प्रारब्ध कर्म का एक विशेष अंश है, जो इस जन्म के भोगों का निर्धारण करता है। जीव स्थूल देह में नवीन कर्म करता रहता है, यह संचितकर्म कहलाते हैं। संचितकर्म में से एक अंश मृत्यु के समय में अलग होता है, इसे प्रारब्ध कर्म कहते हैं। प्रारब्ध कर्म से जाति, आयु और भोग का निर्धारण होता है।

संबंधित शब्द

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कर्म, देह

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