भारत के विदेश संबंध

अनुच्छेद 51

किसी भी देश की विदेश नीति इतिहास से गहरा सम्बन्ध रखती है। भारत की विदेश नीति भी इतिहास और स्वतन्त्रता आन्दोलन से सम्बन्ध रखती है। ऐतिहासिक विरासत के रूप में भारत की विदेश नीति आज उन अनेक तथ्यों को समेटे हुए है जो कभी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन से उपजे थे। शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व व विश्वशान्ति का विचार हजारों वर्ष पुराने उस चिन्तन का परिणाम है जिसे महात्मा बुद्धमहात्मा गांधी जैसे विचारकों ने प्रस्तुत किया था। इसी तरह भारत की विदेश नीति में उपनिवेशवाद, साम्राज्यवादरंगभेद की नीति का विरोध महान राष्ट्रीय आन्दोलन की उपज है।

██ भारत ██ भारतीय राजनयिक मिशन की मेजबानी करने वाले राष्ट्र

भारत गणराज्य अधिकतर देशों के साथ औपचारिक राजनयिक सम्बन्ध हैं। जनसंख्या की दृष्टि से यह दुनिया का सबसे बड़ा देश है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्रात्मक व्यवस्था वाला देश भी है और इसकी अर्थव्यवस्था विश्व की बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।[1]

प्राचीन काल में भी भारत के समस्त विश्व से व्यापारिक, सांस्कृतिक व धार्मिक सम्बन्ध रहे हैं। समय के साथ साथ भारत के कई भागों में कई अलग अलग राजा रहे, भारत का स्वरूप भी बदलता रहा किंतु वैश्विक तौर पर भारत के सम्बन्ध सदा बने रहे। सामरिक सम्बन्धों की बात की जाए तो भारत की विशेषता यही है कि वह कभी भी आक्रामक नहीं रहा।

1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने अधिकांश देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा है। वैश्विक मंचों पर भारत सदा सक्रिय रहा है। 1990 के बाद आर्थिक तौर पर भी भारत ने विश्व को प्रभावित किया है। सामरिक तौर पर भारत ने अपनी शक्ति को बनाए रखा है और विश्व शान्ति में यथासंभव योगदान करता रहा है। पाकिस्तानचीन के साथ भारत के संबंध कुछ तनावपूर्ण अवश्य हैं किन्तु रूस के साथ सामरिक संबंधों के अलावा, भारत का इजरायल और फ्रांस के साथ विस्तृत रक्षा संबंध है। चीन के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय प्रभाव के कारण हाल दिनों में भारत अमेरिका संबध घनिष्ठ हुए है।

भारत की विदेश नीति के निर्माण की अवस्था को निम्न प्रकार से समझा जा सकता हैः-

स्वतन्त्रता से पहले भारत की विदेश नीति का निर्माण

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यद्यपि स्वतन्त्रता से पहले भारत की विदेश नीति का विकास भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासनकाल में ही हुआ, लेकिन इससे पहले भी भारतीय चिन्तन में शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व, अहिंसा जैसे सिद्धान्तों के साथ-साथ कौटिल्य के चिन्तन में कूटनीतिक उपायों का भी वर्णन मिलता है। कुछ विद्वान तो आज भी यह मानते हैं कि विदेश नीति के कुछ उपकरण व साध्य कौटिल्य की ही देन है।

भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासनकाल में अंगरेजों ने भारत की विदेश नीति का निर्धारण अपने व्यापारिक हितों की सुरक्षा व उसकी वृद्धि को ध्यान में रखकर किया था। अंग्रेजों ने चीन, अफगानिस्तान तथा तिब्बत को बफ़र स्टेट माना। उन्होनें चीन में भी विशेष रुचि ली और भारत-चीन सीमा का निर्धारण किया। अंग्रेजों ने नेफा (अरुणाचल प्रदेश) को भारतीय सीमा में ही रखा और भूटानसिक्किम भारत की विदेश नीति के निर्माण की अवस्था व ऐतिहासिक विकास को विशेष महत्व दिया। उन्होंने अपने व्यापारिक शर्तों के लिए इस क्षेत्र में सुरक्षा का उत्तरदायित्व स्वयं संभाला।

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन व विदेश नीति

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भारत की विदेश नीति के आधुनिक सिद्धान्तों का निर्माण भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना होने के बाद ही हुआ। 1885 से ही कांग्रेस ने अंग्रेजों की दमनकारी नीति का विरोध करना शुरु कर दिया और कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धान्तों की नींव डाली जो आज भी भारत की विदेश नीति का आधार हैं।

1885 में पारित एक प्रस्ताव द्वारा कांग्रेस ने उत्तरी बर्मा को अपने क्षेत्र में मिला लेने के लिये ब्रिटेन की निन्दा की। इसी तरह 1892 में एक अन्य प्रस्ताव द्वारा भारत ने अपने आपको अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीतियों से स्वयं को स्वतन्त्र बताया। इसी दौरान कांग्रेस ने भारत को बर्मा, अफगानिस्तान, ईरान, तिब्बत आदि निकटवर्ती राज्यों के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही हेतु प्रयोग किये जाने पर असंतोष जताया गया। यह भारत की असंलग्नता की नीति की ही पृष्ष्ठभूमि थी। प्रथम विश्व युद्ध तक कांग्रेस का अंग्रेजों के प्रति दृष्ष्टिकोण-असंलग्नता की नीति का पालन अर्थात् ब्रिटिश नीतियों से स्वयं को दूर रखना ही रहा। इस दौरान कांग्रेस ने अंग्रेजों की साम्राज्यवादी व उपनिवेशवादी तथा दक्षिण अफ्रीका में लाई जा रही रंगभेद की नीति का विरोध किया जो आगे चलकर आधुनिक भारत की विदेश नीति का महत्वपूर्ण उद्देश्य व सिद्धान्त बनी।

प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1921 में कांग्रेस ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार की नीतियां भारत की नीतियां नहीं हैं और न ही वे किसी तरह भारत की प्रतिनिधि हो सकती। कांग्रेस ने यह भी घोषणा की कि भारत को अपने पड़ोसी देशों से कोई खतरा व असुरक्षा की भावना नहीं है। इसी कारण 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध में कांग्रेस ने अंग्रेजी हितों के लिए शामिल होने से मना कर दिया था। 1920 में चलाए गए खिलाफत आन्दोलन में भी भारत ने मुसलमानों का साथ दिया जो आज भी भारत की अरब समर्थक विदेश नीति का द्योतक है। भारत ने हमेशा ही अरब-इजराइल संकट में अरबों का ही पक्ष लिया है। इसी दौरान कांग्रेस ने उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद विरोधी सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और उपनिवेशवाद के शिकार देशों के साथ मिलकर अंग्रेजों की नीतियों की निन्दा की।

वैश्विक मंच पर भारत

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1947 से 1990: गुटनिरपेक्ष आंदोलन

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जून 1956 में पश्चिम जर्मनी की राजकीय यात्रा के दौरान चांसलर कोनराड एडेनॉयर और ड्यूश बैंक के अध्यक्ष हरमन जोसेफ एब्स के साथ नेहरू की मुलाकात।

1950 के दशक में, भारत ने पुरजोर रूप से अफ्रीका और एशिया में यूरोपीय उपनिवेशों की स्वतंत्रता का समर्थन किया और गुट निरपेक्ष आंदोलन में एक अग्रणी की भूमिका निभाई।[2]

हाल के वर्षों में, भारत ने क्षेत्रीय सहयोग और विश्व व्यापार संगठन के लिए एक दक्षिण एशियाई एसोसिएशन में प्रभावशाली भूमिका निभाई है। [3] भारत ने विभिन्न बहुपक्षीय मंचों, सबसे खासकर पूर्वी एशिया के शिखर बैठक और जी-8 5 में एक सक्रिय भागीदारी निभाई है। आर्थिक क्षेत्र में भारत का दक्षिण अमेरिका, एशिया, और अफ्रीका के विकासशील देशों के साथ घनिष्ठ संबंध है।[4]

प्रत्यर्पण संधियाँ

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जनवरी 2014 तक भारत 37 देशों के साथ अपराधि‍यों के प्रत्‍यार्पण की संधि‍ कर चुका है,[5] जिनकी सूची इस प्रकार है[6] -

सीमावर्ती/पड़ोसी देश

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2014 में भारत के नए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में सभी सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित करके पड़ोसियों के साथ भारत के रिश्तों में नई जान फूँक दी। इस घटना को वृहत "प्रमुख राजनयिक घटना" के रूप में भी देखा गया।[7][8]

  

 
अहमदाबाद में नरेंद्र मोदी के साथ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, 2014

दोनो देशों के बीच व्यापारिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, आदि सम्बंध होने के बावजूद पतले-से पथ पर डगमगाते हुए चलते आ रहे है। 1950 का दशक भारत और तिब्बत सम्बंध का स्वर्णिम युग था, जबतक कि चीन ने तिब्बत को चामडो के जंग के बाद अपने क्षेत्र में मिला लिया। भारत फिर धीरे-धीरे तिब्बत से दूर होता गया। दलाई लामा तिब्बत छोड़ भारत एक शरणार्थी बन कर आए थे, यह विषय भी चीन के साथ विवादित है।

भारत-चीनी रिश्ते तबतक ठीक थे, जबतक भारत ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा तब उस समय सुरक्षा परिषद की अद्यक्षता का प्रस्ताव ठुकरा कर चीन को सौंप दिया। लेकिन रिश्ते सबसे ज़्यादा पहली बार बीसवीं सदी में ख़राब हुए थे, जब भारत और चीन के बीच में अक्साई चिन को लेकर 1962 का युद्ध हुआ था, जिसमें चीन ने भारत को शिकस्त दी थी। तब एक समझौते के तहत इस निष्कर्ष पर दोनो पक्षों ने सहमति रखी, जिन्मे से एक यह थी कि जितनी ज़मीन चीन ने जंग में हासिल की, उतनी उस ज़मीन के सीमा को "वास्तविक नियंत्रण रेखा" कहा जाएगा। यह रेखा अक्साई चिन, लद्दाख़ से होते हुए, अरुणाचल प्रदेश के विवादित "मैकमोहन रेखा" तक जाती है।

साल 1967 में ना-थुला में एक सैन्य झड़प हुई थी, जिसमें भारत ने चीन को हरा दिया था। हालाँकि उसके 2 साल पहले भारत-पाकिस्तान का 1965 युद्ध हुआ था और भारत ने पाकिस्तान को शिकस्त दी थी। 2 साल में हालात थोड़े नाज़ुक थे, लेकिन भारत उससे जल्द ही उभर आया।

1950-70 में भारत के सम्बंध ताइवान के साथ भी थे, लेकिन भारत ने उससे भी दूरी बनने की शुरुआत धीरे की, और कहा कि वह चीन की मुख्य भूमि को ही मानता है। हालां की अब दोनो के रिश्ते सुधर रहे है।

चीन-भारत के रिश्ते सुधरते हुए एक नए मुक़ाम पर पहुचे, जब साल 2004 से दोनो के बीच आर्थिक सम्बंध सुधरे और वह एक-दूसरे के क़रीब आने लगे। लेकिन फिर दो ऐसी घटनाओं से स्थिति फिर बिगड़ी। 2017 में डोक़लाम विवाद हुआ, जब चीन ने भूटान के सीमा-निकट इस क्षेत्र पर सैन्य निर्माण करने की कोशिश की। भूटान ने इसका विरोध किया, और भारत से मदद माँगी, जिसके बाद भारत ने अपनी तरफ़ से सेना को भेजा। डेढ़-दो महीने के भारत और चीन के सैन्य गतिरोध पर पूर्ण विराम लगा, और एक सैन्य विराम पर दोनो सेना-अद्यक्षो ने अपने हस्ताक्षर किए। लेकिन साल 2020 की गलवान घाटी में झड़प ने बन रहे रिश्तों को और बिगाड़ दिया; लेकिन वर्ष 2021 के मध्य जनवरी को ख़बर आई की दोनो देशों के बीच मध्यसत्ता हुई, और दोनो ही अपने-अपने पूर्व सैन्य स्थानो में लौट आए। भारत में कोरोना-19 की महामारी ने भी रिश्तों में दरार डाली है, क्योंकि वह चीन के वुहान शहर से ये विषाणु फैला था, जिसने बाद में पूरे विश्व में संक्रमित हुआ, और, अमरीका के बाद दूसरे स्थान पर भारत को खड़ा कर दिया।

चीन के साथ सम्पर्क इसलिए भी बिगड़े हुए, क्योंकि चीन पाकिस्तान की ओर ज़्यादा तरफ़दारी करता है, कश्मीर मुद्दे पर भी वह उसका समर्थन करता है। संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद के पाँचो अद्यक्षो में से एक होने के कारण, चीन हर बार पाकिस्तान पर कड़ी कार्यवाही के प्रस्ताव पर उसे बचा लेता है। पाकिस्तान चीन के कई बड़े परियोजना कार्यों का आर्थिक लाभ उठाने की कोशिश करता है, जिसमें से चीन-पाक आर्थिक गलियारा एक महत्वपूर्ण परियोजना है। भारत इसका कड़ा विरोध करता है, क्योंकि जो अंतराष्ट्रीय राज्यमार्ग चीन से हो कर पाकिस्तान में दाख़िल होती है, वह पाकिस्तान द्वारा अधिकृत कश्मीर से हो कर गुज़रती है, जिसको लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच ताना-तानी है।

अभी संबंधो में नाजुकता है।

पाकिस्तान

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उनके बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और जातीय संबंधों के बावजूद, भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध 1947 में भारत के विभाजन के बाद से अविश्वास और संदेह के वर्षों से त्रस्त रहे हैं। भारत और उसके पश्चिमी पड़ोसी के बीच विवाद का प्रमुख स्रोत कश्मीर संघर्ष रहा है। पश्तून आदिवासियों और पाकिस्तानी अर्धसैनिक बलों के आक्रमण के बाद, जम्मू और कश्मीर के डोगरा साम्राज्य के हिंदू महाराजा, हरि सिंह और उसके मुस्लिम प्रधान मंत्री, शेख अब्दुल्ला ने नई दिल्ली के साथ एक विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए। पहला कश्मीर युद्ध भारतीय सेना द्वारा राज्य की राजधानी श्रीनगर में प्रवेश करने के बाद शुरू हुआ, ताकि क्षेत्र को हमलावर बलों से सुरक्षित किया जा सके। दिसंबर 1948 में नियंत्रण रेखा के साथ युद्ध समाप्त हो गया, जिसमें तत्कालीन रियासत को पाकिस्तान (उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों) और भारत (दक्षिणी, मध्य और उत्तरपूर्वी क्षेत्रों) द्वारा प्रशासित क्षेत्रों में विभाजित किया गया था। डोगरा साम्राज्य ने इसके साथ एक ठहराव समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद से पाकिस्तान ने विलय के साधन की वैधता का विरोध किया। 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्राल्टर की विफलता के बाद शुरू हुआ, जिसे भारत द्वारा शासन के खिलाफ विद्रोह को भड़काने के लिए जम्मू और कश्मीर में घुसपैठ करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। पांच सप्ताह के युद्ध में दोनों पक्षों के हजारों हताहत हुए। यह संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा अनिवार्य युद्धविराम और ताशकंद घोषणा के बाद जारी होने में समाप्त हुआ। 1971 में भारत और पाकिस्तान फिर से युद्ध के लिए गए, इस बार संघर्ष पूर्वी पाकिस्तान को लेकर हो रहा है। पाकिस्तान सेना द्वारा वहां किए गए बड़े पैमाने पर अत्याचारों के कारण लाखों बंगाली शरणार्थी भारत में आ गए। भारत ने मुक्ति वाहिनी के साथ मिलकर पाकिस्तान को हराया और पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी मोर्चे पर आत्मसमर्पण कर दिया। युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ।

1998 में, भारत ने पोखरण-द्वितीय परमाणु परीक्षण किया, जिसके बाद पाकिस्तान का छगई-I परीक्षण किया गया। फरवरी 1999 में लाहौर घोषणा के बाद, संबंधों में कुछ समय के लिए सुधार हुआ। हालांकि, कुछ महीने बाद, पाकिस्तानी अर्धसैनिक बलों और पाकिस्तानी सेना ने भारतीय कश्मीर के कारगिल जिले में बड़ी संख्या में घुसपैठ की। इसने घुसपैठियों को सफलतापूर्वक खदेड़ने के लिए भारत के हजारों सैनिकों के जाने के बाद कारगिल युद्ध की शुरुआत की। हालांकि इस संघर्ष के परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्ण पैमाने पर युद्ध नहीं हुआ, लेकिन दिसंबर 1999 में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 814 के अपहरण में पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों के शामिल होने के बाद दोनों के बीच संबंध अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए। जुलाई 2001 में आयोजित आगरा शिखर सम्मेलन जैसे संबंधों को सामान्य करने के प्रयास विफल रहे। दिसंबर २००१ में भारतीय संसद पर हुए हमले, जिसके लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराया गया था, जिसने हमले की निंदा की थी, दोनों देशों के बीच सैन्य गतिरोध का कारण बना, जो लगभग एक साल तक चला, जिससे परमाणु युद्ध की आशंका बढ़ गई। हालाँकि, 2003 में शुरू की गई एक शांति प्रक्रिया ने बाद के वर्षों में संबंधों में सुधार किया।

शांति प्रक्रिया की शुरुआत के बाद से, भारत और पाकिस्तान के बीच कई विश्वास-निर्माण-उपायों (सीबीएम) ने आकार लिया है। समझौता एक्सप्रेस और दिल्ली-लाहौर बस सेवा इन सफल उपायों में से दो हैं जिन्होंने दोनों देशों के बीच लोगों से लोगों के संपर्क को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2005 में श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस सेवा की शुरुआत और 2008 में नियंत्रण रेखा के पार एक ऐतिहासिक व्यापार मार्ग का उद्घाटन संबंधों को बेहतर बनाने के लिए दोनों पक्षों के बीच बढ़ती उत्सुकता को दर्शाता है। हालांकि मार्च 2007 में भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, लेकिन 2010 तक इसके 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार करने की उम्मीद है। 2005 के कश्मीर भूकंप के बाद, भारत ने पाकिस्तानी कश्मीर और पंजाब के साथ-साथ भारतीय कश्मीर में प्रभावित क्षेत्रों में सहायता भेजी। .

2008 के मुंबई हमलों ने दोनों देशों के बीच संबंधों को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया। भारत ने पाकिस्तान पर अपनी धरती पर आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप लगाया, जबकि पाकिस्तान ने इस तरह के दावों का जोरदार खंडन किया।

भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नया अध्याय तब शुरू हुआ जब 2014 के चुनाव में जीत के बाद नई एनडीए सरकार ने दिल्ली में कार्यभार संभाला और शपथ ग्रहण समारोह में सार्क सदस्यों के नेताओं को आमंत्रित किया। इसके बाद 25 दिसंबर को भारतीय प्रधान मंत्री की अनौपचारिक यात्रा पाकिस्तानी प्रधान मंत्री नवाज शरीफ को उनके जन्मदिन पर बधाई देने और उनकी बेटी की शादी में भाग लेने के लिए। यह आशा की गई थी कि पड़ोसी के बीच संबंध सुधरेंगे लेकिन १८ सितंबर २०१६ को पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा भारतीय सेना के शिविर पर हमले और बाद में भारत द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक ने राष्ट्रों के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों को बढ़ा दिया।

इस्लामाबाद में होने वाले सार्क शिखर सम्मेलन को भारत और अन्य सार्क सदस्यों द्वारा बहिष्कार के बाद रद्द कर दिया गया था।

फरवरी 2019 में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े एक आतंकवादी द्वारा सीआरपीएफ पर एक और हमले के बाद इस संबंध ने और भी अधिक तोड़ दिया। भारत ने पाकिस्तान को दोषी ठहराया जिसे पाकिस्तानी प्रतिष्ठान ने नकार दिया। भारत ने बालाकोट पर एक हवाई हमले के साथ जवाबी कार्रवाई की, एक क्षेत्र जिसका दावा और नियंत्रण पाकिस्तान द्वारा किया गया था।

शांति में एक नया अध्याय प्रज्वलित हुआ, जब यह अचानक घोषित किया गया कि दोनों पक्षों की सेनाओं के बीच एलओसी के पार सीमा पार से गोलीबारी को रोकने के लिए एक पिछले दरवाजे पर शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।[9]

अफ़गानिस्तान

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हामिद करज़ई के साथ नरेंद्र मोदी

भारत और अफगानिस्तान ऐतिहासिक पड़ोसी रहे हैं, और बॉलीवुड और क्रिकेट के माध्यम से सांस्कृतिक संबंध साझा करते हैं।

1980 के दशक में सोवियत समर्थित लोकतांत्रिक गणराज्य अफगानिस्तान को मान्यता देने वाला भारत गणराज्य एकमात्र दक्षिण एशियाई देश था, हालांकि 1990 के दशक के अफगान गृहयुद्ध और तालिबान सरकार के दौरान संबंध कम हो गए थे। भारत ने तालिबान को उखाड़ फेंकने में सहायता की और अफगानिस्तान के वर्तमान इस्लामी गणराज्य को मानवीय और पुनर्निर्माण सहायता का सबसे बड़ा क्षेत्रीय प्रदाता बन गया। अफगानिस्तान में भारत के पुनर्निर्माण प्रयासों के तहत भारतीय विभिन्न निर्माण परियोजनाओं में काम कर रहे हैं। पाकिस्तान का आरोप है कि भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ पाकिस्तान को बदनाम करने और विद्रोहियों को प्रशिक्षित करने और समर्थन देने के लिए कवर में काम कर रही है, एक दावा भारत द्वारा दृढ़ता से खारिज कर दिया गया।

तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजई के एक चचेरे भाई ने 2007 में कहा था कि भारत "अफगानिस्तान का सबसे पोषित भागीदार है।" अप्रैल 2017 में भारत में अफगानिस्तान के राजदूत शाइदा मोहम्मद अब्दाली ने बताया कि भारत "अफगानिस्तान का सबसे बड़ा क्षेत्रीय दाता है।" और 3 बिलियन डॉलर से अधिक की सहायता के साथ विश्व स्तर पर पांचवां सबसे बड़ा दानदाता। भारत ने 200 से अधिक सार्वजनिक और निजी स्कूलों का निर्माण किया है, 1,000 से अधिक छात्रवृत्तियों को प्रायोजित किया है, 16,000 से अधिक अफगान छात्रों की मेजबानी की है।" काबुल में 2008 में भारतीय दूतावास की बमबारी के बाद, अफगान विदेश मंत्रालय ने भारत को "भाई देश" के रूप में उद्धृत किया और दोनों के बीच के रिश्ते को "कोई दुश्मन बाधा नहीं डाल सकता"। अफगानिस्तान और भारत के बीच संबंधों को 2011 में एक रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर के साथ एक बड़ा बढ़ावा मिला, जो 1979 के सोवियत आक्रमण के बाद अफगानिस्तान का पहला था।

२०१० के गैलप पोल के अनुसार, जिसमें १,००० वयस्कों का साक्षात्कार हुआ, ५०% अफगानों ने भारत के नेतृत्व के काम के प्रदर्शन को मंजूरी दी और ४४% ने जवाब देने से इनकार कर दिया। यह एशिया के किसी अन्य देश द्वारा भारत की उच्चतम अनुमोदन रेटिंग थी। सर्वेक्षण के अनुसार, चीनी या अमेरिकी नेतृत्व की तुलना में अफगान वयस्कों द्वारा भारत के नेतृत्व को स्वीकार करने की अधिक संभावना है।

  

भारत और नेपाल के बीच संबंध घनिष्ठ हैं, लेकिन सीमा विवाद, भूगोल, अर्थशास्त्र, बड़ी शक्ति-छोटे शक्ति संबंधों में निहित समस्याओं और दोनों देशों की सीमाओं को ओवरलैप करने वाली सामान्य जातीय और भाषाई पहचान से उत्पन्न कठिनाइयों से भरा हुआ है। १९५० में नई दिल्ली और काठमांडू ने शांति और मित्रता की संधि और दोनों देशों के बीच सुरक्षा संबंधों को परिभाषित करने वाले गुप्त पत्रों के साथ अपने अंतर्संबंधित संबंधों की शुरुआत की, और द्विपक्षीय व्यापार और व्यापार दोनों को नियंत्रित करने वाला एक समझौता जो भारतीय धरती को पार करता है। 1950 की संधि और पत्रों में कहा गया है कि "न तो सरकार एक विदेशी हमलावर द्वारा दूसरे की सुरक्षा के लिए किसी भी खतरे को बर्दाश्त करेगी" और दोनों पक्षों को "किसी भी पड़ोसी राज्य के साथ किसी भी गंभीर घर्षण या गलतफहमी के बारे में एक-दूसरे को सूचित करने के लिए बाध्य किया, जिससे किसी भी उल्लंघन की संभावना हो। मैत्रीपूर्ण संबंध दोनों सरकारों के बीच मौजूद हैं", और भारतीय और नेपाली नागरिकों को एक दूसरे के क्षेत्र में किसी भी आर्थिक गतिविधि जैसे काम और व्यवसाय से संबंधित गतिविधि में शामिल होने का अधिकार भी दिया। इन समझौतों ने भारत और नेपाल के बीच एक "विशेष संबंध" को मजबूत किया जिसने भारत में नेपालियों को भारतीय नागरिकों के समान आर्थिक और शैक्षिक अवसर प्रदान किए।

 
2014 में नेपाल के काठमांडू में 18वें दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी

भारत और नेपाल के बीच संबंध 1989 के दौरान अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए जब भारत ने नेपाल की 13 महीने की लंबी आर्थिक नाकेबंदी लगा दी। भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में नेपाल का दौरा किया, लगभग 17 वर्षों में किसी भारतीय प्रधान मंत्री द्वारा पहली बार।

2015 में, भारत-नेपाल सीमा की नाकेबंदी ने संबंधों को प्रभावित किया है। नाकाबंदी का नेतृत्व नेपाल के हाल ही में घोषित नए संविधान से नाराज जातीय समुदायों द्वारा किया जा रहा है। हालांकि, नेपाली सरकार भारत पर प्रतिबंध को जानबूझकर खराब करने का आरोप लगाती है, लेकिन भारत इससे इनकार करता है। भारत ने 2015 काठमांडू भूकंप के दौरान 1 बिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता और ऑपरेशन मैत्री शुरू करने के दौरान नेपाल की सहायता की थी।

 
प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 में नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से मुलाकात की।

2020 के मध्य के दौरान संबंध तनावपूर्ण हो गए, जब यह बताया गया कि 12 जुलाई को बिहार की भारत-नेपाल सीमा पर नेपाली पुलिस द्वारा गोलीबारी की गई थी। नेपाली प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओली ने कोरोनावायरस की महामारी के बारे में टिप्पणी की कि "भारतीय वायरस अधिक था। घातक" जो वुहान से फैला था। जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, भारतीय क्षेत्रों पर भी कुछ दावे किए गए, उदाहरण के लिए, उत्तराखंड के कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख। इसी तरह, सांस्कृतिक रूप से भी दावे किए गए, जब यह कहा गया कि हिंदू भगवान राम नेपाली थे, उनका जन्म बीरगंज के पश्चिम में थोरी में हुआ था, और उत्तर प्रदेश में अयोध्या नकली थी। कुछ भारतीय मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ नेपाल में भारतीयों के लिए नियम सख्त किए गए। भारतीय मीडिया ने कहा कि ओली सरकार के कार्यों से संबंधों में खटास आ रही थी, "और ये चीन के निर्देश पर किए जा रहे थे और चीनी राजदूत होउ यांकी द्वारा प्रेरित थे"। कयास लगाए जा रहे थे कि चूंकि एलएसी की झड़प के बाद चीन भारत को सीधे तौर पर नहीं संभाल सकता, इसलिए वह अपने पड़ोसी देशों को फंसाकर भारत के खिलाफ भड़का रहा है। अगस्त में, नेपाल के सीमावर्ती राज्यों के क्षेत्रों पर चीनी "अवैध कब्जे" के बारे में रिपोर्टें थीं।

  

ऐतिहासिक रूप से भारत के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं। दोनों देशों ने 1949 में एक मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए, जहां भारत भूटान को विदेशी संबंधों में सहायता करेगा। 8 फरवरी 2007 को, भूटानी राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक के तहत भारत-भूटान मैत्री संधि को काफी हद तक संशोधित किया गया था। जबकि 1949 की संधि में अनुच्छेद 2 के रूप में पढ़ा गया "भारत सरकार भूटान के आंतरिक प्रशासन में कोई हस्तक्षेप नहीं करने का वचन देती है। अपनी ओर से भूटान सरकार इसके संबंध में भारत सरकार की सलाह से निर्देशित होने के लिए सहमत है। बाहरी संबंध।"

संशोधित संधि में अब यह पढ़ता है, "भूटान और भारत के बीच घनिष्ठ मित्रता और सहयोग के स्थायी संबंधों को ध्यान में रखते हुए, भूटान साम्राज्य की सरकार और भारत गणराज्य की सरकार संबंधित मुद्दों पर एक दूसरे के साथ मिलकर सहयोग करेगी। उनके राष्ट्रीय हितों के लिए। कोई भी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा और दूसरे के हित के लिए हानिकारक गतिविधियों के लिए अपने क्षेत्र के उपयोग की अनुमति नहीं देगी"। संशोधित संधि में प्रस्तावना भी शामिल है "एक दूसरे की स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए उनके सम्मान की पुष्टि", एक ऐसा तत्व जो पहले के संस्करण में अनुपस्थित था। 2007 की भारत-भूटान मैत्री संधि भूटान की स्थिति को एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में मजबूत करती है।

भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापार और विकास भागीदार बना हुआ है। भूटान में नियोजित विकास के प्रयास 1960 के दशक की शुरुआत में शुरू हुए। भूटान की पहली पंचवर्षीय योजना (FYP) 1961 में शुरू की गई थी। तब से, भारत भूटान की FYPs को वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। १०वीं पंचवर्षीय योजना जून २०१३ में समाप्त हुई। १०वीं पंचवर्षीय योजना के लिए भारत की समग्र सहायता रु. पनबिजली परियोजनाओं के लिए अनुदान को छोड़कर 5000 करोड़। भारत ने रु. भूटान की 11वीं पंचवर्षीय योजना के लिए 4500 करोड़ रुपये सहित। आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज के रूप में 500 करोड़।

 
भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी और भूटान के पीएम शेरिंग तोबगे

जलविद्युत क्षेत्र द्विपक्षीय सहयोग के मुख्य स्तंभों में से एक है, जो भारत को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करके पारस्परिक रूप से लाभकारी तालमेल का उदाहरण देता है और भूटान को राजस्व निर्यात करता है (भूटान के सकल निर्यात में बिजली का योगदान 14% है, जिसमें भूटान के कुल निर्यात का लगभग 35% शामिल है)। तीन जलविद्युत परियोजनाएं (HEPs) कुल १४१६ मेगावाट, (३३६ मेगावाट चुखा एचईपी, ६० मेगावाट कुरिचु एचईपी, और १०२० मेगावाट ताला एचईपी), पहले से ही भारत को बिजली का निर्यात कर रही हैं। 2008 में दोनों सरकारों ने 10,000 मेगावाट की कुल उत्पादन क्षमता के साथ विकास के लिए दस और परियोजनाओं की पहचान की। इनमें से, कुल 2940 मेगावाट (1200 मेगावाट पुनात्सांगचु-I, 1020 मेगावाट पुनात्सांगचु-द्वितीय और 720 मेगावाट मंगदेचु एचईपी) निर्माणाधीन हैं और 2017-2018 की अंतिम तिमाही में चालू होने के लिए निर्धारित हैं। शेष ७ एचईपी में से २१२० मेगावाट (६०० मेगावाट खोलोंगछू, १८० मेगावाट बुनखा, ५७० मेगावाट वांगचू और ७७० मेगावाट चमकरचू) की कुल ४ परियोजनाओं का निर्माण संयुक्त उद्यम मॉडल के तहत किया जाएगा, जिसके लिए दोनों सरकारों के बीच एक फ्रेमवर्क अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। 2014 में। इन 4 जेवी-मॉडल परियोजनाओं में से खोलोंगछु एचईपी के लिए पूर्व-निर्माण गतिविधियां शुरू हो गई हैं। टाटा पावर भूटान में एक हाइड्रो-इलेक्ट्रिक बांध भी बना रहा है।

भारत ने 2017 में डोकलाम में अपने सैनिकों को तैनात करके भूटान की सहायता की थी- भूटानी सरकार के तहत दावा और नियंत्रित क्षेत्र- चीनी सेना के नियंत्रण और सैन्य संरचनाओं के निर्माण का विरोध करने के लिए।

बांग्लादेश

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भारत दूसरा देश था जिसने बांग्लादेश को एक अलग और स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दी, ऐसा 6 दिसंबर 1971 को किया। भारत ने बांग्लादेशियों के साथ 1971 में बांग्लादेश को पश्चिमी पाकिस्तान से मुक्त कराने के लिए लड़ाई लड़ी। भारत के साथ बांग्लादेश के संबंध सिंचाई और भूमि सीमा के मामले में कठिन रहे हैं। 1976 के बाद के विवाद। हालाँकि, 1972 और 1996 में अवामी लीग द्वारा गठित सरकारों के दौरान भारत के बांग्लादेश के साथ अनुकूल संबंध रहे हैं। भूमि और समुद्री विवादों के हालिया समाधानों ने संबंधों में अड़चनें दूर की हैं।

शुरुआत में बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध मजबूत नहीं हो सकते थे, क्योंकि 1971 में भारत की आज़ादी और पाकिस्तान के खिलाफ़ विरोध का पूरा समर्थन था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, कई शरणार्थी भारत भाग गए थे। जब नवंबर 1971 में प्रतिरोध का संघर्ष परिपक्व हुआ, तो भारत ने भी सैन्य रूप से हस्तक्षेप किया और इंदिरा गांधी की वाशिंगटन, डी.सी. यात्रा के माध्यम से इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करने में मदद की हो सकती है। बाद में भारत ने राहत और पुनर्निर्माण सहायता प्रदान की। भारत ने १९७१ में युद्ध की समाप्ति से पहले (भूटान के बाद ऐसा करने वाला दूसरा देश) बांग्लादेश को मान्यता प्रदान की और बाद में दूसरों को भी इसका पालन करने के लिए पैरवी की। भारत ने भी बांग्लादेश की भूमि से अपनी सेना वापस ले ली जब शेख मुजीबुर रहमान ने 1972 में ढाका की बाद की यात्रा के दौरान इंदिरा गांधी से ऐसा करने का अनुरोध किया।

अगस्त 1975 में मुजीब सरकार के पतन के बाद से भारत-बांग्लादेश संबंध कुछ हद तक कम मैत्रीपूर्ण रहे हैं। [113] वर्षों से दक्षिण तलपट्टी द्वीप, तीन बीघा कॉरिडोर और नेपाल तक पहुंच, फरक्का बैराज और पानी के बंटवारे, त्रिपुरा के पास सीमा संघर्ष और अधिकांश सीमा पर बाड़ के निर्माण जैसे मुद्दों पर भारत प्रवासियों के खिलाफ सुरक्षा प्रावधान के रूप में व्याख्या करता है। , विद्रोही और आतंकवादी। कई बांग्लादेशियों को लगता है कि भारत बांग्लादेश सहित छोटे पड़ोसियों के लिए "बड़े भाई" की भूमिका निभाना पसंद करता है। नरम भारतीय विदेश नीति और नई अवामी लीग सरकार के कारण 1996 में द्विपक्षीय संबंध गर्म हुए। गंगा नदी के लिए एक 30 साल के जल-बंटवारे समझौते पर दिसंबर 1996 में हस्ताक्षर किए गए थे, 1988 में गंगा नदी के लिए पहले के द्विपक्षीय जल-साझाकरण समझौते के बाद। दोनों देशों ने बाढ़ की चेतावनी और तैयारियों के मुद्दे पर भी सहयोग किया है। बांग्लादेश सरकार और आदिवासी विद्रोहियों ने दिसंबर 1997 में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत भारत में भाग गए आदिवासी शरणार्थियों की वापसी की अनुमति दी गई, जो कि 1986 में चटगांव हिल ट्रैक्ट्स में अपनी मातृभूमि में विद्रोह के कारण हुई हिंसा से बचने के लिए था। बांग्लादेश की सेना आज भी इस क्षेत्र में बहुत मजबूत उपस्थिति बनाए हुए है। अवैध मादक द्रव्यों की खेती की बढ़ती समस्या को लेकर सेना लगातार चिंतित है।

सीमा क्षेत्र के साथ भूमि के छोटे टुकड़े भी हैं जिन्हें बांग्लादेश कूटनीतिक रूप से पुनः प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है। 1971 से पहले सिलहट डिवीजन का हिस्सा पडुआ, 1971 में युद्ध के बाद से भारतीय नियंत्रण में है। इस छोटी सी पट्टी पर 2001 में बीडीआर द्वारा फिर से कब्जा कर लिया गया था, लेकिन बाद में बांग्लादेश सरकार द्वारा इस समस्या को हल करने का फैसला करने के बाद भारत को वापस दे दिया गया। राजनयिक वार्ता। भारतीय न्यू मूर द्वीप अब मौजूद नहीं है, लेकिन बांग्लादेश बार-बार दावा करता है कि [११४] यह बांग्लादेश के सतखिरा जिले का हिस्सा है।

हाल के वर्षों में भारत ने तेजी से शिकायत की है कि बांग्लादेश अपनी सीमा को ठीक से सुरक्षित नहीं करता है। यह गरीब बांग्लादेशियों के बढ़ते प्रवाह से डरता है और यह बांग्लादेश पर उल्फा और कथित आतंकवादी समूहों जैसे भारतीय अलगाववादी समूहों को शरण देने का आरोप लगाता है। बांग्लादेश सरकार ने इन आरोपों को मानने से इनकार कर दिया है. भारत का अनुमान है कि भारत में दो करोड़ से अधिक बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं। एक बांग्लादेशी अधिकारी ने जवाब दिया कि "भारत में एक भी बांग्लादेशी प्रवासी नहीं है"। २००२ से, भारत २५०० मील की सीमा पर एक भारत-बांग्लादेश बाड़ का निर्माण कर रहा है। [११९] प्रवासन विवादों को हल करने में विफलता अवैध प्रवासियों के लिए मानवीय लागत वहन करती है, जैसे कारावास और स्वास्थ्य जोखिम (अर्थात् एचआईवी/एड्स)।

भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना ने भारत और बांग्लादेश के बीच विवादों को हल करके अपनी गन्दा साझा सीमा को फिर से बनाने और वहां एक ऐतिहासिक सौदा पूरा किया है। बांग्लादेश ने भारत को अपने पूर्वोत्तर राज्यों में बांग्लादेश से यात्रा करने के लिए पारगमन मार्ग भी दिया है। 7 जून 2015 को भारत और बांग्लादेश के बीच मुक्त व्यापार समझौता भी हुआ।

दोनों देशों ने 6 जून 2015 को अपना सीमा विवाद सुलझा लिया। रेलवे के माध्यम से कोलकाता को बांग्लादेश के माध्यम से त्रिपुरा से जोड़ने के लिए, केंद्र सरकार ने 10 फरवरी 2016 को लगभग 580 करोड़ रुपये मंजूर किए। जिस परियोजना के 2017 तक पूरा होने की उम्मीद है, वह बांग्लादेश से होकर गुजरेगी। भारतीय रेलवे और बांग्लादेश रेलवे के बीच अगरतला-अखौरा रेल-लिंक कोलकाता से अगरतला के बीच सिलीगुड़ी के बीच मौजूदा 1700 किलोमीटर की सड़क दूरी को रेलवे द्वारा केवल 350 किलोमीटर तक कम कर देगा। यह परियोजना प्रधान मंत्री की 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' पर उच्च स्थान पर है, और भारत और बांग्लादेश के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने और व्यापार को बढ़ावा देने की उम्मीद है।

म्यांमार

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1948 में ग्रेट ब्रिटेन से बर्मा की स्वतंत्रता के बाद भारत ने राजनयिक संबंध स्थापित किए। कई वर्षों तक, सांस्कृतिक संबंधों, फलते-फूलते वाणिज्य, क्षेत्रीय मामलों में सामान्य हितों और बर्मा में एक महत्वपूर्ण भारतीय समुदाय की उपस्थिति के कारण भारत-बर्मा संबंध मजबूत थे।[10] जब म्यांमार क्षेत्रीय विद्रोहों से जूझ रहा था तब भारत ने काफी सहायता प्रदान की थी। हालांकि, बर्मा की सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार को उखाड़ फेंकने से संबंधों में तनाव पैदा हो गया। दुनिया के अधिकांश हिस्सों के साथ, भारत ने लोकतंत्र के दमन की निंदा की और म्यांमार ने बर्मी भारतीय समुदाय के निष्कासन का आदेश दिया, जिससे दुनिया से खुद का अलगाव बढ़ गया।[10][11] केवल चीन ने म्यांमार के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखा जबकि भारत ने लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का समर्थन किया। [10][12][13]

 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की 2016 में हैदराबाद हाउस, नई दिल्ली में संयुक्त प्रेस वक्तव्य में।

हालांकि, भू-राजनीतिक चिंताओं के कारण, भारत ने अपने संबंधों को पुनर्जीवित किया और 1993 में सैन्य जुंटा सत्तारूढ़ म्यांमार को मान्यता दी, नशीले पदार्थों की तस्करी, लोकतंत्र के दमन और म्यांमार में सैन्य शासन के शासन पर काबू पाने के लिए। म्यांमार पूर्वोत्तर भारत में मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश राज्यों के दक्षिण में स्थित है। और चीन जनवादी गणराज्य की निकटता भारत-बर्मा संबंधों को सामरिक महत्व देती है। भारत-बर्मा सीमा १,६०० किलोमीटर[14] तक फैली हुई है और उत्तर-पूर्वी भारत में कुछ विद्रोही म्यांमार में शरण लेते हैं। नतीजतन, भारत अपनी उग्रवाद विरोधी गतिविधियों में म्यांमार के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाने का इच्छुक रहा है। 2001 में, भारतीय सेना ने म्यांमार के साथ अपनी सीमा पर एक प्रमुख सड़क का निर्माण पूरा किया। भारत इस क्षेत्र में अपने सामरिक प्रभाव को बढ़ाने और इंडोचीन प्रायद्वीप में चीन की बढ़ती प्रगति का मुकाबला करने के प्रयास में म्यांमार के भीतर प्रमुख सड़कों, राजमार्गों, बंदरगाहों और पाइपलाइनों का निर्माण भी कर रहा है। भारतीय कंपनियों ने भी म्यांमार में तेल और प्राकृतिक गैस की खोज में सक्रिय भागीदारी की मांग की है। फरवरी 2007 में, भारत ने सित्तवे बंदरगाह को विकसित करने की योजना की घोषणा की, जो कलादान नदी के माध्यम से मिजोरम जैसे भारतीय पूर्वोत्तर राज्यों से समुद्र तक पहुंच को सक्षम करेगा।

भारत बर्मी तेल और गैस का प्रमुख ग्राहक है। 2007 में, म्यांमार को भारतीय निर्यात कुल 185 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि म्यांमार से इसके आयात का मूल्य लगभग 810 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसमें ज्यादातर तेल और गैस शामिल थे।[15] भारत ने म्यांमार में राजमार्ग अवसंरचना परियोजनाओं के लिए 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दिया है, जबकि बर्मी रेलवे को अपग्रेड करने के लिए 57 मिलियन अमेरिकी डॉलर की पेशकश की गई है। सड़क और रेल परियोजनाओं के लिए और 27 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान का वादा किया गया है।[16] भारत उन कुछ देशों में से एक है, जिन्होंने बर्मी जनता को सैन्य सहायता प्रदान की है।[17] हालांकि, बर्मा को अपनी कुछ सैन्य आपूर्ति में कटौती करने के लिए भारत पर दबाव बढ़ रहा है।[18] दोनों के बीच संबंध घनिष्ठ बने हुए हैं जो चक्रवात नरगिस के बाद में स्पष्ट हो गया था, जब भारत उन कुछ देशों में से एक था, जिनके राहत और बचाव सहायता प्रस्तावों को म्यांमार के सत्तारूढ़ जुंटा ने स्वीकार कर लिया था।[19]

दोनों भारत में रंगून में दूतावास और मांडले में वाणिज्य दूतावास-जनरल हैं।

श्रीलंका

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श्रीलंका और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों का ऐतिहासिक रूप से अच्छा संबंध रहा है। श्रीलंका भी भारतीय महाकाव्य रामायण में मुख्य फोकस बिंदु में से एक है, जो रावण का देश है जिसने सीता का अपहरण किया था। दोनों देश लगभग समान नस्लीय और सांस्कृतिक संबंध साझा करते हैं। पारंपरिक श्रीलंकाई इतिहास (दीपवंसा) के अनुसार, श्रीलंका के राजा देवनमपिया तिस्सा के शासनकाल के दौरान, भारतीय सम्राट अशोक के पुत्र आदरणीय महिंदा द्वारा चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में श्रीलंका में बौद्ध धर्म की शुरुआत की गई थी। इस समय के दौरान, बोधि वृक्ष का एक पौधा श्रीलंका लाया गया और पहले मठों और बौद्ध स्मारकों की स्थापना की गई।

 
श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आवास, नई दिल्ली में पीएम मोदी के साथ (2018)

फिर भी, स्वतंत्रता के बाद के संबंध श्रीलंकाई गृहयुद्ध और गृहयुद्ध के दौरान भारतीय हस्तक्षेप की विफलता के साथ-साथ तमिल टाइगर उग्रवादियों के लिए भारत के समर्थन से प्रभावित हुए। भारत श्रीलंका का एकमात्र पड़ोसी देश है, जो पाक जलसंधि से अलग हुआ है; दोनों राष्ट्र दक्षिण एशिया में एक रणनीतिक स्थिति पर काबिज हैं और हिंद महासागर में एक सामान्य सुरक्षा छतरी बनाने की मांग की है।

हाल के दिनों में भारत-श्रीलंका संबंधों में गुणात्मक और मात्रात्मक परिवर्तन हुआ है। राजनीतिक संबंध घनिष्ठ हैं, व्यापार और निवेश में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है, अवसंरचनात्मक संबंधों को लगातार बढ़ाया जा रहा है, रक्षा सहयोग में वृद्धि हुई है और द्विपक्षीय सहयोग के सभी क्षेत्रों में एक सामान्य, व्यापक-आधारित सुधार हुआ है। दिसंबर 2004 में सुनामी के बाद सहायता के लिए श्रीलंका के अनुरोध का जवाब देने वाला भारत पहला देश था। जुलाई 2006 में, भारत ने लेबनान से 430 श्रीलंकाई नागरिकों को निकाला, पहले भारतीय नौसेना के जहाजों द्वारा साइप्रस और फिर विशेष एयर इंडिया द्वारा दिल्ली और कोलंबो भेजा गया। उड़ानें।

श्रीलंका के विदेश संबंधों के मैट्रिक्स में भारत की प्रधानता पर श्रीलंका की राजनीति के भीतर एक व्यापक सहमति मौजूद है। श्रीलंका में दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों, श्रीलंका फ्रीडम पार्टी और यूनाइटेड नेशनलिस्ट पार्टी ने पिछले दस वर्षों में द्विपक्षीय संबंधों के तेजी से विकास में योगदान दिया है। श्रीलंका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया है।

  

मालदीव की विदेश नीति पर भारत का काफी प्रभाव है और विशेष रूप से 1988 में ऑपरेशन कैक्टस के बाद व्यापक सुरक्षा सहयोग प्रदान करता है, जिसके दौरान भारत ने देश पर आक्रमण करने वाले तमिल भाड़े के सैनिकों को खदेड़ दिया था।

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ, सार्क के 1985 में एक संस्थापक सदस्य के रूप में, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका को एक साथ लाता है, देश सार्क में बहुत सक्रिय भूमिका निभाता है। मालदीव ने दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते, एक सामाजिक चार्टर के निर्माण, सार्क मंचों में अनौपचारिक राजनीतिक परामर्श की शुरुआत, पर्यावरण के मुद्दों पर अधिक से अधिक कार्रवाई की पैरवी, कई मानवाधिकार उपायों के प्रस्ताव का आह्वान करने का बीड़ा उठाया है। बाल अधिकारों पर क्षेत्रीय सम्मेलन के रूप में और सार्क मानवाधिकार संसाधन केंद्र की स्थापना के लिए। मालदीव सार्क के लिए अधिक से अधिक अंतरराष्ट्रीय प्रोफ़ाइल का भी समर्थक है जैसे संयुक्त राष्ट्र में सामान्य स्थिति तैयार करना।

भारत इस द्वीपीय देश को भारत के सुरक्षा ग्रिड में लाने की प्रक्रिया शुरू कर रहा है। यह कदम तब उठाया गया जब उदारवादी इस्लामिक राष्ट्र ने इस साल की शुरुआत में नई दिल्ली से संपर्क किया, इस डर से कि सैन्य संपत्ति और निगरानी क्षमताओं की कमी को देखते हुए आतंकवादियों द्वारा उसके एक द्वीप रिसॉर्ट पर कब्जा कर लिया जा सकता है। [150] भारत ने 2011 में मालदीव के साथ एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए जो निम्नलिखित के आसपास केंद्रित है:

  • भारत अपनी निगरानी क्षमताओं और खतरों का तेजी से जवाब देने की क्षमता बढ़ाने के लिए देश में स्थायी रूप से दो हेलीकॉप्टरों की स्थापना करेगा। ए के एंटनी की यात्रा के दौरान तटरक्षक बल से एक हेलीकॉप्टर सौंपा गया था, जबकि नौसेना से एक अन्य हेलीकॉप्टर को शीघ्र ही स्थानांतरित करने के लिए मंजूरी दे दी जाएगी।
  • मालदीव के 26 में से केवल दो एटोल पर तटीय रडार हैं। भारत आने वाले जहाजों और विमानों के निर्बाध कवरेज के लिए सभी 26 पर रडार स्थापित करने में मदद करेगा।
  • मालदीव में तटीय रडार श्रृंखला को भारतीय तटीय रडार प्रणाली के साथ जोड़ा जाएगा। भारत पहले ही अपने पूरे समुद्र तट पर राडार स्थापित करने की एक परियोजना शुरू कर चुका है। दोनों देशों की रडार श्रृंखलाएं आपस में जुड़ी होंगी और भारत के तटीय कमान में एक केंद्रीय नियंत्रण कक्ष को एक निर्बाध रडार तस्वीर मिलेगी।
  • भारतीय तटरक्षक बल (आईसीजी) संदिग्ध गतिविधियों या जहाजों पर नजर रखने के लिए द्वीपीय राष्ट्र में नियमित रूप से डोर्नियर उड़ानें करेगा। दक्षिणी नौसेना कमान मालदीव को भारतीय सुरक्षा ग्रिड में शामिल करने की सुविधा प्रदान करेगी।
  • मालदीव से सैन्य दल अंडमान और निकोबार कमांड (एएनसी) की तीनों सेनाओं का दौरा करेंगे, ताकि यह देखा जा सके कि भारत कैसे महत्वपूर्ण द्वीप श्रृंखला की सुरक्षा और निगरानी का प्रबंधन करता है।

अमीरिकी महाद्वीप (उत्तर और दक्षिण)

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भारत में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के साथ राष्ट्रपति निक्सन की बैठक
 
मोरारी देसाई, भारतीय अधिकारियों द्वारा अमीरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर और उनकी पत्नी रॉस्लीन कार्टर का नई दिल्ली में स्वागत समारोह
 
अटल विहरी वाजपेयी और अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश, ओवल ऑफ़िस में।

द्वितीय विश्व युद्ध से पहले और उसके दौरान, राष्ट्रपति रूजवेल्ट के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका ने ब्रिटेन के सहयोगी होने के बावजूद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत समर्थन दिया। भारतीय स्वतंत्रता के बाद भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंध मधुर थे, क्योंकि भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन में अग्रणी स्थान प्राप्त किया और सोवियत संघ से समर्थन प्राप्त किया। 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान अमेरिका ने भारत को समर्थन प्रदान किया। अधिकांश शीत युद्ध के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ गर्म संबंध बनाए, मुख्य रूप से सोवियत-अनुकूल भारत को शामिल करने और अफगानिस्तान के सोवियत कब्जे के खिलाफ अफगान मुजाहिदीन का समर्थन करने के लिए पाकिस्तान का उपयोग करने के लिए। 1971 में हस्ताक्षरित एक भारत-सोवियत मैत्री और सहयोग संधि ने भी भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ खड़ा कर दिया।

भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद, भारत ने अपनी विदेश नीति में काफी बदलाव किए। इसने सोवियत संघ के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किए और यूएसएसआर से बड़े पैमाने पर सैन्य उपकरण और वित्तीय सहायता प्राप्त करना शुरू कर दिया। इसका भारत-अमेरिका संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान को सोवियत समर्थक भारत के प्रतिकार के रूप में देखा और पूर्व सैन्य सहायता देना शुरू कर दिया। इससे भारत और अमेरिका के बीच संदेह का माहौल बन गया। सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया और भारत ने सोवियत संघ का खुलकर समर्थन किया जब भारत-अमेरिका संबंधों को काफी झटका लगा।

1970 के दशक की शुरुआत में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंध अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गए थे। पूर्वी पाकिस्तान में अत्याचारों की रिपोर्ट के बावजूद, और कहा जा रहा है, विशेष रूप से रक्त तार में, पाकिस्तानी सेना, अमेरिका द्वारा नरसंहार गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है। राज्य के सचिव हेनरी किसिंजर और अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन तो पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान और पाकिस्तानी सेना को हतोत्साहित करने के लिए कुछ नहीं किया। किसिंजर विशेष रूप से दोस्ती की एक संधि है कि हाल ही में भारत और सोवियत संघ के बीच हस्ताक्षर किया गया था की वजह से दक्षिण एशिया में सोवियत विस्तार के बारे में चिंतित था, और चीन जनवादी गणराज्य के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक मौन गठबंधन के मूल्य को प्रदर्शित करने की मांग की . 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, भारतीय सशस्त्र बलों, मुक्ति वाहिनी के साथ, पूर्वी पाकिस्तान को मुक्त करने में सफल रहे, जिसने जल्द ही स्वतंत्रता की घोषणा की। निक्सन को डर था कि पश्चिमी पाकिस्तान पर भारतीय आक्रमण का अर्थ होगा इस क्षेत्र पर पूर्ण सोवियत प्रभुत्व, और यह कि यह संयुक्त राज्य अमेरिका की वैश्विक स्थिति और अमेरिका के नए मौन सहयोगी, चीन की क्षेत्रीय स्थिति को गंभीर रूप से कमजोर कर देगा। चीन को एक सहयोगी के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका की सद्भावना का प्रदर्शन करने के लिए, और पाकिस्तान पर कांग्रेस द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के सीधे उल्लंघन में, निक्सन ने पाकिस्तान को सैन्य आपूर्ति भेजी, उन्हें जॉर्डन और ईरान के माध्यम से भेज दिया, जबकि चीन को अपने हथियार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया।

मेक्सिको

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देखें: भारत–मेक्सिको संबंध

  

 
मेक्सिको के राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह

मेक्सिको भारत का एक बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रमुख आर्थिक भागीदार है। नोबेल पुरस्कार विजेता और भारत में राजदूत ऑक्टेवियो पाज़ ने इन लाइट ऑफ़ इंडिया नामक पुस्तक लिखी है जो भारतीय इतिहास और संस्कृति का विश्लेषण है। दोनों देश क्षेत्रीय शक्तियां हैं और जी-20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के सदस्य हैं। दोनो के बीच बहुत गहरे और अच्छे सम्बंध है। मेक्सिको में भारतीय समुदाय अपेक्षाकृत छोटा है और लगभग ५,५०० होने का अनुमान है; इसमें ज्यादातर भारतीय आईटी कंपनियों के सॉफ्टवेयर इंजीनियर शामिल हैं। भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में कई कार्यकारी, स्थानीय विश्वविद्यालयों में शिक्षाविद/प्रोफेसर और कपड़ा और परिधान व्यवसाय में कुछ निजी व्यवसायी हैं। ज्यादातर भारतीय शिक्षाविद और व्यवसायी मेक्सिको के स्थायी निवासी हैं, बाकी 2-3 साल के अल्पकालिक कार्य असाइनमेंट पर हैं और उसके बाद उन्हें बदल दिया जाता है।

1947 में, मेक्सिको यूनाइटेड किंगडम से भारत की स्वतंत्रता को मान्यता देने वाला पहला लैटिन अमेरिकी राष्ट्र बन गया। पहले 1 अगस्त 1950 को, दोनों देशों ने राजनयिक संबंध स्थापित किए और अगले वर्ष, मेक्सिको ने दिल्ली में एक दूतावास खोला। दोनों देशों के बीच नए संबंधों के महत्व को दिखाने के लिए, भारत में पहले मैक्सिकन राजदूत पूर्व मैक्सिकन राष्ट्रपति एमिलियो पोर्ट्स गिल थे। 1962 में, नोबेल पुरस्कार विजेता ऑक्टेवियो पाज़ को भारत में राजदूत नामित किया गया था।

भूखंडल के आर-पार

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व्लादिमीर पुतिन के साथ अटल बिहारी वाजपेयी, पीछे अदत्याधिक बायीं ओर खड़े हैं नरेंद्र मोदी

रूसी संघ के साथ भारत के संबंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं और निरंतरता, विश्वास और आपसी समझ पर आधारित हैं। भारत-रूस संबंधों को बनाए रखने और मजबूत करने और दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने की आवश्यकता पर दोनों देशों में राष्ट्रीय सहमति है। अक्टूबर 2000 में वर्तमान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पूर्व भारतीय प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच सामरिक साझेदारी पर एक घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए थे, इस साझेदारी को "विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी" भी कहा जाता है।

रूस और भारत ने 1971 की भारत-सोवियत शांति और मैत्री संधि को नवीनीकृत नहीं करने का फैसला किया है और दोनों ने अधिक व्यावहारिक, कम वैचारिक संबंध के रूप में वर्णित का पालन करने की मांग की है। जनवरी 1993 में रूसी राष्ट्रपति येल्तसिन की भारत यात्रा ने इस नए रिश्ते को मजबूत करने में मदद की। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 2004 की यात्रा के साथ संबंध मजबूत हुए हैं। उच्च स्तरीय यात्राओं की गति तब से बढ़ गई है, जैसा कि प्रमुख रक्षा खरीद की चर्चा है। रूस, कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र के विकास के लिए काम कर रहा है, जो 1000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करने में सक्षम होगा। Gazprom, तेल और प्राकृतिक गैस के विकास के लिए काम कर रहा है, बंगाल की खाड़ी में। भारत और रूस ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर व्यापक सहयोग किया है। सहयोग के अन्य क्षेत्रों में सॉफ्टवेयर, आयुर्वेद आदि शामिल हैं। भारत और रूस ने व्यापार को 10 अरब डॉलर तक बढ़ाने का संकल्प लिया है। दोनों देशों के वस्त्र निर्माताओं के बीच सहयोग लगातार मजबूत हो रहा है। भारत और रूस ने दोनों देशों में कपड़ा उद्योग में निवेश और व्यापार की मात्रा बढ़ाने के संयुक्त प्रयासों पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने में वस्त्र और प्रकाश उद्योग परिषद के उद्यमियों के रूसी संघ और भारत के परिधान निर्यात (AEPC) के प्रतिनिधि शामिल थे। एक सहयोग समझौता, अन्य बातों के साथ, कपड़ा उत्पादन में प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान और जानकारी प्रदान करता है। इस प्रयोजन के लिए, वस्त्र मामलों पर एक विशेष आयोग (वस्त्र संचार समिति)। रूस और भारत के बीच आतंकवाद विरोधी तकनीक भी मौजूद है। २००७ में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन २६ जनवरी २००७ को गणतंत्र दिवस समारोह में सम्मानित अतिथि थे। २००८ को दोनों देशों द्वारा रूस-भारत मैत्री वर्ष के रूप में घोषित किया गया है। बॉलीवुड फिल्में रूस में काफी लोकप्रिय हैं। भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी ओएनजीसी ने 2008 में इंपीरियल एनर्जी कॉर्पोरेशन को खरीदा। दिसंबर 2008 में, राष्ट्रपति मेदवेदेव की नई दिल्ली की यात्रा के दौरान, भारत और रूस ने परमाणु ऊर्जा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए। मार्च 2010 में, रूसी प्रधान मंत्री व्लादिमीर पुतिन ने भारत के साथ एक अतिरिक्त 19 समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिसमें नागरिक परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और सैन्य सहयोग और मिग -29 के लड़ाकू जेट के साथ एडमिरल गोर्शकोव (विमान वाहक) की अंतिम बिक्री शामिल थी। 2014 के क्रीमियन संकट के दौरान भारत ने रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों का समर्थन करने से इनकार कर दिया था और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों में से एक शिवशंकर मेनन ने कहा था कि "इसमें वैध रूसी और अन्य हित शामिल हैं और हमें उम्मीद है कि उन पर चर्चा और समाधान किया जाएगा।" 7 अगस्त 2014 को भारत और रूस ने चीन और मंगोलिया के साथ मास्को सीमा के पास एक संयुक्त आतंकवाद विरोधी अभ्यास किया। इसमें टैंक और बख्तरबंद वाहनों का उपयोग शामिल था।

भारत और रूस ने अब तक INDRA अभ्यास के तीन दौर आयोजित किए हैं। पहला अभ्यास 2005 में राजस्थान में किया गया था, उसके बाद रूस में प्रशकोव किया गया था। तीसरा अभ्यास अक्टूबर 2010 में कुमाऊं की पहाड़ियों के चौबटिया में आयोजित किया गया था। यह भी देखें:

यूरोप के कई देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं। प्रमुखों में से कुछ फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, स्विट्सर्लंड, पुर्तगाल, बेलज़ियम, आदि है।

एशिया-प्रशांत

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ऑस्ट्रेलिया

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सितंबर 2014 में ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री टोनी एबॉट भारत की यात्रा पर आए। भारत के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में किसी भी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष की यह प्रथम राजकीय यात्रा थी। इस यात्रा में दोनों देशों के बीच असैन्य नाभिकीय उर्जा सहयोग समझौता हुआ जिसके तहत ऑस्ट्रेलिया भारत को यूरेनियम निर्यात करेगा।[20][21] इस दौरान एक महत्वपूर्ण व्यक्तव्य में उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी को 2002 के दंगों के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए।[22]

  

 
टोक्यो में सुभाष चंद्र बोस, 1943
 
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो अबे की चाय पर चर्चा, सितंबर 2014

भारत और जापान के सम्बन्ध हमेशा से काफ़ी मजबूत और स्थिर रहे हैं। जापान की संस्कृति पर भारत में जन्मे बौद्ध धर्म का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान भी जापान की शाही सेना ने सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज को सहायता प्रदान की थी। भारत की स्वतंत्रता के बाद से भी अब तक दोनों देशों के बीच मधुर सम्बन्ध रहे हैं। जापान की कई कम्पनियाँ जैसे कि सोनी, टोयोटा और होंडा ने अपनी उत्पादन इकाइयाँ भारत में स्थापित की हैं और भारत की आर्थिक विकास में योगदान दिया है। इस क्रम में सबसे अभूतपूर्व योगदान है वहाँ की मोटर वाहन निर्माता कंपनी सुज़ुकी का जो भारत की कंपनी मारुति सुजुकी के साथ मिलकार उत्पादन करती है और भारत की सबसे बड़ी मोटर कार निर्माता कंपनी है। होंडा कुछ ही दिनों पहले तक हीरो होंडा (अब हीरो मोटोकॉर्प) के रूप में हीरो कंपनी के पार्टनर के रूप में कार्य करती रही है जो तब दुनिया की सबसे बड़ी मोटरसाइकिल विक्रेता कंपनी थी।

जापानी प्रधानमंत्री शिंज़ो अबे के आर्क ऑफ फ्रीडम सिद्धांत के अनुसार यह जापान के हित में है कि वह भारत के साथ मधुर सम्बन्ध रखे ख़ासतौर से उसके चीन के साथ तनाव पूर्ण रिश्तों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाय तो। इसके लिये जापान ने भारत में अवसंरचना विकास के कई प्रोजेक्ट का वित्तीयन किया है और इनमें तकनीकी सहायता उपलब्ध करायी है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण रूप से उल्लेखनीय है दिल्ली मेट्रो रेल का निर्माण।

भारत की ओर से भी चीन के साथ रिश्तों और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में जापान को काफ़ी महत्व दिया गया है। मनमोहन सिंह की सरकार की पूर्व की ओर देखो नीति ने भारत को जापान के साथ मधुर और पहले से बेहतर सम्बन्ध बनाने की ओर प्रेरित किया है। दिसंबर २००६ में भारतीय प्रधानमंत्री की जापान यात्रा के दुरान हस्ताक्षरित भारत-जापान सामरिक एवं वैश्विक पार्टनरशिप समझौता इसका ज्वलंत उदहारण है। रक्षा के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच २००७ से लगातार सहयोग मजबूत हुए हैं[23] और दोनों की रक्षा इकाइयों और सेनाओं ने कई संयुक्त रक्षा अभ्यास किये हैं। अक्टूबर २००८ में जापान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसके तहत वह भारत को कम ब्याज दरों पर ४५० अरब अमेरिकी डालर की धनराशि दिल्ली-मुम्बई हाईस्पीड रेल गलियारे के विकास हेतु देगा। विश्व में यह जापान द्वारा इकलौता ऐसा उदाहरण है जो भारत के साथ इसके मजबूत आर्थिक रिश्तों को दर्शाता है।

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने जनवरी २०१४ में भारत की सपत्नीक यात्रा की जिसके दौरान वे इस वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाए गये थे। इसके बाद मनमोहन सिंह जी के साथ हुई शिखर बैठक दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच २००६ की शुरुआत के बाद आठवीं शिखर बैठक थी।[24] इस बैठक में जापान ने भारत को विभिन्न परियोजनाओं के लिये २०० अरब येन (लगभग १२२ अरब रुपये) का ऋण देने की पेशकश की और हाई स्पीड रेल, रक्षा, मेडिकल केयर, औषधि निर्माण और कृषि तथा तापीय ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग की भी पेशकश की। भारत जापान श्रीलंका के पूर्वी भाग में त्रिंकोमाली में तापीय विद्युत संयत्र निर्माण में भी भागीदारी करने वाले हैं। इससे पहले नवंबर-दिसंबर २०१३ में जापानी सम्राट आकिहितो और महारानी मिचिको ने भारत की यात्रा संपन्न की थी। प्रोटोकाल के विपरीत सम्राट को हवाईअड्डे पर लेने स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह गये थे जो भारत जापान रिश्तों की प्रगाढ़ता दर्शाता है।

वर्तमान समय में भारत जापान द्विपक्षीय व्यापर लगभग १४ अरब डालर का है जिसे बढ़ा का २५ अरब डालर करने का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही जापान का भारत में लगभग १५ अरब डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी है।[25]

दक्षिण अफ्रीका

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भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच हमेशा मजबूत संबंध रहे हैं, भले ही भारत ने 20 वीं शताब्दी के मध्य में रंगभेद शासन के विरोध में राजनयिक संबंधों को रद्द कर दिया था। ब्रिटिश शासन का इतिहास दोनों जमीनों को जोड़ता है। भारतीय दक्षिण अफ्रीकी लोगों का एक बड़ा समूह है। महात्मा गांधी ने कई साल दक्षिण अफ्रीका में बिताए, उस दौरान उन्होंने जातीय भारतीयों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। नेल्सन मंडेला गांधी से प्रेरित थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, भारत ने रंगभेद की कड़ी निंदा की, और राजनयिक संबंधों से इनकार कर दिया, जबकि रंगभेद को दक्षिण अफ्रीका में राज्य की नीति के रूप में संचालित किया गया था।

दोनों देशों के बीच अब घनिष्ठ आर्थिक, राजनीतिक और खेल संबंध हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार 1992-1993 में 3 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2005-2006 में 4 बिलियन डॉलर हो गया, और 2010 तक 12 बिलियन डॉलर के व्यापार तक पहुंचने का लक्ष्य है। दक्षिण अफ्रीका से भारत का एक तिहाई आयात गोल्ड बार है। दक्षिण अफ्रीका से खनन किए गए हीरे भारत में पॉलिश किए जाते हैं। नेल्सन मंडेला को गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। दोनों देश ब्राजील के साथ आईबीएसए डायलॉग फोरम के भी सदस्य हैं। भारत को उम्मीद है कि भारत के बढ़ते असैनिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के लिए संसाधन संपन्न दक्षिण अफ्रीका से बड़ी मात्रा में यूरेनियम प्राप्त होगा।

मध्य-पूर्व

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स्वतंत्र भारत और ईरान ने 15 मार्च 1950 को राजनयिक संबंध स्थापित किए। 1979 की ईरानी क्रांति के बाद, ईरान CENTO से हट गया और पाकिस्तान सहित अमेरिका के अनुकूल देशों से खुद को अलग कर लिया, जिसका अर्थ स्वचालित रूप से भारत गणराज्य के साथ बेहतर संबंध था।

वर्तमान में दोनों देशों के कई क्षेत्रों में मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। विशेष रूप से भारत में कच्चे तेल के आयात और ईरान को डीजल के निर्यात में महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध हैं। ईरान ने ओआईसी जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारत विरोधी प्रस्तावों का मसौदा तैयार करने के पाकिस्तान के प्रयासों पर अक्सर आपत्ति जताई। भारत ने सार्क क्षेत्रीय संगठन में एक पर्यवेक्षक राज्य के रूप में ईरान के शामिल होने का स्वागत किया। लखनऊ उपमहाद्वीप में शिया संस्कृति और फारसी अध्ययन का एक प्रमुख केंद्र बना हुआ है।

1990 के दशक में, भारत और ईरान दोनों ने तालिबान शासन के खिलाफ अफगानिस्तान में उत्तरी गठबंधन का समर्थन किया। वे हामिद करजई के नेतृत्व वाली और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा समर्थित व्यापक-आधारित तालिबान विरोधी सरकार का समर्थन करने में सहयोग करना जारी रखते हैं।

हालांकि, भारत-ईरान संबंधों में एक जटिल मुद्दा ईरान के परमाणु कार्यक्रम का मुद्दा है। इस पेचीदा मामले में भारत एक नाजुक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर एक भारतीय विशेषज्ञ रेजाउल लस्कर के अनुसार, "ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर भारत की स्थिति सुसंगत, सैद्धांतिक और संतुलित रही है, और ऊर्जा सुरक्षा के लिए ईरान की खोज को प्रसार पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चिंताओं के साथ समेटने का प्रयास करता है। इसलिए, जबकि भारत ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करने के लिए ईरान की महत्वाकांक्षाओं को स्वीकार करता है और समर्थन करता है और विशेष रूप से, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए इसकी खोज, यह भारत की सैद्धांतिक स्थिति भी है कि ईरान को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपने सभी दायित्वों को पूरा करना होगा, विशेष रूप से परमाणु अप्रसार संधि के तहत अपने दायित्वों को पूरा करना होगा। NPT) और अन्य ऐसी संधियाँ, जिनका वह हस्ताक्षरकर्ता है"

फरवरी 2012 में भारत में एक इजरायली राजनयिक पर हमले के बाद, दिल्ली पुलिस ने तर्क दिया कि हमले में ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर की कुछ भागीदारी थी। बाद में जुलाई 2012 में इसकी पुष्टि की गई, दिल्ली पुलिस की एक रिपोर्ट के बाद इस बात के सबूत मिले कि ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के सदस्य राजधानी में 13 फरवरी के बम हमले में शामिल थे।

  

द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में इज़राइल की स्थापना एक जटिल मुद्दा था। विभाजन के दौरान अपने स्वयं के अनुभव के आधार पर, जब 14 मिलियन[26] लोग विस्थापित हुए थे और पंजाब प्रांत में अनुमानित 200,000 से 500,000 लोग[27] मारे गए थे, भारत ने एक एकल राज्य की सिफारिश की थी, जैसा कि ईरान और यूगोस्लाविया (बाद में अपने स्वयं के नरसंहार विभाजन से गुजरना पड़ा)। राज्य ऐतिहासिक फिलिस्तीन के विभाजन को रोकने और व्यापक संघर्ष को रोकने के लक्ष्य के साथ अरब और यहूदी-बहुसंख्यक प्रांत आवंटित कर सकता है। लेकिन, अंतिम संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव ने धार्मिक और जातीय बहुमत के आधार पर अनिवार्य फिलिस्तीन को अरब और यहूदी राज्यों में विभाजित करने की सिफारिश की। भारत ने अंतिम वोट में इसका विरोध किया क्योंकि वह धर्म के आधार पर विभाजन की अवधारणा से सहमत नहीं था।

1980 के दशक में अमेरिका समर्थित पाकिस्तान और उसके परमाणु कार्यक्रम से सुरक्षा खतरे के कारण, इज़राइल और भारत ने एक गुप्त संबंध शुरू किया जिसमें उनकी संबंधित खुफिया एजेंसियों के बीच सहयोग शामिल था।[28] इज़राइल ने पाकिस्तान द्वारा बढ़ते खतरे और ईरान और अन्य अरब राज्यों में परमाणु प्रसार के बारे में भारत की चिंताओं को साझा किया।[29]

1992 में इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद से, भारत ने यहूदी राज्य के साथ अपने संबंधों में सुधार किया है। भारत को एशिया में इज़राइल का सबसे मजबूत सहयोगी माना जाता है, और इज़राइल भारत का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है। 1947 में जब से भारत ने अपनी स्वतंत्रता हासिल की, उसने फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय का समर्थन किया। भारत ने १८ नवंबर १९८८[30] को फिलिस्तीन की घोषणा के बाद फिलिस्तीन के राज्य के दर्जे को मान्यता दी और भारत-फिलिस्तीनी संबंध पहली बार १९७४ में स्थापित किए गए थे।[31] इससे इजरायल के साथ भारत के बेहतर संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है।

भारत ने २००३ में एक यात्रा में इजरायल के प्रधान मंत्री का मनोरंजन किया है, [३९३] और इजरायल ने राजनयिक यात्राओं में वित्त मंत्री जसवंत सिंह जैसे भारतीय गणमान्य व्यक्तियों का मनोरंजन किया है। भारत और इज़राइल वैज्ञानिक और तकनीकी प्रयासों में सहयोग करते हैं। इज़राइल के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने भूमि और अन्य संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के लिए उपग्रहों का उपयोग करने की दिशा में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ सहयोग करने में रुचि व्यक्त की है। इज़राइल ने इसरो के चंद्रयान मिशन में भाग लेने में भी रुचि व्यक्त की है जिसमें चंद्रमा पर मानव रहित मिशन शामिल है। 21 जनवरी 2008 को, भारत ने दक्षिणी भारत के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष स्टेशन से एक इजरायली जासूसी उपग्रह को कक्षा में सफलतापूर्वक लॉन्च किया।

इजरायल और भारत आतंकवादी समूहों पर खुफिया जानकारी साझा करते हैं। 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित करने के बाद से उन्होंने घनिष्ठ रक्षा और सुरक्षा संबंध विकसित किए हैं। भारत ने 2002 से 5 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के इजरायली उपकरण खरीदे हैं। इसके अलावा, इजरायल भारतीय सैन्य इकाइयों को प्रशिक्षण दे रहा है और 2008 में भारतीय कमांडो को निर्देश देने की व्यवस्था पर चर्चा कर रहा था। आतंकवाद विरोधी रणनीति और शहरी युद्ध में। दिसंबर 2008 में, इज़राइल और भारत ने दोनों देशों के न्यायाधीशों और न्यायविदों के बीच चर्चा और आदान-प्रदान कार्यक्रमों को सुविधाजनक बनाने के लिए एक इंडो-इज़राइल लीगल कॉलोक्वियम स्थापित करने के लिए एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।

2006 में लेबनान पर इजरायल के आक्रमण के बाद, भारत ने कहा कि इजरायल द्वारा बल का प्रयोग "अनुपातिक और अत्यधिक" था।[32]

2014 से नरेंद्र मोदी के प्रीमियर के तहत भारत-इजरायल संबंध बहुत करीबी और गर्म रहे हैं। 2017 में, वह इजरायल की यात्रा करने वाले भारत के पहले प्रधान मंत्री थे।[33]

वैश्विक संगठन

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संयुक्त राष्ट्र

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भारत ने 100,000 सैन्य और पुलिस कर्मियों को चार महाद्वीपों भर में संयुक्त राष्ट्र के पैंतीस शांति अभियानों में सेवा प्रदान की है।[34]

यूरोपीय संघ

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देखें: भारत-यूरोपीय संघ संबंध

  

भारत के संबंध यूरोप के और भी देशों के साथ अच्छे है। भारत यूरोपीय संघ में भी अपना दायित्व निभाता है।

दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन

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भारत दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों के संगठन का भले ही सदस्य ना हो, लेकिन यह हमेशा से उन्हें अपना मित्र मानते हुए उनके साथ विकास करने का प्रण किया है।

अफ्रीकी संघ

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भारत के कई अफ्रीकी देशों के साथ सम्बंध है, कुछ के साथ संबंध ब्रिटिश काल के दौरान तक पाए जाते हैं, जब वो देश ब्रिटेन समेत और बाक़ी यूरोपीय देशों के दद्वारा नियंत्रित हुआ करते थे। वर्तमान स्थिथि में, भारत अफ्रीकी संघ में भी सभी देशों के विकास और उत्तपत्ति के लिए प्रतिबद्ध है।

     

 
ब्रिक्स राज्य और सरकार के प्रमुख, 2014

भारत ने ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर ब्रिक्स समूह की स्थापना की है। यह विकसित देशों के समूह G-8, G-20 के विश्व पर प्रभाव को संतुलित करने का प्रयास है। ब्रिक्स के सभी सदस्य विकासशील या नव औद्योगीकृत देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। ये राष्ट्र क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। वर्ष २०१३ तक, पाँचों ब्रिक्स राष्ट्र दुनिया के लगभग 3 अरब लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं और एक अनुमान के अनुसार ये राष्ट्र संयुक्त विदेशी मुद्रा भंडार में ४ खरब अमेरिकी डॉलर का योगदान करते हैं। इन राष्ट्रों का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद १५ खरब अमेरिकी डॉलर का है।[35]

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन

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[[File:|23x15px|border |alt=दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन|link=दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन]] 

सार्क में भारत एक मुख्य देश होने साथ, अपने पड़ोसियों के साथ विकास की राह पर सबको साथ लेकर चलता है।

विश्व व्यापार संगठन

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भारत हमेशा से अंतरष्ट्रीय मंच पर व्यापारिक नियमो में नरमी और नए नियमो में संशोधन पर ज़ोर देता है।

इन्हें भी देखें

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अगर आप भारत के और विदेश संबंधो के बारे में जानना चाहते हैं, तो आप मूल विकिपीडिया के भारत के विदेश संबंध के पृष्ठ पर जानकारी प्राप्त कर सकते है।

बाहरी कड़ियाँ

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  2. "The Non-Aligned Movement: Description and History", nam.gov.za, The Non-Aligned Movement, 21 सितंबर 2001, मूल से 21 अगस्त 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 23 अगस्त 2007
  3. India's negotiation positions at the WTO (PDF), November 2005, मूल (PDF) से 13 सितंबर 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 23 अगस्त 2010
  4. Analysts Say India'S Power Aided Entry Into East Asia Summit. | Goliath Business News, Goliath.ecnext.com, 29 जुलाई 2005, मूल से 9 अगस्त 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 21 नवम्बर 2009
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