जगदीश महतो
जगदीश महतो एक साम्यवादी गुरिल्ला सेनानी थे जो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी लिबरल) से जुड़े थे। उनका जन्म बिहार के भोजपुर जिले के एकवारी गाँव में हुआ था, जो bhumihar के वर्चस्व वाली रियासत थी। महतो कुशवाहा जाति के एक किसान परिवार में पैदा हुए थे।[1]
साम्यवादी आंदोलन में भूमिका
संपादित करेंअपने जीवन की शुरुआत से, वे जमींदारों द्वारा किसानों के अधीनता के बहुत मुखर विरोधी थे , और वह "बेगारी प्रणाली" के एक कट्टरपंथी आलोचक थे। यह एक ऐसी प्रणाली थी जिसमें कृषक बिना पैसे के जमींदारों के खेतों पर काम( अवैतनिक श्रमदान ) करते थे । महतो को उनके सहकर्मियों रामेश्वर अहीर और रामनरेश राम की मदद से 'एकवारी' में कम्युनिस्ट आंदोलन को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है। उन्हें लोकप्रिय रूप से मास्टर साहेब कहा जाता था।
शहादत के बावजूद मास्साहेब (नक्सली नेता जगदीश प्रसाद महतो, जो बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी के उपन्यास ‘मास्टर साब’ के भी नायक हैं) आज भी भोजपुर के गांवों में जिंदा हैं। हर कोई यही कहता हुआ मिलता है, रात मास्साहेब मेरे घर रूके थे और कह रहे थे – हमारी लड़ाई बहुत लंबी है। उनका संकल्प भी लोग दोहराते हैं – सन् 1930 के दशक में जो युद्ध समाप्त हो चुका था, उसे जारी करना पड़ेगा। उत्तरी बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव की तरह किसानों के नेतृत्व में सशस्त्र संघर्ष करना होगा। दूसरी लड़ाई का समय करीब आ चुका है, लेकिन इस बार किसी त्रिवेणी संघ के नेतृत्व में नहीं, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के नेतृत्व में।
— मधुकर सिंह, ‘कथा कहो कुंती माई’, [2]
उनकी कहानी को विभिन्न हिंदी उपन्यासों में भी चित्रित किया गया है। वे रामेश्वर अहीर के साथ एक पुलिस कार्रवाई में मारे गए थे। लोकप्रिय भोजपुर विद्रोह में उनकी उल्लेखनीय भूमिका के कारण ,कम्युनिस्टों द्वारा उन्हें और रामेश्वर अहीर मार्क्स और एंगेल्स की उपाधि दी गई थी।[3][4]
- ↑ Samaddar, Ranbir (2019). From popular movement to rebellion:The Naxalite dacade. New york: Routledge. पृ॰ 317,318. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-367-13466-2. अभिगमन तिथि 2020-05-30.
- ↑ रंजन, प्रमोद (2020-06-16). "साहित्य में त्रिवेणी संघ और त्रिवेणी संघ का साहित्य". मूल से 5 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जून 2020.
- ↑ ISSN-2688-9374(online)Journal,Jyotsana Yagnik, A.Prasad (2016). "Liberal studies vol.1 issue 1". Gujrat. पृ॰ 44. अभिगमन तिथि 2020-05-30.
- ↑ मंगलमूर्ति, बालेन्दुशेखर (2020-06-16). "एकवरिया: भोजपुर जिले का वो गाँव, जिसने मध्य बिहार की हरित क्रांति को लाल क्रांति में बदल दिया". मूल से 8 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जून 2020. भोजपुर में छठे दशक में समाजवादी आन्दोलन का जबरदस्त प्रचार प्रसार हुआ. इनका समर्थन वर्ग माध्यम वर्ग की तीन जातियों- अहीर उर्फ़ यादव, कोइरी और कुर्मी के बीच था. ये वही वर्ग था ( भूमिहारों का भी एक बड़ा तबका था, पर वो समाजवादी आन्दोलन के समर्थन में नहीं था) जिसे जमींदारी उन्मूलन से मुख्य तौर पर फायदा पहुंचा था. संख्या बल में भी अधिक थे नतीजा ये हुआ कि 1967 के विधान सभा चुनावों में शाहाबाद जिले में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी 7 सीटें जीतने में कामयाब रही. यादव, कुर्मी और कोइरी जाति के पढ़े लिखे युवक अब ऊँची जातियों के अपमानजनक व्यवहार सहने के लिए तैयार नहीं थे.