बलदेव अग्रहरि
बलदेव अग्रहरि, भारतेन्दु युग के लेखक थे। सन् १८८७ में प्रकाशित इनकी नाट्य पुस्तक 'सुलोचना सती' को अत्यधिक ख्याति मिली।[1][2][3][4]
बलदेव अग्रहरि के "सुलोचना सती" नाटक में सुलोचना की कथा के साथ आधुनिक कथा को भी स्थान दिया गया हैं, जिसमे संपादको और देश सुधारको पर व्यंग्य किया गया हैं। कई नाटको में मुख्य कथानक ही यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करते हैं। अग्रहरि के सुलोचना सती में भिन्नतुकांत छंद का आग्रह भी दिखाई देता हैं।[5]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ सत्येन्द्र तनेजा (१९७१). हिन्दी नाटकः पुनर्मूल्यांकन. ग्रंथम (कानपुर). मूल से 7 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अप्रैल 2014.
- ↑ गोपीनाथ तिवारी (१९५९). भरतेन्दुकालीन नाटक साहित्य. हिन्दी भवन. मूल से 7 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अप्रैल 2014.
- ↑ "Bhāratendukālīna nāṭaka sāhitya (Hindi drama) (Hindī-Bhavana, 1959)". G.N. Tiwari. 1959. मूल से 7 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जुलाई 2014.
- ↑ "Hindī ṅāṭaka: punarmūlyāṅkana (by Satyendra Taneja)". मूल से 7 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जुलाई 2014.
- ↑ "Hindī nāṭakoṃ kā vikāsātmaka adhyayana". Sāhitya Sadana, 1964. २९ अगस्त २००७.
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इसे भी देखें
संपादित करें- हिंदी नाट्य साहित्य की मीमांसा, लेखक: सी. पी. सिंह, 21 सितबंर 2006
- आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास