जैववैविध्य तप्तस्थल या जैववैविध्य उष्णस्थल एक ऐसा जैव भौगोलिक क्षेत्र होता है जहाँ पर्याप्त मात्रा में जैव विविधता पायी जाती है और वह किसी प्रकार के मानवीय क्रिया कलापों के कारण से संकट में आ गया हो। जैववैविध्य विशेषज्ञ डॉ. नॉर्मन मायर्स ने सर्वप्रथम इस तप्तस्थल को पहचाना और 1988 और 1990 में प्रकाशित अपने दो लेखों में इन्हें प्रस्तुत किया।

विश्व के जैववैविध्य तप्तस्थल ; इसमें मूल प्रस्ताव वाले तप्तस्थल हरे रंग में हैं जबकि बाद में जोड़े गए तप्तस्थल नीले रंग में
काला निशाकपि (लीमर) एक संकटग्रस्त प्राणी है।

अधिकांश तप्तस्थल उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों और जंगली क्षेत्रों में स्थित हैं। हमारी पृथ्वी पर 12 प्रमुख जैव-विविधता वाले क्षेत्रों की पहचान की गयी है। जिसमें विश्व की जैववैविध्य 60-70% जातियाँ शामिल हैं। इन सेक्टर्स को 'मैगजीन सेन्टर्स' कहते हैं। भारत इन देशों में से एक है-

(1) मैक्सिको, (2) कोलम्बिया, (3) ब्राजील, (4) पेरू, (5) इक्वेडोर, (6) जायेर , (7) मेडागास्कर, (8) इण्डोनेशिया, (9) मलेशिया, (10) भारत, (11) चीन, (2) आस्ट्रेलिया शामिल हैं।

किसी क्षेत्र को जैववैविध्य तप्तस्थल स्थल घोषित करने के लिए दो शर्तों का होना आवश्यक है-

  • (१) उस क्षेत्र में कम से कम 1500 स्थानबद्ध प्रजातियाँ होनी चाहिए।
  • (२) उस क्षेत्र के मूल आवास का 70 प्रतिशत उजड़ चुका हो अर्थात मानव गतिविधियों से उस क्षेत्र के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा हो।

भारत के जैव विविधता तप्तस्थल

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1988 में किये गये अध्ययन में पहचाने गए 18 तप्तस्थल में से दो भारत में खोजे गए। ये दो क्षेत्र पश्चिमी घाट और पूर्वी हिमालय हैं। बर्मा जैवविविधता तप्तस्थल में भारतीय भूभाग भी सम्मिलित है।

पूर्वी हिमालय जैव विविधता तप्तस्थल

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इसके अन्तर्गत पूर्वी हिमालय का असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल राज्यों का क्षेत्र आता है। हिमालय पर्वत शृंखला असीम जैव विविधता से संपन्न है। 750,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले हिमालय के जैवविविधता तप्त स्थल क्षेत्र में वनस्पतियों को लगभग 10,000 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से 3,160 प्रजातियाँ स्थानबद्ध हैं। इसके अलावा यहां 300 प्रजातियाँ, स्तनधारी जीवों की हैं। इस क्षेत्र में पाये जाने वाले कुछ प्रमुख जीवों के नाम हैं हिमालयी ताहर, सुनहरा लंगूर, हुलोक गिब्बन, उड़न गिलहरी, हिम तेंदुआ, गांगेय डॉल्फिन आदि।

पश्चिमी घाट जैव विविधता तप्तस्थल

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पश्चिमी घाटों को सहयाद्रि पहाड़ियाँ भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में लगभग 150,000 वर्ग किमी. का क्षेत्रफल आता है, और वह क्षेत्र देश के दक्षिणी छोर से गुजरात तक 1600 किमी. तक फैला हुआ है। पश्चिम घाट दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाओं को रोकते हैं। इसलिए इन पहाड़ियों की पश्चिमी तलाक पर हर साल भारी बारिश होती है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि यहाँ पाई जाने वाली वनस्पति विविधता गणना से लगभग परे हैं। झाड़ीदार जंगल, पतझड़ी एवं उष्णकटिबंधीय वर्षावन, पर्वतीय जंगल और शानदार घास के मैदान, यहाँ सब कुछ पाया जाता है। इस क्षेत्र में वनस्पतियों को 5916 प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिसमें से लगभग 50 प्रतिशत स्थानबद्ध हैं। जन्तुओं में स्तनधारी जीवों की 140 प्रजातियां पाई जाती है जिनमें से 18 स्थानबद्ध है। पक्षियों की 458 प्रजातियां पाई जाती है जिनमें से 174 स्थानबद्ध हैं। उभयचरों की 178 प्रजातियां पाई जाती है जिनमें से 130 स्थान हैं। मछलियों की 191 प्रजातियां पाई जाती है जिनमें से 139 स्थानबद्ध हैं। यहाँ पाये जाने वाले मुख्य जीव टरी-एशियाई हाथी, मैकाक बंदर

भारत-बर्मा जैव विविधता तप्त स्थल

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इस तप्तस्थल में पारिस्थितिकी संघों को आश्चर्यजनक विविधतायें देखने को मिलती हैं। इनमें मिश्रित आर्द्र सदाबहार , शुष्क सदाबहार, पतझड़ी एवं पर्वतीय वन सम्मिलित है। इस क्षेत्र में निम्मभूमि बाढ़ से तैयार दलदल , कच्छ वनस्पतियां (मैंग्रोव) और मौसमी घास के मैदान भी पाये जाते हैं। इस विशाल तप्तस्थल में 433 प्रकार के स्तनधारी जीव ,1266 प्रकार की मछली प्रजातियाँ पायी जाती है ।

इन्हें भी देखें

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