टंट्या भील

स्वतंत्रता सेनानी और इंडियन रोबिन्हुड (1842-1889)

टंट्या भील (निषाद) (टंट्या या टंट्या मामा) (26 जनवरी 1842 – 4 दिसंबर 1889) 1878 और 1889 के बीच भारत में सक्रिय एक निषादवंशी क्रान्तिकारी थे। द न्यूयॉर्क टाइम्स मे 10 नवंबर 1889 में प्रकाशित खबर में टंट्या भील को 'रॉबिनहुड ऑफ इंडिया' की पदवी से नवाजा गया था ।वे भारतीय "रॉबिन हुड" के रूप में ख्‍यात हैं।

टंट्या भील

The Tribes and Castes of the Central Provinces of India (1916) में किये गए चित्रण में टंट्या मामा
जन्म 26 जनवरी 1842 (आदिवासी लोकगीत अनुसार सक्रांति का 12 वा दिन)
पंधाना, मध्य प्रदेश, भारत
मौत 4 दिसंबर 1889
जबलपुर, मध्य प्रदेश, भारत
मौत की वजह फांसी
समाधि पातालपानी, मध्य प्रदेश
उपनाम 'रॉबिनहुड ऑफ इंडिया' (द न्यूयॉर्क टाइम्स दिनांक १० नवंबर १८८९ को प्रकाशित खबर अनुसार), आदिवासियों का मसीहा, महा विद्रोही, मालिक।
शिक्षा शिक्षा का स्पष्ट उल्लेख नहीं है किंतु टंट्या भील पाड़ा -वाडा़-दुडा-कोयामुरी-पेनकडा़-थाना-वाना-गावठाण-कूडा़ यानी पारंपरिक रूढ़िवादी ग्राम सभा का प्रतिनिधित्व करते थे और अंग्रेजी सहित कई भाषाएं जानते थे।
पातालपानी, मध्य प्रदेश

टंट्या भील आदिवासी समुदाय के सदस्य थे उनका वास्तविक नाम टंड्रा था, उनसे सरकारी अफसर या धनिक लोग ही भयभीत थे, आम जनता उसे 'टंटिया मामा' कहकर उसका आदर करती थी । टंट्या भील का जन्म मध्‍य प्रदेश के खंडवा जिले की पंधाना तहसील के ग्राम बड़दा में आदिवासी लोकगीत अनुसार संक्रांत के 12 दिन यानी 26 जनवरी1842 में हुआ था।[1] एक नए शोध के अनुसार उन्होंने 1857 में हुए पहले स्‍वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों द्वारा किये गए दमन के बाद अपने जीवन के तरीके को अपनाया[2] । टंट्या को पहली बार 1874 के आसपास "खराब आजीविका" के लिए गिरफ्तार किया गया था। एक साल की सजा काटने के बाद उनके जुर्म को चोरी और अपहरण के गंभीर अपराधों में बदल दिया गया। सन 1878 में दूसरी बार उन्‍हें हाजी नसरुल्ला खान यूसुफजई द्वारा गिरफ्तार किया गया था। मात्र तीन दिनों बाद वे खंडवा जेल से भाग गए और एक विद्रोही के रूप में शेष जीवन जिया[3]। इंदौर की सेना के एक अधिकारी ने टंट्या को क्षमा करने का वादा किया था, लेकिन घात लगाकर उन्‍हें जबलपुर ले जाया गया, जहाँ उन पर मुकदमा चलाया गया और 4 दिसंबर 1889 को उसे फाँसी दे दी गई। सामाजिक कार्यकर्ता राकेश देवडे़ बिरसावादी के अनुसार- "शुरुआत में टंट्या भील के विद्रोही प्रवृत्ति को उनके परिवार समाज और राष्ट्र पर हुए अन्याय और अत्याचार को जोड़कर देखा गया । उन्हें डकैत लुटेरा इस प्रकार की उपाधि सामंतवादी जमीदारों द्वारा दी गई क्योंकि यह लोग टंट्या के खिलाफ अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस की मदद मांगना चाहते थे इसलिए टंट्या भील को आरोपित किया गया । टंट्या भील का परिवार भी इस अन्याय और शोषण का शिकार हुआ थ। उनकी जमीन जमीदार पाटिल के पास गिरवी थी जिसका जबरन कब्जा कर ब्याज के रूप में वसूली जैसी बातों ने मानो गरीब किसानों, आदिवासियों के परिवार को नेस्तनाबूद कर दिया। वह निरंतर श्रम करने के बावजूद भी पेट भर खाना नहीं खा सकते थे ऐसी स्थिति में महाविद्रोही टंट्या भील का निर्माण हुआ था।"

अन्य महत्वपूर्ण

संपादित करें

एकलव्य

तांतिया भील मंदिर

राणा पूंजा

राजा मांडलिक

राजा धन्ना भील

राजा कोटिया भील

राजा बांसिया भील

राजा डुंगरीया भील

मनसुख भाई वसावा

दिवालीबेन भील

कृशण भिल

रेन्गू कोरकू

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें
  1. बी.एस., फारसिया. Bharat Mein Svatantrata Tatha Lokatantraatmak Ganarajy Ka Uday. बुक्सक्लिनिक पब्लिशिंग. अभिगमन तिथि 27 जुलाई 2021.
  2. Ramaṇikā Guptā; Anup Beniwal (1 January 2007). Tribal Contemporary Issues: Appraisal and Intervention. Concept Publishing Company. pp. 18–. ISBN 978-81-8069-475-2.
  3. Central Provinces (India) (1908). Nimar. Printed at the Pioneer Press. pp. 45