बोना चोर का किला ( अलीगढ़ किला )
अलीगढ़ का किला इस क्षेत्र में भारत के सबसे मजबूत किलों में से एक माना जाता है।यह इब्राहिम लोधी के दरबार में पीठासीन राज्यपाल के पुत्र द्वारा 16 वीं सदी में बनाया गया था।जीटी रोड पर स्थित यह किला एक नियमित बहुभुजाकार की तरह है तथा इसके चारों ओर एक बहुत गहरी खाई है।
बाद के वर्षों में, किले के और अधिक विस्तार और इसकी सीमाओं को मजबूत करने के लिए कई बार फिर से बनाया गया।18 वीं सदी में, माधवराव सिंधिया प्रथम के शासनकाल में इसका प्रयोग सैनिकों को यूरोपीय युद्ध तकनीक सिखाने हेतु एक प्रमुख प्रशिक्षण केंद्र के रूप में किया गया। ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1857 के विद्रोह के लिए भी इस स्थल का प्रयोग किया गया था।हालांकि, सैनिकों ने अपने अधिकारियों की हत्या नहीं की।
यह किला भारतीय और फ्रांसीसी शैली की वास्तुकला के मिश्रण का दावा करता है। अब यह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, और विशेष रूप से, वनस्पति विज्ञान विभाग के नियंत्रण में है।भीतरी आंगन में एक वनस्पति उद्यान और अन्य बागानों की किस्में है।
इतिहास
संपादित करें1524-25 में इब्राहिम लोधी के कार्यकाल में किले की नींव रखी गई थी। यूरोपीय स्थापत्य कला में गढ़ने के लिए 1759 में किले का पुनर्निर्माण माधव राव सिंधिया के जमाने में हुआ। उन्होंने इसकी जिम्मेदारी फ्रेंच कमांडेंट काउंट बेनोइट और कुलीयर पेरोन को दी। फ्रेंच इंजीनियरों की भी मदद ली गई। किले की कमान मीर सादत अली के हाथों में थी। चार सितंबर 1803 में ब्रिटिश जनरल लेक ने आक्रमण करके किले पर कब्जा कर लिया। युद्ध में मारे गए ब्रिटिश अफसरों के नाम यहां के शिलालेख में आज भी दर्ज हैं। कालांतर में अलीगढ़ किला 'बौना चोर का किला' हो गया। एएमयू की देखरेख में होने के कारण अब इसे एएमयू किला भी कहने लगे हैं।
यातायात
संपादित करेंबोना चोर का किला देखने हेतु यातायात की समुचित व्यवस्था है यहां जाने पर किला के अंदर प्रवेश करने पर गेट पर पहचान पत्र दिखाना पड़ता है जो कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी मैं पढ़ने वाले छात्र छात्रा या शिक्षक किला के अदर प्रवेश करने की अनुमति है या फिर अन्य पर्यटक के लिए स्वयं अनुमति लेनी पड़ेगी पुरानी चुंगी के पास से तभी आप किले के अंदर प्रवेश कर सकते हैं
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें1- https://m.jagran.com/uttar-pradesh/aligarh-city-11611865.html