तौहीद

एकल, अविभाज्य ईश्वर की इस्लाम की केंद्रीय एकेश्वरवादी अवधारणा

तौहीद: एक अल्लाह को मानना इस्लाम का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इसी का नाम तौहीद (एकेश्वरवाद) है। ये इस्लाम की विशिष्ट शिक्षा है।[1]

हजरत मुहम्मद [सल्ल०] दीन-ए-इस्लाम के आखरी पैग़म्बर हैं, दरअसल जब से दुनिया वजूद में आयी है यानी आदम [अलै०] से लेकर हजरत मुहम्मद [सल्ल०] तक धर्म या दीन तो एक ही रहा है यानि दीन-ए-इस्लाम। अल्लाह तआला ने हर कौम और हर जगह अपने सन्देश वाहक यानि पैगम्बर भेजे हैं, हजरत मुहम्मद [सल्ल०] इस सिलसिले की आखरी कड़ी हैं, आदम [अलै०] ने तौहीद यानि एक ख़ुदा को मानना​​ और अल्लाह की ज़ात व उसकी सिफात में किसी को शरीक न करने की शिक्षा दी।

जैसे जैसे ज़माना तरक्की करता चला गया वैसे वैसे अल्लाह के पैगम्बर नयी नयी शिक्षाएँ लाते गए मगर बुनियादी शिक्षाएँ यानि [एक ख़ुदा को मानना​​ और अल्लाह की ज़ात व उसकी सिफात में किसी को शरीक न करना] हर पैगम्बर ने बतायीं और उस पर अमल करने की शिक्षा दीं और खुद भी उन पर अमल करके दिखाया। दुनियावी चीजें मनुष्य, पशु, दृश्य प्रकृति, सब उसकी पैदा की हुई हैं। ईश्वर एकमात्र और उसका कोई साझी नहीं।

शहादत रखने का मतलब है कि बंदा मन भाषा से यह स्वीकार करे कि इस ब्रह्मांड का निर्माता और मालिक सिर्फ अल्लाह है, वह सब पर फ़ाइक है, वह किसी की औलाद है न उसकी कोई औलाद है। केवल वही पूजा के योग्य है। किसी और के लिए इससे बढ़कर महिमा और रिफअत और शान-ए-किबरियाई की कल्पना भी कठिन है। वही सर्वशक्तिमान है और किसी को कोई शक्ति नहीं। उसका इरादा इतना शक्तिशाली और ग़ालिब है कि उसे संसार में सब मिलकर भी मगलूब नहीं कर सकते। उसकी शक्तियां और तसरफ़ात सीमा गिनती से बाहर हैं। क़ुरआन-ए-हकीम में है:

अल्लाह तो केवल अकेला पूज्य है। यह उसकी महानता के प्रतिकूल है कि उसका कोई बेटा हो। आकाशों और धरती में जो कुछ है, उसी का है। और अल्लाह कार्यसाधक की हैसियत से काफ़ी है [2]

  1. प्रोफेसर जियाउर्रहमान आज़मी, कुरआन मजीद की इन्साइक्लोपीडिया (20 दिसम्बर 2021). "तौहीद (एकेश्वरवाद)". www.archive.org. पृष्ठ 337.
  2. क़ुरआन 4:171 https://tanzil.net/#trans/hi.farooq/4:171