बर्बर भाषाएँ

उत्तरी अफ्रीका के लिए स्वदेशी भाषाओं और बोलियों का परिवार
(बर्बर भाषाओं से अनुप्रेषित)

बर्बर भाषाएँ (बर्बर नाम: ⵜⴰⵎⴰⵣⵉⵖⵜ, तैमैज़िग़्त) उत्तर अफ़्रीका के बर्बर लोगों की मूल भाषाएँ हैं।

अल्जीरिया के तीज़ी ऊज़ू विश्वविद्यालय में अरबी, बर्बरी और फ़्रांसिसी में लिखे त्रिभाषीय चिन्ह
उत्तर अफ़्रीका के बर्बरी उपभाषाएँ बोलने वाले क्षेत्र - शिल्हा (हल्का नीला), कबाइली (लाल), मध्य तैमैज़िग़्त (गुलाबी), तरीफ़ित (पीला), शाविया (हरा), तुआरग (गाढ़ा नीला), नख़लिस्तान क्षेत्र (ओएसिस के क्षेत्र - नारंगी)
अरबी और बर्बरी में लिखा एक द्विभाषीय सड़क चिन्ह - अरबी लिपि में 'कफ़' और तिफ़िनग़ लिपि में 'बॅद' लिखा है, जिनका अर्थ है 'रुको!'
सहारा रेगिस्तान के उत्तरपूर्वी भाग में चट्टानों पर बर्बरी की ऐसी प्राचीन लिखईयाँ अक्सर मिल जाती हैं
यूबा उर्फ़ मूसा हब्बूब एक मशहूर बर्बरीभाषीय गायक हैं - यहाँ मई 2010 में इटली में गाते हुए - उनके पीछे बर्बर लोगों का ध्वज लगा हुआ है

भाषा परिवार और शाखाएँ

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भाषावैज्ञानिक नज़रिए से इन्हें अफ़्रो-एशियाई या सामी-हामी भाषा-परिवार का सदस्य माना जाता है।[1] बर्बर भाषाओं के छह प्रमुख शाखाएँ हैं -

  • शिल्हा या ताशेलहित - इसे सब से अधिक एटलस पर्वतों के ऊँचे इलाकों में बोला जाता है और इसे बोलने वालों की संख्या क़रीब 80 लाख है
  • कबाइली - इसे उत्तरपश्चिमी अल्जीरिया के कबाइली लोग बोलते हैं और इसके मातृभाषियों की संख्या 50 लाख से 70 लाख के बीच अनुमानित की जाती है
  • मध्य तैमैज़िग़्त - इसे मध्य मोरक्को में बोला जाता है और इसके मातृभाषियों की संख्या 30 लाख से 50 लाख के बीच अनुमानित की जाती है
  • तरीफ़ित या रीफ़ - इसे उत्तरी मोरक्को के "रीफ़" नाम के पहाड़ी क्षेत्र में बोला जाता है और इसके मातृभाषियों की संख्या 40 लाख अनुमानित की जाती है
  • शाविया - इसे पूर्वी अल्जीरिया के शाविया लोग बोलते हैं और इसके मातृभाषियों की संख्या 20 लाख अनुमानित की जाती है
  • तुआरग - इसे माली, नाइजर, अल्जीरिया, लीबिया, बुर्किना फ़ासो और चाड के तुआराग लोग बोलते हैं और इसके मातृभाषियों की संख्या 12 लाख अनुमानित की जाती है

किसी एक शाखा की बर्बर उपभाषा बोलने वाले को किसी अन्य शाखा की बोली पूरी तरह समझ नहीं आती क्योंकि इन शाखाओं में शब्दों और लहजे का आपसी फ़र्क़ हो गया है।

बर्बरी की अपनी "तिफ़िनग़" नाम की प्राचीन अक्षरमाला है जिसकी सबसे पुरानी लिखाई २०० ई॰पू॰ से मिली है। बर्बर इलाक़ों पर अरबी आक्रमण और क़ब्ज़े के बाद इसका प्रयोग लगभग ख़त्म हो गया हालांकि गहरे रेगिस्तान में रहने वाले तुआरग-भाषियों में इसका इस्तेमाल जारी रहा। बहुत से बर्बर लोग बर्बरी छोड़कर अरबी बोलने लगे और जो बर्बरी लिखते-बोलते भी थे उनमें अरबी वर्णमाला का इस्तेमाल आम हो गया। तुआरग इलाक़ों के अलावा अन्य बर्बर क्षेत्रों में अरबी वर्णों का यह प्रयोग 1000 ई॰ से 1500 ई॰ तक प्रचलित रहा। 19वी और 20वी सदी में यूरोपियाई सामवाद के साथ​-साथ बर्बरी का रोमन लिपि में लिखना शुरु हो गया। इस "बर्बर लैटिन वर्णमाला" (यानि रोमन लिपि का बर्बर के लिए प्रयोग) का इस्तेमाल मोरक्को और अल्जीरिया में बहुत होने लगा, विशेषकर कबाइली बर्बर लिखने के लिए। 2003 में मोरक्को ने, बर्बर स्वाभिमान को ध्यान में रखते हुए, औपचारिक रूप से तिफ़िनग़ लिपि के एक आधुनिक रूप को सरकारी मान्यता दे दी लेकिन अभी भी कबाइली बर्बर लेखक बर्बर लैटिन लिपि का ही ज़्यादा प्रयोग करते हैं। इसके विपरीत, तुआरग आबादियों वाले माली और नाइजर ने बर्बर लैटिन लिपि को मान्यता दे दी है हालांकि वहाँ तिफ़िनग़ अधिक प्रचलित है।

अंग्रेज़ी में संज्ञाओं का लिंग नहीं होता, जबकि हिन्दी में संज्ञाएँ स्त्रीलिंग या पुल्लिंग होती हैं (उदाहरण के लिए 'हाथ' 'होता' है, 'होती' नहीं है)। बर्बरी इस मामले में हिन्दी की तरह है। पुल्लिंग संज्ञाएँ 'अ/आ', 'उ/ऊ' या 'इ/ई' से शुरु होती हैं -

अफ़ूस - हाथ
अर्गज़ - आदमी
उदम - चहरा
उल - दिल
इख़फ़ - सिर
इलस - जीभ

किसी संज्ञा को बहुवचन बनाने के लिए तीन विधियाँ हैं - किस विधि का प्रयोग होता है यह संज्ञा पर निर्भर करता है। तुलना के लिए, हिन्दी में भी तीन तरीक़ें हैं - 'जूता' का बहुवचन 'जूते', 'मक्खी' का 'मक्खियाँ' और 'फल' का 'फल' ही होता है। बर्बरी की कुछ संज्ञाओं पर 'सामान्य विधि' लागू होती है जिसमें शब्द का पहला स्वर बदल कर उसके अन्त में 'न' लगा दिया जाता है -

अफ़ूस → इफ़ासन (एक से अधिक हाथ)
अर्गज़ → इर्गाज़न (एक से अधिक आदमी)
उल → उलावन (एक से अधिक दिल)
इख़फ़ → इख़फ़ावन (एक से अधिक सिर)

कुछ संज्ञाओं पर 'टूटी विधि' लागू होती है जिसमें बहुवचन बनाने के लिए केवल एकवचन शब्द के स्वरों में फेर-बदल​ किया जाता है -

अद्रार → इदुरार (पहाड़)
आगादिर → इगुदार (दिवार या महल​)
आबाग़ुस → इबुग़ास (बन्दर)

तीसरा तरीक़ा मिश्रित विधि होती है, जो पहली दो विधियों का मिश्रण है (स्वर भी बदलते हैं और 'न' भी लगता है) -

इज़ि (मक्खी) → इज़न (मक्खियाँ)
अज़ुर (जड़) → इज़ुरन (जड़ें)
इज़िकर (रस्सी) → इज़ाकारन (रस्सियाँ)

किसी संज्ञा का स्त्रीलिंग बनाने के लिए एकवचन में उसके पुल्लिंग रूप के इर्द-गिर्द 'त' लगा दिया जाता है और बहुवचन में केवल उसके शुरु में ही 'त' लगा दिया जाता है -

अफ़ूस → तफ़ूस्त
उदम → तुदम्त
इख़फ़ → तिख़फ़्त
इफ़्फ़ासन → तिफ़्फ़ासिन

विशेष उच्चारण टिप्पणी

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ध्यान दें कि "तैमैज़िग़्त", "तिफ़िनग़" और कई अन्य बर्बरी शब्दों में प्रयोग होने वाले वर्ण 'ग़' का उच्चारण "ग" से भिन्न है। यह 'ग़ज़ल' के 'ग़' जैसा है ('गाजर' के 'ग' जैसा नहीं)। इसी तरह 'ख़' का उच्चारण भी 'ख' से भिन्न है ('ख़बर' के 'ख़' जैसा है)।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. Hayward, Richard J., chapter Afroasiatic in Heine, Bernd & Nurse, Derek, editors, African Languages: An Introduction Cambridge 2000. ISBN 0-521-66629-5. पृष्ठ 74 पर लिखे हुए एक जुमले से ("बर्बर भाषाओँ को अफ़्रो-एशियाई भाषा परिवार में डालना सब से कम विवादित विकल्प लगता है") प्रतीत होता है के बर्बरी के भाषा परिवार पर भाषावैज्ञानिकों में कुछ आपसी मतभेद तो है।