पराशर झील के किनारे आकर्षक पैगोडा शैली में पराशर मंदिर निर्मित है। इस मंदिर को 14वीं शताब्दी में मंडी रियासत के राजा बाणसेन ने बनवाया था। कला संस्कृति प्रेमी पर्यटक मंदिर प्रांगण में बार-बार जाते हैं। कहा जाता है कि जिस स्थान पर मंदिर है वहां ऋषि पराशर ने तपस्या की थी।

पिरमिडाकार पैगोडा शैली के गिने-चुने मंदिरों में से एक काठ निर्मित, 92 बरसों में बने, तिमंजिले मंदिर की भव्यता अपने आप में मिसाल है। पारंपरिक निर्माण शैली में दीवारें चिनने में पत्थरों के साथ लकडी की कडियों के प्रयोग ने पूरे प्रांगण को अनूठी व नायाब कलात्मकता बख्शी है। मंदिर के बाहरी तरफ व स्तंभों पर की गई नक्काशी अद्भुत है। इनमें उकेरे देवी-देवता, सांप, पेड-पौधे, फूल, बेल-पत्ते, बर्तन व पशु-पक्षियों के चित्र क्षेत्रीय कारीगरी के नमूने हैं। महर्षि पाराशर की तपोस्थली राजस्थान के अलवर जिले की टहला तहसील में खो-दरीबा नामक स्थान के पास हैं जहाँ उस अध्यात्म शक्ति का अनुभव किया जा सकता हैं ।

मंडी के प्रमुख पर्यटन स्थल
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