घनश्यामदास बिड़ला

भारतीय उद्योगपति
(घनश्याम दास बिड़ला से अनुप्रेषित)

श्री घनश्यामदास बिड़ला (जन्म-1894, पिलानी, राजस्थान, भारत, मृत्यु.- 1983, मुंबई) भारत के अग्रणी औद्योगिक समूह बी. के. के. एम. बिड़ला समूह के संस्थापक थे, जिसकी परिसंपत्तियाँ 195 अरब रुपये से अधिक है। इस समूह का मुख्य व्यवसाय कपड़ा, विस्कट फ़िलामेंट यार्न, सीमेंट, रासायनिक पदार्थ, बिजली, उर्वरक, दूरसंचार, वित्तीय सेवा और एल्युमिनियम क्षेत्र में है, जबकि अग्रणी कंपनियाँ 'ग्रासिम इंडस्ट्रीज' और 'सेंचुरी टेक्सटाइल' हैं। ये स्वाधीनता सेनानी भी थे तथा बिड़ला परिवार के एक प्रभावशाली सदस्य थे। वे गांधीजी के मित्र, सलाहकार, प्रशंसक एवं सहयोगी थे। भारत सरकार ने सन् १९५७ में उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया। घनश्याम दास बिड़ला का निधन जून, 1983 ई. हुआ था।

घनश्यामदास बिड़ला
जन्म १० अप्रैल, १८९४
मौत ११ जून १९८३
पुरस्कार पद्म विभूषण (१९५७)
बिड़ला जी द्वारा दिल्ली में बनवाया बिरला मंदिर, दिल्ली

एक स्थानीय गुरु से अंकगणित तथा हिन्दी की आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने पिता बी. डी. बिड़ला की प्रेरणा व सहयोग से घनश्याम दास बिड़ला ने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में व्यापार जगत में प्रवेश किया। 1912 में किशोरावस्था में ही घनश्याम दास बिड़ला ने अपने ससुर एम. सोमानी की मदद से दलाली का व्यवसाय शुरू कर दिया। 1918 में घनश्याम दास बिड़ला ने ‘बिड़ला ब्रदर्स’ की स्थापना की। कुछ ही समय बाद घनश्याम दास बिड़ला ने दिल्ली की एक पुरानी कपड़ा मिल ख़रीद ली, उद्योगपति के रूप में यह घनश्याम दास बिड़ला का पहला अनुभव था। 1919 में घनश्याम दास बिड़ला ने जूट उद्योग में भी क़दम रखा।

30 वर्ष की आयु तक पहुँचने तक घनश्याम दास बिड़ला का औद्योगिक साम्राज्य अपनी जड़े जमा चुका था। बिड़ला एक स्व-निर्मित व्यक्ति थे और अपनी सच्चरित्रता तथा ईमानदारी के लिये विख्यात थे। उन्होंने अपने पैत्रक स्थान पिलानी में भारत के सर्वश्रेष्ट निजी तकनीकी संस्थान बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी की स्थापना की। इसके अलावा हिन्दुस्तान टाइम्स एवं हिन्दुस्तान मोटर्स (सन् १९४२) की नींव डाली। कुछ अन्य उद्योगपतियों के साथ मिलकर उन्होने सन् १९२७ में "इण्डियन चैम्बर ऑफ कामर्स एंड इन्डस्ट्री" की स्थापना की। घनश्याम दास बिड़ला एक सच्चे स्वदेशी और स्वतंत्रता आंदोलन के कट्टर समर्थक थे तथा महात्मा गांधी की गतिविधियों के लिए धन उपलब्ध कराने के लिये तत्पर रहते थे। इन्होंने पूंजीपतियों से राष्ट्रीय आन्दोलन का समर्थन करने एवं कांग्रेस के हाथ मज़बूत करने की अपील की। इन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का समर्थन किया। इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए आर्थिक सहायता दी। इन्होंने सामाजिक कुरीतियों का भी विरोध किया तथा 1932 ई. में हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष बने।

  • रूपये की कहानी
  • बापू
  • जमनालाल बजाज
  • Paths to Prosperity
  • In the Shadow of the Mahatma

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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