संस्कृत, हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में वाक्य के अन्त में (प्रश्नवाचक वाक्यों को छोड़कर) जो विराम चिह्न उपयोग में लाया जाता है उसे पूर्ण विराम कहते हैं। हिन्दी में इसे 'खड़ी पाई' भी कहते हैं। देवनागरी लिपि में इसके लिए () चिह्न का प्रयोग होता है।

कुछ लोग एवं प्रकाशन इसके स्थान पर रोमन 'फुल स्टॉप' (.) का भी प्रयोग करते हैं। किन्तु यह तर्कसंगत नहीं है। कुछ लोग इसे देवनागरी लिपि की परम्परा और वैज्ञानिकता से छेड़-छाड़ करने के बराबर मानते है। देवनागरी लिपि की वर्णमाला को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि उसमें सर्वत्र खड़ी पाई का ही बोलबाला है। लगभग हर वर्ण में खड़ी पाई या तो पूर्ण रूप से विद्यमान है अथवा आंशिक रूप से। विद्वानों का यहां तक मत है कि हिंदी का एक नाम खड़ी बोली इसलिए है क्योंकि इसमें खड़ी पाई सभी जगह पाई जाती है। इसलिए खड़ी पाई देवनागरी लिपि की प्रकृति के अनुकूल है। इसे ही विराम चिह्न के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए।

खड़ी पाई के पक्ष में एक अन्य बात भी है। केवल यही एक हिंदी का अपना विराम चिह्न है, बाकी सब अंग्रेजी के हैं। तब फिर उसे क्यों छोड़ा जाए। फुल स्टॉप्प का प्रयोग न करने के पक्ष में एक ठोस तर्क यह भी है कि हिंदी में 'बिंदी' का बहुत अधिक उपयोग होता है - नुक्ता के रूप में, बहुवचन सूचित करने के लिए, दशमलव चिह्न के रूप में, और ङ जैसे कुछ अक्षरों में तो वह पहले से ही विद्यमान है। इस तरह हिंदी में बिंदी शब्द के आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, सभी जगह लगाई जाती है। अब विराम चिह्न के लिए भी उसका उपयोग करने से भारी गड़बड़ी फैल जाएगी।

दूसरी बात कंप्यूटर स्क्रीन पर उसके ठीक से दिखने से संबंधित है। बहुत कम पिक्सेल आकार में बिंदी ठीक से नहीं दिखाई देती है अथवा उसके आस-पास के पिक्सलों में वह विलीन हो जाती है। इसलिए बहुत छोटे टाइप साइसों में 'हिंदी', 'पढ़', आदि की बिंदी दिखाई ही नहीं देती। यदि हम विराम चिह्न के लिए भी बिंदी का प्रयोग करने लगें, तो बहुत छोटे टाइपसाइसों में यह पता ही नहीं चल पाएगा कि वाक्य कहां समाप्त हो रहा है।

इन्हें भी देखें

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