कासनी (अंग्रेजी: Chicory/चिकोरी , वानस्पतिक नाम : Cichorium intybus) एक बारहमासी पौधा है जो भूमध्य क्षेत्र में पाया जाता है। इसमें नीले रंग के पुष्प लगते हैं। यह एक जड़ी-बूटी है जिसके कई तरह के स्वास्थ्य लाभ होते हैं। चिकोरी की जड़ को यूरोप में आमतौर पर कॉफी के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाता है। लेकिन इसमें कैफीन नहीं होता है और इसका स्वाद चॉकलेट की तरह होता है। यदि इसे कॉफी के साथ प्रयोग किया जाए तो यह कैफीन के प्रभावों को रोकता है।[1]

कासनी

भारत में चिकोरी उत्तर-पश्चिम में 6000 फीट की ऊंचाई और उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, कश्मीर में पाया जाता है। मुख्य रूप से कासनी की जड़ को औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। कासनी का सेवन भूख की कमी, पेट में परेशानी, कब्ज, दिल की तेज धड़कन और कई अन्य स्थिति के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

कासनी एक बहुपयोगी फसल है। इसका इस्तेमाल हरे चारे के अलावा औषधीय रूप में कैंसर जैसी बिमारी में किया जाता है और खाने में इसका इस्तेमाल कॉफ़ी के साथ किया जाता है। कॉफ़ी में इसकी जड़ों को भुनकर मिलाया जाता है जिससे काफी का स्वाद बदल जाता है। इसकी जड़ मूली के जैसा दिखाई देती है। कासनी के पौधे पर नीले रंग के फूल दिखाई देते हैं जिनसे इसका बीज तैयार होता है। इसके बीज छोटे, हल्के और और भूरे सफेद दिखाई देते हैं।

कासनी की खेती नगदी फसल के रूप की जाती है। कासनी की खेती से फसल के रूप में इसके कंद और दाने दोनों उपज के रूप में प्राप्त होते हैं। भारत में ज्यादातर जगहों पर लोग इसे हरे चारे की फसल के रूप में अधिक उगाते हैं. क्योंकि लोगों को इसकी खेती के उपयोग के बारें में अधिक जानकारी नही है। इसकी रबी की फसलों के साथ की जाती है। इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण दोनों जलवायु उपयुक्त होती है। इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है। कासनी की खेती के लिए सर्दी का मौसम सबसे उपयुक्त होता है।[2]

  1. "कासनी के लाभ और हानियाँ". मूल से 18 फ़रवरी 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 मई 2020.
  2. कासनी की खेती कैसे करें?

बाहरी कड़ियाँ

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