्य सचिव की मदद के लिए 15 सदस्य वाली एक परिषद् का गठन किया गया जिसको की भारतीय परिषद् कहा गया
- मुग़ल शासक का पद समाप्त कर दिया गया।
- अध्यादेश जारी करने का अधिकार वायसराय को दिया गया।
- कंपनी निजी बन गई।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- One Scholar's Bibliography इस अधिनियम के तहत विकटोरिया ने अमित सिहाग को परपोज़ किया लेकिन अमित ने विक्टोरिया को रिजेक्ट कर दिया
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