नीलगाय

सबसे बड़ा एशियाई मृग
(नील गाय से अनुप्रेषित)

नीलगाय एक बड़ा और शक्तिशाली जानवर है। कद में नर नीलगाय घोड़े जितना होता है, पर उसके शरीर की बनावट घोड़े के समान सन्तुलित नहीं होती। पृष्ठ भाग अग्रभाग से कम ऊँचा होने से दौड़ते समय यह अत्यंत अटपटा लगता है। अन्य मृगों की तेज चाल भी उसे प्राप्त नहीं है। इसलिए वह बाघ, तेन्दुए और सोनकुत्तों का आसानी से शिकार हो जाता है, यद्यपि एक बड़े नर को मारना बाघ के लिए भी आसान नहीं होता। छौनों को लकड़बग्घे और गीदड़ उठा ले जाते हैं। परन्तु कई बार उसके रहने के खुले, शुष्क प्रदेशों में उसे किसी भी परभक्षी से डरना नहीं पड़ता क्योंकि वह बिना पानी पिए बहुत दिनों तक रह सकता है, जबकि परभक्षी जीवों को रोज पानी पीना पड़ता है। इसलिए परभक्षी ऐसे शुष्क प्रदेशों में कम ही जाते हैं।

नीलगाय (रोज/रोजडा)
नीलगाय नर की नीली आभा
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: जन्तु
संघ: रज्जुकी
वर्ग: स्तनधारी
गण: आर्टिओडैक्टाइला
कुल: बोविडी
उपकुल: बोविनी
वंश: बोस्लाफस
ब्लैनविल, 1816
जाति: B. tragocamelus
द्विपद नाम
Boselaphus tragocamelus
(पलास, 1766)
वितरण मानचित्र www.ultimateungulate.com द्वारा


वास्तव में "नीलगाय" इस प्राणी के लिए उतना सार्थक नाम नहीं है क्योंकि मादाएँ भूरे रंग की होती हैं। नीलापन वयस्क नर के रंग में पाया जाता है। वह लोहे के समान सलेटी रंग का अथवा धूसर नीले रंग का शानदार जानवर होता है। उसके आगे के पैर पिछले पैर से अधिक लम्बे और बलिष्ठ होते हैं, जिससे उसकी पीठ पीछे की तरफ ढलुआँ होती है। नर और मादा में गर्दन पर अयाल होता है। नरों की गर्दन पर सफेद बालों का एक लम्बा और सघन गुच्छा रहता है और उसके पैरों पर घुटनों के नीचे एक सफेद पट्टी होती है। नर की नाक से पूँछ के सिरे तक की लम्बाई लगभग ढाई मीटर और कन्धे तक की ऊँचाई लगभग डेढ़ मीटर होती है। उसका वजन 250 किलो तक होता है। मादाएँ कुछ छोटी होती हैं। केवल नरों में छोटे, नुकीले सींग होते हैं जो लगभग 20 सेण्टीमीटर लम्बे होते हैं।

नीलगाय (मादा)

नीलगाय भारत में पाई जानेवाली मृग जातियों में सबसे बड़ी है। मृग उन जन्तुओं को कहा जाता है जिनमें स्थायी सींग होते हैं, यानी हिरणों के शृंगाभों के समान उनके सींग हर साल गिरकर नए सिरे से नहीं उगते।

नीलगाय दिवाचर (दिन में चलने-फिरने वाला) प्राणी है। वह घास भी चरती है और झाड़ियों के पत्ते भी खाती है। मौका मिलने पर वह फसलों पर भी धावा बोलती है। उसे बेर के फल खाना बहुत पसन्द है। महुए के फूल भी बड़े चाव से खाए जाते हैं। अधिक ऊँचाई की डालियों तक पहुँचने के लिए वह अपनी पिछली टाँगों पर खड़ी हो जाती है। उसकी सूँघने और देखने की शक्ति अच्छी होती है, परन्तु सुनने की क्षमता कमजोर होती है। वह खुले और शुष्क प्रदेशों में रहती है जहाँ कम ऊँचाई की कँटीली झाड़ियाँ छितरी पड़ी हों। ऐसे प्रदेशों में उसे परभक्षी दूर से ही दिखाई दे जाते हैं और वह तुरनत भाग खड़ी होती है। ऊबड़-खाबड़ जमीन पर भी वह घोड़े की तरह तेजी से और बिना थके काफी दूर भाग सकती है। वह घने जंगलों में भूलकर भी नहीं जाती।

सभी नर एक ही स्थान पर आकर मल त्याग करते हैं, लेकिन मादाएँ ऐसा नहीं करतीं। ऐसे स्थलों पर उसके मल का ढेर इकट्ठा हो जाता है। ये ढेर खुले प्रदेशों में होते हैं, जिससे कि मल त्यागते समय यह चारों ओर आसानी से देख सके और छिपे परभक्षी का शिकार न हो जाए।

नीलगाय राजस्थान, मध्य प्रदेश के कुछ भाग, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, बिहार और आन्ध्र प्रदेश में पाई जाती है। वह सूखे और पर्णपाती वनों का निवासी है। वह सूखी, खुरदुरी घास-तिनके खाती है और लम्बी गर्दन की मदद से वह पेड़ों की ऊँची डालियों तक भी पहुँच जाती है। लेकिन उसके शरीर का अग्रभाग पृष्ठभाग से अधिक ऊँचा होने के कारण उसके लिए पहाड़ी क्षेत्रों के ढलान चढ़ना जरा मुश्किल है। इस कारण से वह केवल खुले वन प्रदेशों में ही पाई जाती है, न कि पहाड़ी इलाकों में।

 
Nilgai (blue bull) Leaf from the Shah Jahan Album

नीलगाय में नर और मादाएँ अधिकांश समय अलग झुण्डों में विचरते हैं। अकेले घूमते नर भी देखे जाते हैं। इन्हें अधिक शक्तिशाली नरों ने झुण्ड से निकाल दिया होता है। मादाओं के झुण्ड में छौने भी रहते हैं।

नीलगाय निरापद जीव प्रतीत हो सकती है पर नर अत्यन्त झगड़ालू होते हैं। वे मादाओं के लिए अक्सर लड़ पड़ते हैं। लड़ने का उनका तरीका भी निराला होता है। अपनी कमर को कमान की तरह ऊपर की ओर मोड़कर वे धीरे-धीरे एक-दूसरे का चक्कर लगाते हुए एक-दूसरे के नजदीक आने की चेष्टा करते हैं। पास आने पर वे आगे की टाँगों के घुटनों पर बैठकर एक-दूसरे को अपनी लम्बी और बलिष्ठ गर्दनों से धकेलते हैं। यों अपनी गर्दनों को उलझाकर लड़ते हुए वे जिराफों के समान लगते हैं। अधिक शक्तिशाली नर अपने प्रतिद्वन्द्वी के पृष्ठ भाग पर अपने पैने सींगों की चोट करने की कोशिश करता है। जब कमजोर नर भागने लगता है, तो विजयी नर अपनी झाड़ू-जैसी पूँछ को हवा में झण्डे के समान फहराते हुए और गर्दन को झुकाकर मैदान छोड़कर भागते प्रतिद्वन्द्वी के पीछे दौड़ पड़ता है। यों लड़ते नर आस-पास की घटनाओं से बिलकुल बेखबर रहते हैं और उनके बहुत पास तक जाया जा सकता है।

प्रत्येक नर कम-से-कम दो मादाओं पर अधिकार जमाता है। नीलगाय बहुत कम आवाज करती है, लेकिन मादा कभी-कभी भैंस के समान रँभाती है। नीलगाय साल के किसी भी समय जोड़ा बाँधती है, पर मुख्य प्रजनन समय नवम्बर-जनवरी होता है, जब नरों की नीली झाईवाली खाल सबसे सुन्दर अवस्था में होती है।

मैथुन के बाद नर मादाओं से अलग हो जाते हैं और अपना अलग झुण्ड बना लेते हैं। इन झुण्डों में अवयस्क नर भी होते हैं, जिनकी खाल अभी नीली और चमकीली नहीं हुई होती है। मादाओं के झुण्डों में 10-12 सदस्य होते हैं, पर नर अधिक बड़े झुण्डों में विचरते हैं, जिनमें 20 तक नर हो सकते हैं। इनमें छोटे छौनों से लेकर वयस्क नरों तक सभी उम्रों के नर होते हैं। ये नर अत्यन्त झगड़ालू होते हैं और आपस में बार-बार जोर आजमाइश करते रहते हैं। जब झगड़ने के लिए कोई नहीं मिलता तो ये अपने सींगों को झाड़ियों में अथवा जमीन पर ही दे मारते हैं।

नीलगाय चरते या सुस्ताते समय अत्यन्त सतर्क रहती है। सुस्ताने के लिए वह खुली जमीन चुनती है और एक-दूसरे से पीठ सटाकर लेटती है। यों लेटते समय हर दिशा पर झुण्ड का कोई एक सदस्य निगरानी रखता है। कोई खतरा दिखने पर वह तुरन्त खड़ा हो जाता है और दबी आवाज में पुकारने लगता है।

छौने सितम्बर-अक्टूबर में पैदा होते हैं जब घास की ऊँचाई उन्हें छिपाने के लिए पर्याप्त होती है। ये छौने पैदा होने के आठ घण्टे बाद ही खड़े हो पाते हैं। कई बार जुड़वे बच्चे पैदा होते हैं। छौनों को झुण्ड की सभी मादाएँ मिलकर पालती हैं। भूख लगने पर छौने किसी भी मादा के पास जाकर दूध पीते हैं।

नीलगाय अत्यन्त गरमी भी बरदाश्त कर सकती है और दुपहर की कड़ी धूप से बचने के लिए भर थोड़ी देर छाँव का सहारा लेती है। उसे पानी अधिक पीने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि अपनी खुराक से ही वह आवश्यक नमी प्राप्त कर लेती है।

नीलगाय भारत के उन अनेक खुशनसीब प्राणियों में से एक है जिन्हें लोगों की धार्मिक मान्यताओं के कारण सुरक्षा प्राप्त है। चूँकि इस जानवर के नाम के साथ "गाय" शब्द जुड़ा है, उसे लोग गाय की बहन समझकर मारते नहीं है, हालाँकि नीलगाय खड़ी फसल को काफी नुक्सान करती है। उसे पालतू बनाया जा सकता है और नर नीलगाय से बैल के समान हल्की गाड़ी भी खिंचवाई जा सकती है।

  1. Mallon, D.P. (2008). Boselaphus tragocamelus. 2008 संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN लाल सूची. IUCN 2008. Retrieved on 29 मार्च 2009. Database entry includes a brief justification of why this species is of least concern.

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