फारबिसगंज
फारबिसगंज (Forbesganj) भारत के बिहार राज्य के अररिया ज़िले में स्थित एक नगर है। यह नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास स्थित है।[1][2]
फारबिसगंज Forbesganj | |
---|---|
सुल्तान पोखर, फारबिसगंज में सूर्यास्त | |
निर्देशांक: 26°17′56″N 87°15′43″E / 26.299°N 87.262°Eनिर्देशांक: 26°17′56″N 87°15′43″E / 26.299°N 87.262°E | |
देश | भारत |
राज्य | बिहार |
ज़िला | अररिया ज़िला |
ऊँचाई | 46 मी (151 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 50,475 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी, मैथिली, अंगिका |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 854318 |
भूगोल
संपादित करेंफारबिसगंज अररिया जिले का एक शहर है, जो 1990 से पहले पूर्णिया जिला का हिस्सा था । इस शहर की सीमा नेपाल से लगती हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग २७ और राष्ट्रीय राजमार्ग ५२७ यहाँ से गुज़रते हैं। और राष्ट्रीय राजमार्ग 57 भी Forbesganj होकर गुजरती है।
इतिहास
संपादित करेंफारबिसगंज का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। उन्नीसवीं सदी के मध्य में जब अलैक्जेंडर जॉन फोरबेस ने बाबू प्रताप सिंह दुगड़ व अन्य से सुल्तानपुर इस्टेट की खरीद की तो इसे फोरबेसाबाद नाम दिया गया। सन 1877 में हंटर की रिपोर्ट में भी शहर का नाम फोरबेसाबाद ही दर्ज है। लेकिन जब रेलवे लाइन आई तो शहर का नाम बदल कर फोरबेसगंज कर दिया। इस शहर के अंदर रामुपर, किरकिचिया, भागकोहलिया तथा मटियारी राजस्व ग्राम हैं और सुल्तानपुर इस्टेट की कचहरी के अवशेष आज भी नजर आते हैं। अलैक्जेंडर ने ही यहां सबसे पहले नील की खेती शुरू की और इस्टेट के अधीन 17 हजार बीघे में नील उपजाया जाता था। प्रथम विश्व युद्ध के दिनों में नील की चमक फीकी पड़ने से पहले ही अलैक्जेंडर व उसके वारिस जमींदारी व जूट के धंधे में पांव रख चुके थे। नील धीरे धीरे घटता गया और फारबिसगंज की चर्चा अनाज, कपड़ा व अन्य उपभोक्ता सामानों की सबसे बड़ी मंडी के रूप मे होने लगी। फारबिसगंज का बाजार चारो दिशाओं से रोजाना आने वाली हजारों अनाज लदी गाड़ियों की वजह से समृद्धि के शिखर को छूने लगा। फोरबेस परिवार के बाद इस्टेट का कारोबार ई रौल मैके के अधीन आ गया। मैके आम जन के साथ घुलमिल कर रहने वाला अंग्रेज था और स्थानीय बोलियां बड़े आराम से बोल लेता था । सन 1945 में उन्होंने इस्टेट को जेके जमींदारी कंपनी के हाथ बेच दिया और सबके सब वापस इंग्लैंड चले गए। मैके कानून का बड़ा ज्ञाता था और 1929 में उसने इंडिगो सीड से जुड़े एक मामले में दरभंगा के महाराजा सर कामेश्वर सिंह को हरा दिया था । यहां मैला आंचल उपन्यास के लेखक श्री फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म स्थल भी हैं।
आर्थिक
संपादित करेंग्रामीण संपर्किता इसकी सबसे बड़ी विकास-बाधा है। शहर के पूरब में अम्हरा, खबासपुर, चिकनी, घोड़ाघाट, कौआचांड घाट, सौरगांव असुरी, कमताहा व ऐसे ही दर्जनों नदी घाट हैं, जहां पुल बना कर फारबिसगंज को नई ज़िंदगी दी जा सकती है। लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। फरबिसगंज में मखाना का अच्छा उत्पादन होता है, मखाना के पैकेट फारबिसगंज में तैयार किए जाते हैं और ट्रेन से दिल्ली, पंजाब, मुंबई और अन्य जगहों पर भेजे जाते हैं। जिसकी विदेशों में डिमांड है। इस कारण से यहाँ के किसानो की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा।[3]
राजनीति
संपादित करेंफारबिसगंज के विधायक विद्यासागर केसरी उर्फ मंचन केसरी हैं जो 2020 में पुनः फारबिसगंज के विधायक बने इससेे पहले 2015 में पहली बार उन्होंने फारबिसगंज सेे विधानसभा चुनाव जीता था।[4]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Bihar Tourism: Retrospect and Prospect Archived 2017-01-18 at the वेबैक मशीन," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999
- ↑ "Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810
- ↑ "सहरसा समेत कोसी के मखाना और आम को मिलेगा वैश्विक बाजार, केंद्र सरकार की योजना में शामिल|". hindustan. मूल से 1 नवंबर 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 सितंबर 2021.
- ↑ "bihar assembly election candidates list 2020". ndtv.