जुमई खां आजाद
जुमई खां आजाद (जन्म: ५ अगस्त १९३०; मृत्यु: २९ दिसम्बर २०१३) अवधी भाषा के प्रख्यात कवि और शायर थे। इन्हें अवधी के रसखान व अवधी सम्राट कहा जाता था। इन्हें अवधी अकादमी व लोकबन्धु राजनारायण स्मृति सम्मान से भी नवाजा गया
जुमई खां आजाद | |
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जुमई खां आजाद | |
जन्म |
जुमई खां आजाद 5 अगस्त 1930 प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत |
मौत |
29 दिसम्बर 2013 गोबरी गांव, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
पेशा | कवि |
प्रसिद्धि का कारण | अवधी भाषा में कविता लेखन |
प्रारंभिक जीवन
संपादित करेंकवि जुमई खां ‘आजाद’ का जन्म ५ अगस्त १९३० को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला में संडवाचंद्रिका ब्लाक के गोबरी गांव में हुआ। पिता सिद्दीक अहमद ने उन्हें हमेशा हौसला दिया। माँ हमीदा बानो ने संस्कारों की माला पहनाई।
साहित्यिक जीवन
संपादित करेंदुखिया मजूर की मेहनत पर,
कब तलक मलाई उड़ति रहे।
इनकी खोपड़ी पै महलन मा,
कब तक सहनाई बजति रहे॥
ई तड़क-भड़क, बैभव-बिलास,
एनहीं कै गाढ़ि कमाई आ।
ई महल जौन देखत बाट्या,
एनहीं कै नींव जमाई आ॥
ई कब तक तोहरी मोटर पर,
कुकुरे कै पिलवा सफर करी।
औ कब तक ई दुखिया मजूर,
आधी रोटी पर गुजर करी॥
जब कबौ बगावत कै ज्वाला,
इनके भीतर से भभकि उठी।
तूफान उठी तब झोपड़िन से,
महलन कै इंटिया खसकि उठी॥
‘आजाद’ कहैं तब बुझि न सकी,
चिनगारिउ अंगारा होइहैं।
तब जरिहैं महल-किला-कोठी,
कुटियन मा उजियारा होइहैं॥
कवि जुमई खां आजाद ने २१ किताबें लिखीं। इनमें भगवान राम व शिव स्तुति वाली अवधी भाषा की ‘केवट’ नामक पुस्तक भी है। इस किताब में ‘स्तुति करी शंकर तोरी, विपदा सुना मोरि धाइके, कैलाश गिरि छोड़त्या तनी, डमरू बजउत्या आइके’ शिव स्तुति लिख कर अलग छाप बनाई। इसी किताब में भगवान राम पर आधारित उनकी कविता ‘मोरे पूत का राज अयोध्या पुरी, वन राम भखै बिरझाई गई, नर नारी सबै दरबारी कहैं, केकई क मतवा पगलाई गई’ लिख कर उन्होंने जातयीता और धार्मिकता पर भी प्रबार किया। पुस्तक ‘अधूरा स्वप्न’ में उन्होंने देश प्रेम का अनोखा चित्रण लिखा ‘भोर काशी की शामें अवध देखिए, ज्ञान, मंदिर, मदरसा मगध देखिए, है अजंता के दर्शित हमारा वतन, कितना प्यारा वतन कितना प्यारा वतन’ इस तरह की उनकी तमाम रचनाएं हिंदू व मुसलमान को एकता का पाठ पढ़ा रही हैं।[1]
बड़ी बड़ी कोठिया सजाया पूंजीपतिया
कि दुखिया कै रोटिया चोराय-चोराय।
अपनी महलिया मे करे उजियरवा,
कि बिजुली कै रडवा जराय-ज़राय।
बिनु कटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं,
अपनी खुसी से धन-धरती बँटिहैं।
जनता के तलवा तिजोरिया में लगिहैं,
महलिया में बजना बजाय-बजाय।
सम्मान
संपादित करें- अवधी अकादमी
- लोकबन्धु राजनारायण स्मृति सम्मान
- सारस्वत सम्मान (१९८३)
- मालिक मुहम्मद जायसी पुरस्कार
- अवध-अवधी सम्मान (१९९१, वधी साहित्य संस्थान, अयोध्या द्वारा)
- राजीव गाँधी स्मृति सम्मान (१९९२)
- जयशी पंचशती सम्मान (१९९९, अवधी अकादमी द्वारा)
- अवधी रत्न सम्मान (२००३, डॉ॰ वल्लभभाई कथीरिया, मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री, भारत सरकार द्वारा)
निधन
संपादित करेंकवि जुमई खां आजाद का रविवार दिनांक २९ दिसम्बर २०१३ को देर रात प्रतापगढ़ जनपद के गोबरी स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। वे 85 वर्ष की आयु के थे। काफी दिनों से श्री आजाद का स्वास्थ्य खराब चल रहा था।[2] श्री आजाद के निधन का समाचार सुनते ही साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई।[3]
उनके निधन पर सांसद, विधायक सहित राजनीतिक दलों ने गहरी संवेदना जताई है। प्रतापगढ़ की तत्कालीन सांसद राजकुमारी रत्ना सिंह ने अपनी शोक संवेदना में कहा कि श्री आजाद के निधन से अवधी के एक युग की समाप्ति हो गई। राज्य सभा सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि आजाद ने अपनी रचनाओं में देश प्रेम व राष्ट्रीय एकता को पिरोए रखा। उनके निधन से अवधी का रसखान चला गया। कांग्रेस के पूर्व उत्तर प्रदेश सचिव ओम प्रकाश पांडेय ने कहा कि आजाद जी ने ग्रामीण परिवेश को अपनी रचनाओं में पिरोया था। सदर विधायक नागेंद्र सिंह यादव मुन्ना ने कहा कि इससे साहित्य जगत को अपूर्णनीय क्षति हुई है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "धर्मवाद की डोर तोड़ रही 'आजाद' की सोच". अमर उजाला. ५ अगस्त २०११. मूल से 25 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 जुलाई 2014.
- ↑ "जिला अस्पताल में जांची गई जुमई खां आजाद की सेहत". जागरण. ३० दिसम्बर २०१३. मूल से 11 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 जुलाई 2014.
- ↑ "नहीं रहे अवधी के 'रसखान' जुमई खां आजाद". जागरण. २१ सितम्बर २०१२. मूल से 24 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 जुलाई 2014.