खिलौना (1970 फ़िल्म)
खिलौना १९७० में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इस फ़िल्म के निर्देशक हैं चंदर वोहरा। इस फ़िल्म को फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में छः श्रेणियों में नामांकित किया गया था और इसने दो श्रेणियों में पुरस्कार जीते।
खिलौना | |
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खिलौना का पोस्टर | |
निर्देशक | चंदर वोहरा |
लेखक | गुलशन नन्दा |
पटकथा | गुलशन नन्दा |
निर्माता | ऍल वी प्रसाद |
अभिनेता |
संजीव कुमार, मुमताज़, जितेन्द्र, शत्रुघन सिन्हा, दुर्गा खोटे, बिपिन गुप्ता, जगदीप |
छायाकार | द्वारका दिवेचा |
संपादक | शिवाजी अवधूत |
संगीतकार | लक्ष्मीकांत प्यारेलाल |
निर्माण कंपनी |
आर के स्टूडियोज़ |
वितरक | प्रसाद प्रोडक्शन्स (प्राइवेट) लिमिटेड |
प्रदर्शन तिथि |
1970 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
संक्षेप
संपादित करेंठाकुर सूरज सिंह एक अमीर आदमी हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी (दुर्गा खोटे) हैं और तीन लड़के हैं, किशोर (रमेश देओ), विजयकमल (संजीव कुमार) और मोहन (जितेन्द्र) और एक अविवाहित बेटी राधा है। किशोर की पत्नी लक्ष्मी और दो बच्चे पप्पू और लाली हैं। किशोर परिवार का कारोबार देखता है, विजयकमल एक प्रसिद्ध कवि है और मोहन शहर में शिक्षा ग्रहण कर रहा है। विजयकमल सपना नाम की लड़की से प्यार करता है लेकिन उनका पड़ोसी बिहारी (शत्रुघन सिन्हा) अपने पैसों के दम पर उससे ज़बरदस्ती शादी कर लेता है और शादी की महफ़िल में ही सपना आत्महत्या कर लेती है। विजयकमल यह सब देखकर पागल हो जाता है।
ठाकुर की पत्नी को विजयकमल को पागलखाने भेजना गवारा नहीं है, इसलिए उसे घर की छत पर एक कमरे में बन्द रखा जाता है। डाक्टरों के यह कहने पर कि अगर उसकी शादी करा दी जाय तो शायद उसकी याददाश्त वापिस आ सकती है, ठाकुर हीराबाई नाम की तवायफ़ के कोठे में जाकर हीराबाई की लड़की चांद (मुमताज़) से अपने बेटे के साथ झूठी शादी रचाने की मिन्नत करता है और बदले में हज़ार रुपये महीना देने की पेशकश करता है। चांद मान जाती है और ठाकुर के घर आकर विजयकमल की देखभाल करने लगती है। विजयकमल की हालत धीरे धीरे सुधरने लगती है लेकिन इस बीच विजयकमल के द्वारा चांद का बलात्कार होता है, बिहारी भी चांद से ज़बरदस्ती करने की कोशिश करता है और मोहन चांद को अपना बनाने के ख़्वाब संजोने लगता है। चांद गर्भवती हो जाती है। इसी बीच यह बात भी उजागर होती है कि चांद हीराबाई की नहीं बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता (नारी सभा के प्रैसिडैन्ट) की बेटी है लेकिन यह बात हीराबाई, सामाजिक कार्यकर्ता और चांद (जो छुपकर सारी बात सुनती है) के अलावा किसी को मालूम नहीं है। एक हादसे में विजयकमल के साथ हाथापायी के दौरान बिहारी छत से गिर कर मर जाता है और विजयकमल की याद्दाश्त वापिस लौट आती है लेकिन अब वो चाँद को पहचानता तक नहीं है। ठाकुर के परिवारवाले अब चाँद से चले जाने को कहते हैं और जब चाँद उनको यह बताती है कि वह विजयकमल के बच्चे की माँ बनने वाली है तो उसे बहुत दुत्कारते हैं। फ़िल्म के अन्त में मोहन आकर सारा मसला सुलझा लेता है और चाँद को ठाकुर के घर में अपना लिया जाता है।
चरित्र
संपादित करेंमुख्य कलाकार
संपादित करें- संजीव कुमार - विजयकमल एस सिंह
- मुमताज़ - चाँद
- जितेन्द्र - मोहन एस सिंह
- शत्रुघन सिन्हा - बिहारी
- दुर्गा खोटे - ठकुराइन सूरज सिंह
- बिपिन गुप्ता - सूरज सिंह
- जगदीप - महेश
दल
संपादित करेंसंगीत
संपादित करेंइस फ़िल्म के गीत लिखे हैं आनन्द बख़्शी ने और संगीत दिया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने।
गीत | गायक | |
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१ | सनम तू बेवफ़ा के नाम से मशहूर हो जाय | लता मंगेशकर |
२ | ख़ुश रहे तू सदा ये दुआ है मेरी | मोहम्मद रफ़ी |
३ | खिलौना जानकर तुम तो | मोहम्मद रफ़ी |
४ | ये नाटक कवि लिख गये कालीदास | मन्ना डे |
५ | रोज़ रोज़ रोज़ी तुमको प्यार करता है | आशा भोंसले, किशोर कुमार |
रोचक तथ्य
संपादित करेंपरिणाम
संपादित करेंबौक्स ऑफिस
संपादित करेंयह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस में हिट थी।
समीक्षाएँ
संपादित करेंनामांकन और पुरस्कार
संपादित करें१८वें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार में इस फ़िल्म को छ: श्रेणियों में नामांकित किया गया था जो कि इस प्रकार है:-
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - संजीव कुमार
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार - मुमताज़
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता पुरस्कार - जगदीप
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ कथा पुरस्कार - गुलशन नन्दा
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार - मोहम्मद रफ़ी
इनमें से इस फ़िल्म ने सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म तथा सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार जीते।