ननुआ बैरागी, (~17वीं-18वीं शताब्दी) पंजाब के एक प्रसिद्ध रहस्यवादी, मानवतावादी और सिख योद्धा थे। [1] उन्हें ननुआ भगत और जमाला सिंह के नाम से भी जाना जाता है।

ननुआ बैरागी, प्रसिद्ध रहस्यवादी, मानवतावादी और सिख योद्धा। वे एक रहस्यवादी कवि तथा सिख गुरुओं के करीबी सहयोगी थे। भगत ननुआ 17वीं शताब्दी के प्रतिष्ठित सैनी थे।

ननुआ भगत, भाई कन्हैया के आध्यात्मिक गुरु भी थे [2] [3] जिन्होंने आगे चलकर सेवापंथी मिशन शुरू किया। सिख गुरुओं के दरबारी कवि के रूप में, उनकी कविता ने बुल्हे शाह की काव्य शैली पर छाप छोड़ी।

भाई ननुआ जी ने ही 30 मार्च 1664 को श्री गुरु हरकृष्ण जी के देह त्यागने के बाद उनका अंतिम संस्कार कर उनकी अस्थियों को कीरतपुर साहिब की सतलुज नदी में प्रवाहित किया था। इसके बाद भाई जी ने बकाले जाकर श्री गुरु तेग बहादुर जी की सेवा की। जब गुरू जी ने धर्मरक्षा के लिए अपना बलिदान कियाकु, उस समय इन्होंने भाई लखी शाह वंजारा के साथ मिलकर गुरू जी के धड़ का अंतिम संस्कार करने में अहम सेवा निभाई। इसके बाद भाई ननुआ जी श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी की सेवा में समर्पित हुए और अमृत छकते हुए भाई ज्वाला सिंह ननुआ बन गए। भाई ज्वाला सिंह ननुआ ने गुरू जी संग ही आनंदपुर का क़िला त्यागा था। इसके बाद वह चमकौर साहिब पहुंचे और चालीस सिखों के साथ मुगलों संग लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

भाई जी के पुत्रों ने भी पंथ की रक्षा के लिए संघर्ष किया और अपने प्राण दिये।

  1. Nanua Bhagat is a renowned ascetic and mystic and a Punjabi poet of the classical school, Rose-garden of the Punjab: English renderings from Punjabi folk poetry, p. 106 ,Gurbachan Singh Talib, Compiled by Kamal Krishan Mukerji, Published by Punjabi University, 1973
  2. "Bhai Kanhaiya would have hardly stepped in his teens that he, fortuitously, came across saint Nanua, an eminent gnostic and a heavenly-minded man. His company and precepts had lasting effect on his delicate mind." Bhai Kanhaiya, Beacon-light of Humanitarian Service & the Apostle of Peace, Chapter 6- A Contact with Bhakt Nanua, p. 19, Bhagata Singha Hīrā, Published by Sewa Jyoti Publications, 1988
  3. "Bhai Kanhaiya passed his early days in his company. He listened to his sermons with keen interest, enjoyed his charming communions with eagerness and moulded his character accordingly. His devotion to Nanua advanced every day. As a true devotee he adopted his every advice." Bhai Kanhaiya, Beacon-light of Humanitarian Service & the Apostle of Peace, Chapter 6- A Contact with Bhakt Nanua, p. 22, Bhagata Singha Hīrā, Published by Sewa Jyoti Publications, 1988