पर्यूषण पर्व, जैन समाज का एक महत्वपूर्ण पर्व है। जैन धर्मावलंबी भाद्रपद मास में पर्यूषण पर्व मनाते हैं। ये पर्यूषण पर्व 8 दिन चलते हैं। 8 वें दिन जैन धर्म के लोगों का महत्वपूर्ण त्यौहार संवत्सरी पर्व[1] मनाया जाता है। इस दिन यथा शक्ति उपवास रखा जाता है। पर्यूषण पर्व की समाप्ति पर संवत्सरी(क्षमायाचना) पर्व मनाया जाता है।

पर्यूषण
[[File:Das Lakshana celebrations, New York City Jain temple 2.JPG
Paryusan Mahaparva
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अमेरिका का जैन केन्द्र, न्यूयॉर्क शहर में पर्यूषण का आयोजन।
अन्य नाम पर्युषण (अष्टानिका)
अनुयायी जैन
उत्सव 8 दिन
अनुष्ठान उपवास, जैन मन्दिर में जाना
समान पर्व संवत्सरी

[2] इन 8 दिनों में श्रावक अपनी शक्ति अनुसार व्रत-उपवास आदि करते है। ज्यादा से ज्यादा समय भगवन की पूजा-अर्चना में व्यतीत किया जाता है।

जैन ग्रन्थ,कल्पसूत्र (जैन) [3]एवं का इन 8 दिनों मे वाचन किया जाता है ।

इन 8 दिन मे सुबह एवं शाम को प्रतिक्रमण करते हुए पूरे साल मे किये गए पाप और कटू वचन से किसी के दिल को जानते और अनजाने ठेस पहुंची हो तो क्षमा याचना करते है॥ एक दूसरे को क्षमा करते है और एक दूसरे से क्षमा माँगते है और हाथ जोड कर गले मिलकर मिच्छामी दूक्कडम करते है॥

उद्देश्य

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पर्यूषण पर्व मनाने का मूल उद्देश्य आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए आवश्यक उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। पर्यावरण का शोधन इसके लिए वांछनीय माना जाता है। आत्मा को पर्यावरण के प्रति तटस्थ या वीतराग बनाए बिना शुद्ध स्वरूप प्रदान करना संभव नहीं है। इस दृष्टि से'कल्पसूत्र' या तत्वार्थ सूत्र का वाचन और विवेचन किया जाता है और संत-मुनियों और विद्वानों के सान्निध्य में स्वाध्याय किया जाता है।[4]

पूजा, अर्चना, प्रतिक्रमण, सामायिक समागम, त्याग, तपस्या, उपवास में अधिक से अधिक समय व्यतीत किया जाता है और दैनिक व्यावसायिक तथा सावद्य क्रियाओं से दूर रहने का प्रयास किया जाता है। संयम और विवेक का प्रयोग करने का अभ्यास चलता रहता है।

मंदिर, उपाश्रय, स्थानक में अधिकतम समय तक रहना जरूरी माना जाता है। वैसे तो पर्यूषण पर्व दीपावली व क्रिसमस की तरह उल्लास-आनंद के त्योहार नहीं हैं। फिर भी उनका प्रभाव पूरे समाज में दिखाई देता है। उपवास, बेला, तेला, अठ्ठाई, मासखमण जैसी लंबी बिना कुछ खाए, बिना कुछ पिए, निर्जला तपस्या करने वाले हजारों लोग सराहना प्राप्त करते हैं। भारत के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी व अन्य अनेक देशों में भी पर्यूषण पर्व धूमधाम से मनाए जाते हैं।

मगर पर्यूषण पर्व पर संवत्सरी या क्षमापना (खमतखामना) [1]का कार्यक्रम ऐसा है जिससे जैनेतर जनता को काफी प्रेरणा मिलती है। इसे सामूहिक रूप से विश्व-मैत्री दिवस के रूप में मनाया जा सकता है। पर्यूषण पर्व के समापन पर इसे मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी या ऋषि पंचमी को संवत्सरी पर्व मनाया जाता है।[2]

उस दिन लोग उपवास रखते हैं और स्वयं के पापों की आलोचना करते हुए भविष्य में उनसे बचने की प्रतिज्ञा करते हैं। इसके साथ ही वे चौरासी लाख योनियों में विचरण कर रहे, समस्त जीवों से क्षमा माँगते हुए यह सूचित करते हैं कि उनका किसी से कोई बैर नहीं है।

परोक्ष रूप से वे यह संकल्प करते हैं कि वे पर्यावरण में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे। मन, वचन और काया से जानते या अजानते वे किसी भी हिंसा की गतिविधि में भाग न तो स्वयं लेंगे, न दूसरों को लेने को कहेंगे और न लेने वालों का अनुमोदन करेंगे। यह आश्वासन देने के लिए कि उनका किसी से कोई बैर नहीं है, वे यह भी घोषित करते हैं कि उन्होंने विश्व के समस्त जीवों को क्षमा कर दिया है और उन जीवों को क्षमा माँगने वाले से डरने की जरूरत नहीं है।

खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे।

मित्तिमे सव्व भुएस्‌ वैरं ममझं न केणई।[5]

यह वाक्य परंपरागत जरूर है, मगर विशेष आशय रखता है। इसके अनुसार क्षमा माँगने से ज्यादा जरूरी क्षमा करना है।

क्षमा देने से आप अन्य समस्त जीवों को अभयदान देते हैं और उनकी रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। तब आप संयम और विवेक का अनुसरण करेंगे, आत्मिक शांति अनुभव करेंगे और सभी जीवों और पदार्थों के प्रति मैत्री भाव रखेंगे। आत्मा तभी शुद्ध रह सकती है जब वह अपने से बाहर हस्तक्षेप न करे और बाहरी तत्व से विचलित न हो। क्षमा-भाव इसका मूलमंत्र है।[1]

इन्हें भी देखें

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  1. "Samvatsari Festival/paryushan mahaparva: आज है जैन धर्म के लोगों का मुख्य पर्व 'संवत्सरी', जानें इस दिन क्यों मांगी जाती है क्षमा". Jansatta. 2019-09-03. अभिगमन तिथि 2024-09-10.
  2. "पर्युषण पर्व". मूल से 10 सितंबर 2024 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 सितंबर 2024.
  3. "Kalpa Sutra: जानें क्या है कल्पसूत्र, जिसे केवल सुनने मात्र से होती है मोक्ष की प्राप्ति, what is kalpa sutra and why jains read it in Paryushan". www.timesnowhindi.com. 2019-08-30. अभिगमन तिथि 2024-09-10.
  4. "प्रतिक्रमण-: दैवसिक प्रतिक्रमण श्रमण". सहजो निराकुल (अंग्रेज़ी में). 2023-01-03. अभिगमन तिथि 2024-09-10.
  5. प्रशमिता श्री जी, जैन साध्वी (2012). सूत्र संवेदना. अहमदावाद: सन्मार्ग प्रकाशन. पृ॰ 320.