चित्रकोट जलप्रपात

(चित्रकोट से अनुप्रेषित)

चित्रकोट जलप्रपात भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले में इन्द्रावती नदी पर स्थित एक सुन्दर जलप्रपात है। इसकी ऊँचाई 90 फीट है। इसकी विशेषता यह है कि वर्षा के दिनों में यह रक्त-लालिमा लिए हुए होता है, तो गर्मियों की चाँदनी रात में यह बिल्कुल सफेद दिखाई देता है।[1]

चित्रकोट जलप्रपात
चित्रकोट जलप्रपात
चित्रकोट जलप्रपात is located in छत्तीसगढ़
चित्रकोट जलप्रपात
अवस्थितिबस्तर जिला, छत्तीसगढ़, भारत
निर्देशांक19°12′23″N 81°42′00″E / 19.206496°N 81.699979°E / 19.206496; 81.699979
प्रकारCataract
कुल ऊँचाई29 मीटर (95 फीट)
प्रपात संख्या3
जलमार्गइन्द्रावती नदी

जगदलपुर से 40 कि.मी. और रायपुर से 273 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह जलप्रपात छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा, सबसे चौड़ा और सबसे ज्यादा जल की मात्रा प्रवाहित करने वाला जलप्रपात है। यह बस्तर संभाग का सबसे प्रमुख जलप्रपात माना जाता है। जगदलपुर से समीप होने के कारण यह एक प्रमुख पिकनिक स्थल के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। घोड़े की नाल के समान मुख के कारण इस जाल प्रपात को 'भारत का निआग्रा' भी कहा जाता है। सधन वृक्षों एवं विंध्य पर्वतमालाओं के मध्य स्थित इस जल प्रपात से गिरने वाली विशाल जलराशि पर्यटकों का मन मोह लेती है।

चित्रकोट प्रपात वैसे तो प्रत्येक मौसम में दर्शनीय है, परन्तु वर्षा ऋतु में इसे देखना अधिक रोमांचकारी अनुभव होता है। वर्षा में ऊंचाई से विशाल जलराशि की गर्जना रोमांच और सिहरन पैदा कर देती है। जुलाई से अक्टूबर तक का समय पर्यटकों के यहाँ आने के लिए उचित है। चित्रकोट जलप्रपात के आसपास घने वन विराजमान हैं, जो कि उसकी प्राकृतिक सौंदर्यता को और बढ़ा देती है। रात में इस जगह को पूरा रोशनी के साथ जगमगाया जाता है। यहाँ के झरने से गिरते पानी के सौंदर्य को पर्यटक रोशनी के साथ देख सकते हैं। अलग-अलग अवसरों पर इस जलप्रपात से कम से कम तीन और अधिकतम सात धाराएँ गिरती हैं।

मानसून काल में इंद्रावती नदी अपने उफान पर होती है। चित्रकूट जलप्रपात भारत का सबसे चौड़ा प्रपात है। बारिश के मौसम में इसकी चौड़ाई 150 मीटर होती है। रात की खामोशी में झरने की आवाज आपको 3 से 4 किलोमीटर दूर भी सुनाई देगी। मानों पानी की हर एक बूंद चीख-चीख कर चित्रकूट से गिरने की गौरवगाथा का गान कर रही हो।

चित्रकोट जलप्रपात वैसे तो हर मौसम में दर्शनीय है, लेकिन बारिश के दिनों में इसे देखना अधिक रोमांचकारी अनुभव होता है। वर्षा में ऊंचाई से विशाल जलराशि की गर्जना रोमांच और सिहरन पैदा कर देती है। पर्यटकों के यहां आने के लिए जुलाई-अक्टूबर के बीच का समय सबसे सही होता है। चित्रकोट जलप्रपात के आसपास घने जंगल हैं जो उसकी प्राकृतिक सौंदर्यता को और बढ़ा देती है। रात के अंधेरे में भी आप झरने का रोमांच ले सकते हैं, क्योंकि यह जगह रोशनी के साथ सुसज्जित किया हुआ है। अलग-अलग अवसरों पर इस जलप्रपात से कम से कम तीन और अधिकतम सात धाराएं गिरती हैं। झरने के किनारे पर एक विशालकाय शिवलिंग और महादेव का मंदिर भी है। जो हाल फिलहाल में ही बनाया गया है, लेकिन झरने के नीचे अगर आप जाएं तो सैकड़ों की संख्या में छोटे-छोटे शिवलिंग मिलेंगे। इनमें से कई शिवलिंग प्राचीन काल के भी मानें जाते हैं, जिनके ऊपर झरने का पानी सीधे आकर गिरता है, मानों भगवान शिव का जलाभिषेक हो रहा हो। चित्रकोट जलप्रपात की सुंदराता को करीब से निहारने के लिए यहां बोटिंग का आनंद भी ले सकते हैं। नदी में उतरकर 90 फीट की ऊंचाई से गिरते विशाल जलधारा को देखना और उसे महसूस करना थोड़ा डरावना जरूर, लेकिन उत्साह से भरपूर होता है। . । बस्तर में झरनों की कमी नहीं है। यहां तकरीबन हर 60 से 70 किलोमीटर के अंतराल में आपको वाटरफाल मिल जाएंगे, लेकिन इनमें से कई ऐसे हैं जिन तक आज भी कोई सैलानी नहीं पहुंच पाया है। बस्तर का तीरथगढ़ जलप्रपात भी देशभर में काफी मशहूर है। यहां पहाड़, जल और जंगल का ऐसा अनूठा संगम है जहां हर प्रकृति प्रेमी खुद को पहुंचने से रोक नहीं पाता। बस्तर पहुंचने वाला हर सैलानी चित्रकोट के साथ-साथ तीरथगढ़ जलप्रपात भी जरूर पहुंचता है। इसे अगर दूध का झरना भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। चित्रकोट से इसकी दूरी करीब 57 किलोमीटर है। तीरथगढ़ एक ऐसा वॉटरफाल है जहां दो नदियों का संगम भी होता है। दो सहायक नदियां मुनगा और बहार यहां एक होकर सैलानियों के लिए एक मनोरम दृश्य का निर्माण करती है।

तीरथगढ़ में दरअसल एक नहीं, बल्कि दो-दो झरने है, जो एक के बाद एक पहाड़ों और घने जंगलों के बीच भू-भाग में गिरती है। मजे की बात तो ये यहां दोनों ही झरनों की खूबसूरती को बेहद करीब से निहार सकते हैं। घरे वृक्षों के बीच पहाड़ों पर बनी सीढ़ियों की मदद से आप गहरी खाई में भी उतर सकते हैं, जहां से मुनगा-बहार नदी के सफर की शुरूआत होती है। तीरथगढ़ जलप्रपात को भारत के सबसे ऊंचे वॉटरफाल्स में गिना जाता है। इसकी ऊंचाई करीब 300 फीट है। यहां प्रकृति की सुंदरता हर रूप में विराजमान है। जहां बस पर्यावरण में खो जाने का मन करता है। यहां आदिवासियों की जिंदगी वैसे तो जरा भी आसान नहीं, लेकिन बस्तर आने पर बस्तरिया हो जाने का मन करता है। शांत माहौल में चिड़ियों की चहचहाहट, 300 फीट की ऊंचाई से गिरता झरना, खूबसूरती की मिसाल पेश करते हरे-भरे पेड़ और बरसाती बूंदों का गिले पत्तों से गिरना... ये सब कुछ आपको एक साथ बस्तर में मिलेंगे। तीरथगढ़ जल प्रपात में मिलेंगे।

जगदलपुर के करीब चित्रकोट और तीरथगढ़ के अलावा चित्रधारा जलप्रपात भी एक खूबसूरत टूरिस्ट प्लेस है। जो जगदलपुर से महज 19 किलोमीटर दूर पोटनार गांव में स्थित है। इस झरने की ऊंचाई लगभग 50 फीट और चौड़ाई 100 मीटर है। इसमें खेतों का पानी आता है, जो नाले का रूप लेकर एक बड़े खाई में गिरते हुए झरने का निर्माण करती है। इसे एक मौसमी झरना भी कहा जा सकता है। केवल बरसात के दिनों में ही यहां आपको झरने का मनोरम दृश्य दिखाई देगा। बाहर के सैलानी अमूमन यहां बारिश के मौसम में ही पहुंचते हैं। यहां कई अलग अलग खंडों से पत्थरों के ऊपर से गिरता पानी बेहद खूबसूरत दिखाई पड़ता है। आसपास की हरियाली भी इस झरने की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। झरने के आसपास पर्यटकों के लिए वाच टावर का निर्माण किया गया है, जहां से झरने की खूबसूरती को निहार सकते हैं। यहां झरने के करीब भगवान शिव का एक मंदिर भी है, जहां पर्यटक अपने सफर को सफल बनाने की मंगलकामना के साथ आते हैं।

बस्तर के जलप्रपात जितने खुबसूरत हैं... उतने ही हसीन यहां के हाट-बाजार भी है। जहां आदिवासियों की कला-संस्कृति की छटा दिखाई पड़ती है। भारत के आदिवासी कलाओं में बस्तर की आदिवासी परंपरागत कला-कौशल काफी प्रसिद्ध है। बस्तर अपने अद्वितीय कलाकृतियों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। बस्तर के आदिवासी समुदाय पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी इस दुर्लभ कला का संरक्षण करते आ रहे हैं, लेकिन प्रचार के आभाव में यह केवल उनके कुटिरों से साप्ताहिक हाट बाजारों तक ही सीमित है। बस्तर के कौशल कला को मुख्य रूप से काष्ठ कला, बांस कला, मृदा यानी मिट्टी कला और धातू कला में बांटा जा सकता है। काष्ठ कला में मुख्य रूप से लकड़ी के बनाए गए सामान आते हैं। लकड़ी को तराश कर आदिवासी जीव-जंतुओं, देवी-देवताओं और साज-सज्जा की कलाकृति का निर्माण करते हैं, जिसे बाजार में बेचकर वे अपना गुजारा करते हैं। खास बात ये कि वे इसे बनाने के लिए किसी मशीन का उपयोग नहीं करते। बांस कला में बांसुरी, बांस की कुर्सीयां, टेबल, टोकरियां और चटाई जैसे घरेलू साज सज्जा की सामाग्री भी बनाई जाती है। मृदा कला में मिट्टी के सजावटी बर्तन, गमले, देवी-देवताओं की मुर्तियां और उसी प्रकार धातु कला में तांबे और टीम मिश्रित धातु के ढलाई की हुई कलाकृतियां भी आदिवासी संस्कृति का अमुल्य हिस्सा है।