चक दे! इंडिया
चक दे! इंडिया 2007 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
चक दे! इंडिया | |
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चक दे! इंडिया का पोस्टर | |
लेखक | जयदीप सहनी |
अभिनेता |
शाहरुख़ ख़ान, चित्राशी रावत, शिल्पा शुक्ला, सागरिका घाटगे |
संगीतकार | सलीम-सुलेमान |
प्रदर्शन तिथियाँ |
10 अगस्त, 2007 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
परिचय
संपादित करेंएक लंबे अरसे के बाद यश चोपड़ा की कोई फिल्म प्यार-मोहब्बत से हटकर है और दर्शकों को पसंद आई है। हॉकी की प्रष्ठभूमि मे बनी चक दे इंडिया मे शाहरुख़ खान ने अपनी रोमांटिक छवि से हटकर एक ऐसे हाकी कोच की भूमिका निभाई है जिसका एकमात्र लक्ष्य अपनी टीम को विश्व कप जिताना है। फिल्म हमे भारतीय हॉकी के वह सारे पहलू दिखाती है जिसके कारण वह अब रसातल मे जा रही है। टीम मे अनुशासन की कमी, सीनियर खिलाड़ियों का जूनियर खिलाड़ियों के प्रति औच्छा व्यवहार, अच्छे खेल मैदान की कमी, प्रशासको का खिलाड़ियों की प्रति उदासीनता और खिलाड़ियों मे देश और टीम के लिए खेलने की कम होती जाती भावना की वजह से हाकी को होते हुए नुकसान को दिखाया गया है। खेलों के ऊपर बालीवुड मे गिनती की अच्छी फ़िल्मे बनी है और लगान के बाद चक दे इंडिया का ही नाम आता है। यह फिल्म सिर्फ़ एक खेल की ही कहानी नही है, यह एक कोच और उसकी टीम की उम्मीदों, जज्बातो, हिम्मत, साहस और सपनो की कहानी है। भारत में खेलों पर आधारित फिल्में गिनती की बनी हैं। खुशी की बात है कि पिछले एक-दो वर्षों से फिल्मों में भी खेल दिखाई देने लगा है। हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है और इस समय यह पिछड़ा हुआ खेल माना जाता है। इस खेल पर फिल्म बनाकर निर्देशक शिमित अमीन ने एक साहसिक काम किया है।[1]
संक्षेप
संपादित करेंचक दे! इंडिया यश राज फ़िल्म्स द्वारा बनायी हिन्दी फ़िल्म है। फ़िल्म कबीर खान नामक एक हॉकी खिलाड़ी पर केन्द्रित है। कबीर की कप्तानी में भारत के पाकिस्तान से एक हॉकी मैच हारने पर मीडिया कबीर पर फिक्सिंग का आरोप लगाती है और कबीर को हॉकी टीम से निकाल दिया जाता है। इसके कुछ साल बाद कबीर भारतीय स्त्री हॉकी टीम के कोच बनते हैं और उन्हें हॉकी विश्व कप जीतने में सहायता करते हैं।
‘चक दे इंडिया’ कबीर खान की कहानी है, जो कभी भारतीय टीम का श्रेष्ठ सेंटर फॉरवर्ड रह चुका था। पाकिस्तान के विरूद्ध एक फाइनल मैच में वह अंतिम क्षणों में पेनल्टी स्ट्रोक के जरिये गोल बनाने में चूक गया और भारत मैच हार गया। मुस्लिम होने के कारण उसकी देशभक्ति पर प्रश्नचिह्न लगा दिया गया। उसे गद्दार कहा गया। उस मैच के बाद खिलाड़ी के रूप में उसका कॅरियर खत्म हो गया। सात वर्ष बाद वह महिला हॉकी टीम का प्रशिक्षक बनता है। इस टीम को विश्व चैम्पियन बनाकर वह अपने ऊपर लगे हुए दाग को धोना चाहता है, लेकिन उसकी राह आसान नहीं थी। हॉकी खिलाड़ी की स्थिति "भारत के लिए खेले एक श्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी की आर्थिक स्थिति क्या होती है, ये निर्देशक ने शाहरुख को एक खटारा स्कूटर पर बैठाकर बिना संवाद के जरिये बयाँ कर दी।" इन लड़कियों का ध्यान खेल पर कम था। वे केवल नाम के लिए खेलती थीं। अलग प्रदेशों से आई इन लड़कियों में एकता नहीं थी। सीनियर खिलाडि़यों की दादागीरी थी। कबीर इन खिलाडि़यों के दिमाग में यह बात डालता है कि वे भारतीय पहले हैं, फिर वे महाराष्ट्र या पंजाब की हैं। फिर शुरू होता है प्रशिक्षण का दौर। हर तरफ से बाधाएँ आती हैं और कबीर इन बाधाओं को पार कर अंत में अपनी टीम को विजेता बनाता है। कहानी बड़ी सरल है, लेकिन जयदीप साहनी की पटकथा इतनी उम्दा है कि पहली फ्रेम से ही दर्शक फिल्म से जुड़ जाता है। छोटे-छोटे दृश्य इतने उम्दा तरीके से लिखे और फिल्माए गए हैं कि कई दृश्य सीधे दिल को छू जाते हैं।
शाहरुख जब अपनी टीम का परिचय प्राप्त करते हैं तो जो लड़की अपने नाम के साथ अपने प्रदेश का नाम जोड़ती है, उसे वे बाहर कर देते हैं और अपने नाम के साथ भारत का नाम जोड़ने वाली लड़की को वे शाबाशी देते हैं। ये उन लोगों पर करारी चोट है, जो प्रतिभा खोज कार्यक्रम में प्रतिभा चुनते समय अपने प्रदेश के पहले होते हैं और भारतीय बाद में। ऑस्ट्रेलिया में स्टेडियम के बाहर खड़े शाहरुख एक विदेशी कर्मचारी को भारत का तिरंगा लगाते हुए देखते रहते हैं। एक खिलाड़ी उनसे आकर पूछती है कि सर आप यहाँ क्या कर रहे हैं, तो शाहरुख का जवाब होता है कि मैं एक गोरे को तिरंगा फहराते हुए पहली बार देख रहा हूँ। भारत के लिए खेले एक श्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी की आर्थिक स्थिति क्या होती है, ये निर्देशक ने शाहरुख को एक खटारा स्कूटर पर बैठाकर बिना संवाद के जरिये बयाँ कर दी। महिला टीम होने के कारण इन्हें पुरुषों की छींटाकशी का शिकार भी होना पड़ता है। हॉकी एसोसिएशन के पदाधिकारियों की सोच रहती है कि चकला-बेलन चलाने वाली लड़कियाँ हॉकी क्या खेलेंगी, लेकिन निर्देशक ने कई दृश्यों के जरिये साबित किया है कि महिलाएँ किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं। शाहरुख एक जगह संवाद बोलते हैं 'जो महिला पुरुष को पैदा कर सकती है वह कुछ भी कर सकती है'।
मुख्य कलाकार
संपादित करें- शाहरुख़ ख़ान - कबीर ख़ान
- चित्राशी रावत - कोमल
- शिल्पा शुक्ला - बिन्दिया नाइक
- सागरिका घाटगे - प्रीती सबरवाल
- अनाइथा नायर - आलिया बोस
- तान्या अब्रोल - बल्बिर कौर
- आर्या मेनन - गुल इक़्बाल
- शुभि मेह्ता - गुञन लखनि
दल
संपादित करेंसंगीत
संपादित करेंफ़िल्म का संगीत सलीम-सुलेमान द्वारा दिया गया है और बोल जयदीप साहनी ने दिए हैं।
- चक दे! इंडिया
- बादल पे पाँव हैं
- इक हॉकी दूँगी रख के
- मौला मेरे ले ले मेरी जाँ
- बैड बैड गिर्ल्स
- हॉकी - रिमिक्स
- सत्तर मिनट
परिणाम
संपादित करेंबौक्स ऑफिस
संपादित करेंरिलीज होने पर फिल्म ने भारत मे औसत उद्घाटन से नीचे दर्ज किया। जिस्के कारण इसे भारत के कई हिस्सो मे कम स्क्रीने मिलि जैसे कि पश्चिम बंगाल। हालांकि, फिल्म को मजबूत महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया मिल्ने के कारण इसे ८० प्रतिशत से अधिक अधिभोग मिलि। इसके बाद, चक दे! को बिहार राज्य मै कर (टैक्स) से छूट प्रदान किया गया था (इस्के कारण टिकट की कीमतें कम हुई)।[2] एक सप्ताह के अन्दर फिल्म के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन २२० रुपयो तक जा पहुन्ची। इस फिल्म के सिनेमा घर के बाहर निकल्ने तक यह फिल्म 1कि तीसरी सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म बन चुकि थी। घरेलू स्तर पर 1 रुपए के राजस्व के साथ. बॉक्स ऑफिस इंडिया पर यह एक ब्लॉकबस्टर साबित हुई।[3]
समीक्षाएँ
संपादित करेंशिमित का निर्देशन बेहद शानदार है। एक चुस्त पटकथा को उन्होंने बखूबी फिल्माया है। वे हॉकी के जरिये दर्शकों में राष्ट्रप्रेम की भावनाएँ जगाने में कामयाब रहे। एक सीन में मैच के पूर्व जब ‘जन-गण-मन’ की धुन बजती है, तो थिएटर में मौजूद दर्शक सम्मान में खड़े हो जाते हैं। फिल्म में हर मैच के दौरान सिनेमाघर में उपस्थित दर्शक भारतीय टीम का इस तरह उत्साह बढ़ाते हैं, जैसे स्टेडियम में बैठकर वे सचमुच का मैच देख रहे हों। प्रत्येक दर्शक टीम से अपने आपको जुड़ा हुआ पाता है और यहीं पर शिमित की कामयाबी दिखाई देती है। फिल्म एक तेज गति से बढ़ती जाती है और किसी भी समय बोझिल या रुकी हुई नही लगती। फिल्म की पटकथा दर्शकों को बाँधे रखती है और फिल्म का संगीत भी लोगों को बहुत पसंद आया है जो ना सिर्फ़ फिल्म के दृश्यों पर अनुकूल है बल्कि लोगों को प्रेरित भी करता है। फिल्म दर्शको को अपने साथ शुरू से जोड़ लेती है और विश्व कप के मैचों मे दर्शक भी टीम का हौंसला बढ़ाते हुए नज़र आते है। शाहरुख खान ने एक कलंकित खिलाड़ी और कठोर प्रशिक्षक की भूमिका को बखूबी निभाया है। वे शाहरुख खान नहीं लगकर कबीर खान लगे हैं। कई दृश्यों में उन्होंने अपने भाव मात्र आँखों से व्यक्त किए हैं। कलंक धोने की उनकी बेचैनी उनके चेहरे पर दिखाई देती है। उनकी टीम में शामिल 16 लड़कियाँ भी शाहरुख को टक्कर देने के मामले में कम नहीं रहीं। उनकी आपसी नोकझोंक और हॉकी खेलने वाले दृश्य उम्दा हैं। पंजाब और हरियाणा से आई लड़कियों का अभिनय शानदार है। फिल्म में गाने हैं, लेकिन वे पार्श्व में बजते रहते हैं। इन गीतों का उपयोग बिलकुल सही स्थानों पर किया गया है। जयदीप साहनी के संवाद सराहनीय है। कुल मिलाकर ‘चक दे इंडिया’ एक बार जरूर देखी जानी चाहिए।[4]
नामांकन और पुरस्कार
संपादित करें- राष्ट्रीय पुरस्कार
- सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए आईफा पुरस्कार
- सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिए फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 25 जनवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 जून 2020.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 19 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 फ़रवरी 2014.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 25 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 जून 2020.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 23 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 जून 2020.