खगोलीय निर्देशांक पद्धति

खगोलीय निर्देशांक पद्धति (celestial coordinate system) ब्रह्माण्ड में किसी भी प्रकार की खगोलीय वस्तु (ग्रह, उपग्रह, तारा, गैलेक्सी, नीहारिका, वग़ैराह) का स्थान निर्धारित करने का एक तरीक़ा है। जहाँ तक मनुष्यों का अनुभव है पूरा ब्रह्माण्ड एक तीन आयामों (डायमेंशन) वाला क्षेत्र है। इसमें एक निर्देशांक पद्धति के ज़रिये किसी भी स्थान को अंकों के साथ बताया जा सकता है।

खगोलीय गोले पर एक तारे के तीन भिन्न खगोलीय निर्देशांक प्रणालियों में माप: भूमध्यीय प्रणाली (नीली), गैलेक्सीय प्रणाली (पीली) और क्रांतिवृत्तीय प्रणाली (लाल)

विभिन्न खगोलीय निर्देशांक

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खगोलशास्त्रियों के समुदाय में कई भिन्न खगोलीय निर्देशांक प्रणालियों का इस्तेमाल होता है।[1] इन सब में एक 'मूल समतल' (fundamental plane) चुना जाता है (जो खगोलीय गोले को दो गोलार्धों में बांटता है) और एक प्रमुख दिशा (primary direction) को चुना जाता है। अब किसी भी वस्तु का स्थान तीन चीज़ों से बताया जा सकता है:

  • वह जिस समतल में है उसका मूल समतल से क्या कोण (ऐंगल) बनता है
  • वह जिस दिशा में है उसका प्रमुख दिशा से क्या कोण बनता है
  • खगोलीय गोले के केन्द्रीय बिंदु से दूरी

सबसे ज़्यादा प्रयोगित प्रणालियाँ नीचे की तालिका में दी गई हैं। हर एक का नाम उसके चुने हुए मूल समतल के नाम पर रखा गया है।

निर्देशांक प्रणाली[2] केन्द्रीय बिंदु मूल समतल ध्रुव प्रमुख दिशा निर्देशांक
क्षितिजीय
(इसे Alt/Az या El/Az भी बुलाया जाता है)
प्रेक्षक (देखने वाला) क्षितिज शिरोबिंदु / अधोबिंदु क्षितिज का उत्तर और दक्षिण ऊँचाई / दिगंश (a या A)
विषुवतीय पृथ्वी का केन्द्र (पृथ्वीकेन्द्रीय) / सूरज का केन्द्र (सूर्यकेन्द्रीय) खगोलीय विषुवत वृत्त खगोलीय ध्रुव बसंत विषुव क्रांति (δ) / रेखांश (α) या घंटे का कोण (h)
क्रांतिवृत्तीय पृथ्वी का केन्द्र (पृथ्वीकेन्द्रीय) / सूरज का केन्द्र (सूर्यकेन्द्रीय) क्रांतिवृत्त क्रांतिवृत्तीय ध्रुव बसंत विषुव क्रांतिवृत्तीय आक्षांश (β) / क्रांतिवृत्तीय रेखांश (λ)
गैलेक्सीय सूरज का केन्द्रीय बिंदु गैलेक्सीय समतल गैलेक्सीय ध्रुव गैलेक्सीय केंद्र गैलेक्सीय आक्षांश (b) / गैलेक्सीय रेखांश (l)
पारगैलेक्सीय पारगैलेक्सीय समतल पारगैलेक्सीय ध्रुव गैलेक्सीय और पारगैलेक्सीय समतलों की कटाव रेखा पारगैलेक्सीय आक्षांश (SGB) / पारगैलेक्सीय रेखांश (SGL)

इन्हें भी देखें

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  1. Astronomy Methods: A Physical Approach to Astronomical Observations, Hale Bradt, Cambridge University Press, 2003, ISBN 978-0-521-53551-9, ... Thus there are an infinite number of possible coordinate systems. Any such system is known as a celestial coordinate system. The system most used by astronomers and navigators makes use of equatorial coordinates ...
  2. Coordinate Systems Archived 2012-08-01 at आर्काइव डॉट टुडे, Steve Majewski, UVa Department of Astronomy, Accessed 19 मार्च 2011

बाहरी कड़ियाँ

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