तमिल कैलेंडर एक सौर कैलेंडर है, जो नाक्षत्र समय पर आधारित है। इसका उपयोग मूल रूप से भारतीय उपमहाद्वीप पर रहने वालें तमिल भाषी लोगों के द्वारा किया जाता है। इस कैलेंडर का व्यापक प्रयोग भारत के पुदुचेरी शहर में देखा गया है। भारत के बाहर यह श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर और मॉरिशस जैसे देशों में रह रहे तमिल भाषी लोगों के द्वारा भी उपयोग में लाया जाता है।[1][2]

तमिल कैलेंडर के महीने

तमिल भाषी लोगों के द्वारा इस कैलेंडर का उपयोग सांस्कृतिक, धार्मिक और कृषि सम्बन्धी उत्सवों की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है, हालांकि वर्तमान समय में ग्रेगोरी कैलेंडर का प्रचार-प्रसार भारत के भीतर और बाहर दोनों जगहों पर अधिकाधिक होने के कारण तमिल कैलेंडर के उपयोग में गिरावट आई है। यह कैलेंडर शास्त्रीय हिंदू सौर कैलेंडर से प्रेरित है, जिस कारण असम, पश्चिम बंगाल, केरल, मणिपुर, नेपाल, ओडिशा, राजस्थान और पंजाब में रह रहे लोगों के द्वारा भी इसे उपयोग में लाते देखा गया है।[3][4]

विस्तृत जानकारी

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तमिल कैलेंडर 60 साल के चक्र प्रणाली का अनुसरण करता है। यह एक अति प्राचीन प्रणाली है। भारत और चीन के अधिकांश पारंपरिक कैलेंडरों में इसी प्रणाली का प्रयोग देखा जाता है। यह प्रणाली सूर्य के चारों ओर परिक्रमण करते बृहस्पति के 12-वर्षीय परिक्रमा से संबंधित है। इसमें बृहस्पति के पाँच परिक्रमाओं को आधार बनाया जाता है, जो पृथ्वी के 60 वर्षों के समान है।

ग्रेगोरी कैलेंडर के आधार पर तमिल नववर्ष 14 अप्रैल को आता है। ग्रेगोरी कैलेंडर के 2023वें साल में तमिल कैलेंडर में कलियुग का 5125वां वर्ष शुरू हो गया है। प्रारंभिक तमिल साहित्य में तमिल कैलेंडर के नए साल के कई संदर्भ देखने को मिलते हैं। नेतुनलवताई के संगम काल के लेखक नक्किरर ने तीसरी शताब्दी ईस्वी में लिखा था कि सूर्य हर साल अप्रैल के मध्य में मेशा/चित्तिराई से होकर राशि चक्र के 11 क्रमिक राशियों के मध्य में यात्रा करता है। इस तरह सूर्य की एक यात्रा वापस अप्रैल महीने पर आकर समाप्त होती है, जिस कारण तमिल कैलेंडर में नव वर्ष की शुरुआत अप्रैल महीने में होती है। प्राचीन ग्रंथ कुदालूर किरार पुन्नानुसु भी वर्ष की शुरुआत के रूप में मेशा रासी/चित्तिराई यानी मध्य अप्रैल को ही संदर्भित करता है। सबसे पुराने जीवित तमिल व्याकरण पाठों में से एक टोलकाप्पियम वर्ष को छह मौसमों में विभाजित करता है, जिसमें चित्तिराई यानी मध्य अप्रैल इलावेनिल मौसम/ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है। 5वीं शताब्दी की रचना सिलप्पाधिगारम में 12 राशियों का उल्लेख है, जो अप्रैल के मध्य में मेशा/चित्तिराई से शुरू होने वाले तमिल महीनों के अनुरूप हैं। मध्ययुगीन टिप्पणीकार आदियारकुनालार ने तमिल कैलेंडर के बारह महीनों का उल्लेख करते हुए इसकी शुरुआत चित्तिराई यानी मध्य अप्रैल से मानी है। इसके बाद म्यान्मार के बुतपरस्त और थाईलैण्ड के सुखोथाई में 11वीं शताब्दी ई॰पू॰ और 14वीं शताब्दी ई॰पू॰ के दक्षिण भारतीय वैष्णव दरबारियों के शिलालेख मिले हैं, जो अप्रैल के मध्य में शुरू होने वाले एक पारंपरिक कैलेंडर को परिभाषित करते हैं। तमिल नव वर्ष जिसे निरयनम भी कहा जाता है, वसंत विषुव के बाद आता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह दिन 14 अप्रैल को पड़ता है। इस दिन तमिल नाडु, श्रीलंका और मॉरिशस में सार्वजनिक अवकाश होता है। उष्णकटिबंधीय वसंत विषुव आमतौर पर 22 मार्च के आसपास आता है और इसमें 23 डिग्री दोलन जोड़ने पर हिंदू नाक्षत्र या निरयण मेष संक्रांति देखने को मिलता है। तमिल कैलेंडर के नववर्ष के दिन ही भारत के असम, पश्चिम बंगाल, केरल, ओडिशा, मणिपुर, पंजाब आदि राज्यों में भी नया साल मनाया जाता है। इतना ही नहीं म्यान्मार, कम्बोडिया, लाओस, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल और थाईलैण्ड में भी इसी दिन पारंपरिक रूप से नए साल को मनाया जाता है।[5][6][7][8][9][10][11][12][13]

इन्हें भी देखें

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  1. S.K. Chatterjee, Indian Calendric System, Publications Division, Ministry of Information and Broadcasting, Government of India, 1998
  2. Sewell, Robert and Dikshit, Sankara B.: The Indian Calendar – with tables for the conversion of Hindu and Muhammadan into a.d. dates, and vice versa. Motilal Banarsidass Publ., Delhi, India (1995). Originally published in 1896
  3. Indian Epigraphy, D.C. Sircar, TamilNet, Tamil New Year, 13 April 2008
  4. S.K. Chatterjee, Indian Calendric System, Publications Division, Ministry of Information and Broadcasting, Government of India, 1998.
  5. JV Chelliah: Pattupattu: Ten Tamil Idylls. Tamil Verses with English Translation. Thanjavur: Tamil University, 1985 -Lines 160 to 162 of the Neṭunalvāṭai.
  6. The Four Hundred Songs of War and Wisdom: An Anthology of Poems from Classical Tamil, The Purananuru. Columbia University Press. 13 August 2013 – Poem 229 of Puṟanāṉūṟu
  7. Professor Vaiyapuri Pillai, 'History of Tamil Language and Literature' Chennai, 1956, pp. 35, 151
  8. Tolkappiyam Porulatikaram, Peraciriyam. Ed. by R.P.C Pavanantam Pillai. 2 Vols, Longmans,Creen and Co, Madras/Bombay/Calcutta. 1917
  9. R. Parthasarathy, The Tale of an Anklet: An Epic of South India: The Cilappatikāram of Iḷaṅko Aṭikaḷ. New York: Columbia University Press – Canto 26. Canto 5 also describes the foremost festival in the Chola country – the Indra Vizha celebrated in Chitterai
  10. Lakshmi Holmstrom, Silappadikaram, Manimekalai, Orient Longman Ltd, Madras 1996.
  11. G.H. Luce, Old Burma – Early Pagan, Locust Valley, New York, p. 68, and A.B. Griswold, 'Towards a History of Sukhodaya Art, Bangkok 1967, pages 12–32
  12. Dershowitz, Nachum and Reingold, Edward M.: Calendrical Calculations. Third edition, Cambridge University Press (2008).
  13. Underhill, Muriel M.: The Hindu Religious Year. Association Press, Kolkata, India (1921).