गुरसिमरन सिंह मंड
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के लिए उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। स्रोत खोजें: "गुरसिमरन सिंह मंड" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
गुरसिमरन सिंह मंड:- एक नई पहल
संपादित करेंलुधियाना, पंजाब की राजनीति में एक ऐसी शख़्सियत जिसका समाज-सेवा के साथ ही विवादों से भी गहरा ताल्लुक रहा। एक ऐसा शख्स जो गाँव में जन्म और शुरूआती शिक्षा लेने के बाद समाज-सेवा के इरादे से शहर में आकर राजनीति में प्रवेश करता है। अपने सामाजिक कार्यों और उसूलों से समझौता ना करने की वजह से विरोधियों तथा असामाजिक तत्वों के निशाने पर रहने वाले गुरसिमरन सिंह मंड का जन्म 19 अक्टूबर 1974 को पंजाब राज्य के लुधियाना जिले के एक गाँव "भुट्टा" में पिता सरदार मंजीत सिंह और माता सरदारनी अमरजीत कौर (अब स्वर्गीय) की पहली संतान के रूप में हुआ। .[1]
पारिवारिक इतिहास
संपादित करेंगुरसिमरन सिंह मंड का जन्म ऐसे परिवार में हुआ जो किसानी के साथ ही राजनीति में भी सक्रिय था। दादा सरदार भगवंत सिंह 27 एकड़ के काश्तकार थे लेकिन तब भी सामाजिक तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए उन्होंने "भुट्टा" गाँव के सरपंच के रूप में 1954 से लेकर 1965 तक इलाके के लोगों की सेवा एवं गाँव की समस्याएं सुलझाने का बीड़ा उठाया। सरदार भगवंत सिंह के घर 5 पुत्र मेहर सिंह, सुरजीत सिंह, रंजीत सिंह, संतोख सिंह, मंजीत सिंह(गुरसिमरन सिंह के पिता) तथा 6 पुत्रियां हरबंस कौर, निरंजन कौर, अवतार कौर, सुरिंदर कौर, हरदेव कौर और गुरमीत कौर का जन्म हुआ। दादी सरदारनी बलवंत कौर एक कुशल गृहणी थी और इसी वजह से सरदार भगवंत सिंह अपने घर की चिंता से मुक्त होकर लोगों की भलाई के लिए ज्यादा समय दे पाते थे। शिक्षा की अहमियत जानने के कारण उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई की तरफ भी ध्यान रखा। सरदार भगवंत सिंह की छवि एक लोकप्रिय सरपंच के रूप में थी परन्तु 1965 के बाद अपनी स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतों को लेकर उन्होंने सरपंच का चुनाव ना लड़ने का फैसला कर लिया। 1971 में उसी गाँव की मिट्टी में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु के बाद पत्नी बलवंत कौर ने उनकी ही राह पर चलते हुए 1987 से 1992 तक पंचायत मेम्बर रहते हुए गाँव की समस्याओं की तरफ ध्यान दिया। 1998 में बलवंत कौर ने भी शरीर त्याग दिया।
मृत्यु के समय तक उनके पुत्र घर और खेती की जिम्मेदारी संभाल चुके थे। सरदार भगवंत सिंह के पुत्र सरदार मंजीत सिंह खेती के साथ ही युवावस्था में ही "डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव यूनियन लिमिटेड" में "वाईस-प्रेसिडेंट" का पद सँभालने लगे। "वाईस प्रेसिडेंट" के पद पर रहते हुए उन्होंने 1973 से लेकर 1979 तक अपनी सेवाएं दीं। 1974 में "फर्स्ट जनरल बॉडी डेलीगेट्स, इफको" भी रहे। 1991 में "प्राइमरी डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट बैंक,लुधियाना" के चेयरमैन के पद पर किसानो के हित के लिए काम किया। 1992 से 1997 तक "पंचायत मेंबर" रहते हुए लोगों की आवाज़ बनकर समस्याओं का निस्तारण करते रहे। सरदार मंजीत सिंह और पत्नी सरदारनी अमरजीत कौर(अब स्वर्गीय) के घर दो पुत्रों का जन्म हुआ। बड़े पुत्र का नाम गुरसिमरन सिंह और छोटे का गगनदीप सिंह रखा गया। परिवार की पहले से ही पढ़ाई की तरफ रुचि होने के कारण अच्छी शिक्षा के लिए सरदार मंजीत सिंह परिवार सहित लुधियाना शहर में आ गए परन्तु अपने गाँव से भी कभी संपर्क टूटने नहीं दिया। अनेकों पद पर रहते हुए कभी अपने पद का दुरूपयोग नहीं किया। निजी फायदे या रिश्वत ना लेकर अपने पुत्रों के साथ रियल एस्टेट का व्यवसाय करते हुए उन्होंने जीवकोपार्जन किया।
प्रारंभिक जीवन
संपादित करें1974 में जन्मे गुरसिमरन सिंह मंड की प्रारंभिक पढाई "मालवा खालसा सीनियर सेकेंडरी स्कूल" में हुई। 80 और 90 के दशक में पंजाब का गाँव-गाँव खालिस्तान की मांग करने वालों की लगाई आग में जल रहा था। बाल्यावस्था से ही अपने क्षेत्र में इस तरह का माहौल देख कर उनके मन में देश के लिए कुछ करने की भावना घर करने लगी। खालिस्तान की मांग करने वालों द्धारा आम जनता पर होता अत्याचार देख उनका बालमन आम लोगों की मदद के लिए हिलोरे मारने लगा। किशोरावस्था से ही वह अपने पिता से पंजाब के हालातों पर चर्चा करते थे कि आखिर कौन और क्यों हमारे नौजवानों को देश के खिलाफ भड़काकर हरे-भरे पंजाब को इस नफरत की आग में जला रहा है। पंजाब के हालात और परिवार में शुरू से ही राजनैतिक और समाज सेवा का माहौल होने से बचपन में ही गुरसिमरन सिंह मंड का आखिरकार इस क्षेत्र में झुकाव होने लगा था।
राजनीति में प्रवेश
संपादित करेंगुरसिमरन सिंह मंड पढ़ाई पूरी करने के बाद युवावस्था में ही अपने पिता के साथ रियल एस्टेट का काम करने के अलावा कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य की भूमिका निभाने लगे। अपने पिता और दादा के नक्शेक़दम पर चलते हुए इन्होने भी राजनीति को समाज-सेवा करने का ही साधन माना और जीवकोपार्जन के लिए राजनीति पर निर्भर नहीं रहे। शुरू में गुरसिमरन ने युवा होने के नाते अपना एकमात्र ध्येय बना लिया कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में रहते हुए वो सबसे पहले पंजाब के युवाओं को जागरूक करेंगे ताकि युवा वर्ग देश के दुश्मनों की साजिश को पहचानकर मुँहतोड़ जवाब दे सके और साथ ही अपनी युवाशक्ति को पहचान कर देश की तरक्की में योगदान दे। उनकी ऐसी निस्वार्थ सेवा भावना के काम करने के कारण जल्द ही कांग्रेस पार्टी में उनका कद बढ़ने लगा और पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के साथ उनकी नजदीकी पारिवारिक स्तर तक पहुँच गई। युवाओं को मुख्यधारा में जोड़ने की उनकी कोशिशों को देखते हुए कांग्रेस ने गुरसिमरन सिंह मंड को "सचिव,लुधियाना यूथ कांग्रेस" का पदभार संभाल दिया और यहीं से उनका सक्रिय राजनीति में प्रवेश हुआ।
पंजाब के राजनैतिक बदलाव
संपादित करें31 अगस्त 1995 के दिन खालिस्तान समर्थकों द्धारा बम विस्फोट में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या चंडीगढ़ में करने के बाद हरचरण सिंह बराड़ (31 अगस्त 1995 से 21 नवंबर 1996) और राजिंदर कौर भट्टल (21 नवंबर 1996 से 11 फरवरी 1997) ने जब बारी-बारी से मुख्यमंत्री पद संभाला तो कांग्रेस और पंजाब के मुश्किल वक़्त में गुरसिमरन सिंह मंड पंजाब, कांग्रेस और मुख्यमंत्रियों खासतौर पर राजिंदर कौर भट्टल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर राज्य की शान्ति और विकास के लिए काम करते रहे।
निस्वार्थ सेवाभाव होने के कारण 1997 के पंजाब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार के उपरान्त भी शांत ना बैठते हुए वह कांग्रेस और देश के सच्चे सिपाही की तर्ज़ पर जमीनी स्तर पर आम जनता की समस्याओं को तत्कालीन सत्ताधारी अकाली दल नेतृत्व के सामने उठाते रहे। समय-समय पर कलम को हथियार बनाकर विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं के माध्यम से सत्तादल पर लोकहित में गुरसिमरन सिंह ने प्रश्नों के तीर चलाए। उन्होंने मजलूमों की आवाज़ को हमेशा बेबाक़ी से कह कर राजनेताओं को आईना दिखाना जारी रखा।
ये ही वो समय था जब उनकी मुखरवादिता से कई विपक्षी नेता उनसे विद्धेष रखने लग गए।
21वीं सदी में प्रवेश
संपादित करें2002 के पंजाब विधानसभा चुनावों में जनता ने अकाली दल को उनकी समाज के लिए अहितकारी नीतियों के कारण सिरे से नकार कर कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस को सत्ता सौंप दी। जिसके फलस्वरूप गुरसिमरन सिंह मंड के लिए जनता की दिक्कतों का निराकरण करना संभव होने लगा। वह लगातार मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मिलकर लोगों की परेशानियों को हल करने लगे।
2002 से लेकर 2007 तक कैप्टन के कार्यकाल में गुरसिमरन सिंह मंड कांग्रेस के अंदर भी अपनी बात बेबाकी से कहने के लिए काफ़ी मशहूर थे। उन्होंने पार्टी के अंदर भी भ्रष्ट व्यक्तियों के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद रखी जिससे कुछ-एक पार्टी सदस्य भी उनसे ख़फ़ा रहने लगे परन्तु अपनी धुन और उसूलों से कभी समझौता ना करने की पारिवारिक विरासत को निभाते हुए गुरसिमरन सिंह अपने पथ पर अडिग रहे।
80, 90 के दशकों में आतंकवाद की लपटों में झुलसने के दौरान 3510 दिन (लगभग 10 वर्ष) राष्ट्रपति शासन में रहने वाला पंजाब अब धीरे-धीरे तरक्की और शान्ति की राह पर चलने लगा था। 5 वर्ष के कार्यकाल में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक तरफ पूरे प्रदेश में,तो दूसरी तरफ गुरसिमरन सिंह मंड ने अपनी जन्मस्थली तथा कर्मभूमि लुधियाना में लगातार विकास, किसान समस्याओं पर काम करना जारी रखा। ये वो दौर था जब गुरसिमरन सिंह मंड इंतज़ार नहीं करते थे कि क्षेत्रवासी खुद अपनी समस्या लेकर उनके पास आएं अपितु वे अपने क्षेत्र की दिक्कतों को स्वत: संज्ञान में लेकर उसका निवारण करने की अनवरत कोशिश करते रहे।
2007 आते-आते कांग्रेस के नेतृत्व में पंजाब की खुशहाली और शान्ति लौटने लगी परन्तु गुरसिमरन सिंह मंड सिर्फ इतने से ही संतुष्ट नहीं थे, वो जानते थे कि ये ही सही समय है कि पंजाब के युवाओं को सही रास्ते की तरफ अग्रसर करने के लिए प्रेरित किया जाये, ताकि वो दोबारा आतंकवाद के चंगुल में ना फंसे। इसी सोच को अपने साथ लेकर वो अपने क्षेत्र के युवाओं को जागरूक करने के लिए कैम्पेन चलाने लगे। वह बड़ी सभा से ज्यादा छोटी सभा या मीटिंग्स को अहमियत थे क्योंकि उनका कहना है कि जब 10-15 युवाओं के साथ हम एक छोटी फेस-टू-फेस मीटिंग करते हैं तो अपनी बात कहने के साथ ही हम उनकी भी दिक्कतों या संशय को सुन-समझकर हल कर सकते हैं, जबकि बड़ी सभा में हम सिर्फ अपने ही विचारों को ही रख पाते हैं। इसीलिए उन्होंने छोटे स्तर की मीटिंग्स में लगने वाले ज्यादा समय और परिश्रम के बावजूद इसको करना जारी रखा और इससे क्षेत्र के युवाओं में भी सन्देश गया कि कांग्रेस पार्टी गुरसिमरन सिंह मंड जैसे युवा नेताओं के माध्यम से हमारे साथ जमीनी स्तर पर जुड़ी हुई है।
कांग्रेस की हार
संपादित करेंसाल 2007 में पंजाब विधानसभा चुनाव को मद्देनज़र रखते हुए गुरसिमरन सिंह मंड कांग्रेस पार्टी के विचारों को जनता के समक्ष लेकर जाने लगे परन्तु विपक्षियों द्धारा मीडिया में दुष्प्रचार और सरकार के विरुद्ध एंटी-इंकम्बेंसी वोटिंग होने के कारण कांग्रेस को अपने अथक-परिश्रम के बावजूद हार का मुँह देखना पड़ा।
गुरसिमरन सिंह मंड इस राजनैतिक हार से निराश नहीं हुए और पंजाब के हित के लिए दोगुने जोश से युवाओं को जागृत करने में लगे रहे। ये जोशो-खरोश देख कर कांग्रेस पार्टी ने 2008 में उनको लुधियाना में "ट्रेनिंग सेल, ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी" का "चेयरमैन" नियुक्त कर दिया। जिससे उनके लिए युवा-वर्ग से सीधे जुड़कर पार्टी की विचारधारा को आगे बढ़ाना आसान होने लगा।
काम वही-तरीका नया
संपादित करेंपंजाब हमेशा से एक कृषि प्रधान राज्य रहा है। इसीलिए जब एम.एस.स्वामीनाथन के दिशा-निर्देश और तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्वर्गीय इंदिरा गाँधी की अगुवाही में 1966-67 के दौरान भारत में हरित-क्रांति की शुरुआत हुई तो पंजाब का नाम इसमें सबसे अग्रणी राज्यों में था। पंजाब की अधिकतर आबादी गाँवों में बसने के कारण युवाओं का एक बड़ा वर्ग इन्ही गाँवों में रहता है। 2008-09 के समय से इन्ही युवाओं के नशे के दलदल में फसनें की ख़बरें आम होने लगीं।
गुरसिमरन सिंह मंड एक तरफ तो शहर में युवाओं को जाग्रत कर रहे थे और दूसरी तरफ गाँव की जड़ों से जुड़े होने के कारण ऐसी ख़बरें उनका मन आहत कर रही थीं। आखिरकार इस पशोपेश में उनके ग्रामीण परिवेश के पारिवारिक विरासत की जीत हुई और उन्होंने फैसला कर लिया कि अगर हमारा गाँव का युवा ही नशे में गर्त हो गया तो इसका असर कई पीढ़ियों तक होगा। गुरसिमरन सिंह मंड नशे के बहुत ज्यादा खिलाफ रहे हैं और उन्होंने खुद भी सारी जिन्दगी कोई नशा तो दूर की बात मांसाहारी भोजन भी नहीं खाया।
इसी बात से प्रेरित होकर गुरसिमरन सिंह मंड ने कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों के सामने इच्छा जाहिर की, कि वो ग्रामीण इलाकों में जाकर युवाओं के लिए कुछ करना चाहते हैं। इस कार्य के लिए कांग्रेस पार्टी का "राजीव गाँधी पंचायत राज संगठन" काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। युवाओं को नशे से दूर करके अपने साथ जोड़ने और ग्रामीण इलाकों में पंचायत राज संगठन को मजबूती प्रदान करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने 2009-10 में "राजीव गाँधी पंचायत राज संगठन" में पंजाब राज्य के महासचिव की जिम्मेदारी गुरसिमरन सिंह मंड के जवान कंधों को सौंप दी।
References
संपादित करें- ↑ "Gursimran Mand Tenders Apology for Cleaning Rajiv Gandhi's Blackened Statue with Turban". Sikh24. January 2, 2019.
https://www.facebook.com/gursimransinghmand
https://www.linkedin.com/in/gursimran-singh-mand-b1a58a137/?originalSubdomain=in[मृत कड़ियाँ]