प्राकृतिक वरण
जिस प्रक्रिया द्वारा किसी जनसंख्या में कोई जैविक गुण कम या अधिक हो जाता है उसे प्राकृतिक वरण या 'प्राकृतिक चयन' या नेचुरल सेलेक्शन (Natural selection) कहते हैं। यह एक धीमी गति से क्रमशः होने वाली अनयादृच्छिक (नॉन-रैण्डम) प्रक्रिया है। प्राकृतिक वरण ही क्रम-विकास(Evolution) की प्रमुख कार्यविधि है। चार्ल्स डार्विन ने इसकी नींव रखी और इसका प्रचार-प्रसर किया।
यह तंत्र विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक प्रजाति को पर्यावरण के लिए अनुकूल बनने मे सहायता करता है। प्राकृतिक चयन का सिद्धांत इसकी व्याख्या कर सकता है कि पर्यावरण किस प्रकार प्रजातियों और जनसंख्या के विकास को प्रभावित करता है ताकि वो सबसे उपयुक्त लक्षणों का चयन कर सकें। यही विकास के सिद्धांत का मूलभूत पहलू है।
प्राकृतिक चयन का अर्थ उन गुणों से है जो किसी प्रजाति को बचे रहने और प्रजनन मे सहायता करते हैं और इसकी आवृत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती रहती है। यह इस तथ्य को और तर्कसंगत बनाता है कि इन लक्षणों के धारकों की सन्ताने अधिक होती हैं और वे यह गुण वंशानुगत रूप से भी ले सकते हैं।
उदाहरण
संपादित करेंप्राकृतिक वरण के सिद्धान्त को समझाने के लिये जिराफ़ का उदाहरण दिया जाता है।
प्राकृतिक वरण के प्रकार
संपादित करेंप्राकृतिक वरण तीन प्रकार का होता है-
- दिशिक वरण (डाइरेक्शनल सेलेक्शन)
- स्थाईकारक वरण (स्टैब्लाइजिंग सेलेक्शन)
- विविधकारक वरण (डाइवर्सिफाइंग सेलेक्शन)
यौन वरण
संपादित करेंइन्हें भी देखें
संपादित करें- मानव का विकास
- जीवजाति का उद्भव ('द ओरिजिन ऑफ स्पेसीज')
- डायनासोर
- स्वस्थतम की उत्तरजीविता (सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट)
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- प्राकृतिक वरण और 'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट'
- On the Origin of Species by Charles Darwin – Chapter 4, Natural Selection
- Natural Selection- Modeling for Understanding in Science Education, University of Wisconsin
- Natural Selection from University of Berkeley education website
- T. Ryan Gregory: Understanding Natural Selection: Essential Concepts and Common Misconceptions[मृत कड़ियाँ] Evolution: Education and Outreach
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