काशीनाथ त्र्यंबक तेलंग
काशीनाथ त्र्यंबक तेलंग (20 अगस्त 1850 - 01 सितंबर, 1893) भारत के एक न्यायधीश एवं भारतविद थे।
![](http://up.wiki.x.io/wikipedia/commons/thumb/5/54/Mumbai_03-2016_40_Bombay_High_Court.jpg/220px-Mumbai_03-2016_40_Bombay_High_Court.jpg)
परिचय
संपादित करें19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जिन विभूतियों ने देशाभिमान से प्रेरित होकर बंबई प्रांत में सार्वजनिक आंदोलनों को उत्साह से प्रारंभ कर जनजागरण में योग दिया उनमें श्री तेलंग भी एक थे। इनमें स्वाभाविक प्रतिभा, स्वाध्यायशीलता, उत्साहसंपन्नता और लगन थी। विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में अध्ययनकाल के समय सर्वाधिक अंक पाने के कारण आपको अनेक छात्रवृत्तियाँ तथा पदक प्राप्त हुए। 1867-1872 तक आप एलफिंस्टन कालेज के फेलो रहे और 1892 में आप बंबई विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी नियुक्त हुए। बी ए की परीक्षाओं का व्यापक पाठ्यक्रम आपने बनाया था और देश की राजनीतिक जागृति की अभिवृद्धि करने के लिये आपने पाठ्यक्रम में इतिहास एवं अर्थशास्त्र को अनिवार्य विषय बना दिया। श्री तेलंग प्रकांड पंडित थे और प्राच्य भाषाग्रंथों के संशोधक भी। आपका अध्ययन व्यापक था और आप इतिहास, राजनीति, दर्शन, काव्य आदि सभी विषयों में पारंगत थे। मराठी, अंग्रेजी, संस्कृत आदि भाषा के साहित्य के साथ-साथ आपका फ्रेंच और जर्मन भाषा का भी ज्ञान बहुत उच्च कोटि का था। आप बंबई हाईकोर्ट के एक नामांकित प्रधान न्यायाधीश थे। आपकी यह उक्ति आपके जीवन के उद्देश्य की द्योतक है -- ""मनुष्य को अपने उदरनिर्वाह के साधन के लिये कुछ उद्योग करना चाहिए -- यही उसका कर्तव्य है -- नहीं तो उसका जीवन निरर्थक है""। आपने इस उक्ति को अपने जीवन में चरितार्थ किया।
आपने प्राचीन साहित्य का अध्ययन बहुत गंभीरता से किया था। आपने अंग्रेजी में अनेक लेख लिखे हैं, जिनमें पाश्चात्य पडितों के उपस्थित किए हुए कुछ महत्वपूर्ण तर्कों के मुँहतोड़ उत्तर हैं। प्राचीन ग्रंथ और ग्रंथकारों के कालों को निश्चित करने तथा शिलालेख, ताम्रपट आदि को अनूदित करने का भी महत्वपूर्ण कर्य आपने किया है। आपका रामायण पर लिखा लेख तथा भगवतद्गीता का गद्य और पद्य में किया हुआ अनुवाद प्रसिद्ध है। 1892 में मराठों के धर्म एवं समाज संबंधी विचारों पर आपने एक सुंदर लेख लिखा जो धर्म "मराठों का उत्कर्ष" नाम की पुस्तक के अंतिम भाग में छपा। आपको मातृभाषा का भी अभिमान था। अत: कुछ ग्रंथ आपने भाषा में भी लिखे हैं। आपकी लेखनशैली में विचारों की परिपूर्णता तथा ज्ञान की प्रगल्भता है। आपकी भाषणशैली भी प्रभावोत्पादक और असाधारण कोटि की थी। उसमें माधुर्य, तर्क एवं निर्भीकता का समन्वय था। स्त्रियों के उन्नयन के लिये भी आप प्रयत्नशील थे। स्त्रीशिक्षा, विधवा विवाह आदि के पक्षपाती थे। विवाह की स्वीकृत आयु 12 वर्ष की हो, इस बिल के अंतर्भूत तत्वों पर कानून तथा धर्मशास्त्र की दृष्टि से विचार करते हुए आपने बिल की अनुकूलता को सिद्ध किया है। इसी प्रकार आपने बड़ी निर्भीकता से मुक्त व्यापार, संरक्षण, सरकार की दुर्भिक्ष नीति, सरकार के अन्यायमूलक विधेयक आदि प्रश्नों पर विचार प्रकट किए हैं।
राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक अधिवेशन में देश के जो 73 जननायक उपस्थित थे, उनमें तेलंग एक थे। अल्पकाल तक आपने इसकी सेवा की। प्रस्तावों और भाषणों द्वारा इसके कार्यक्रम को निश्चित मार्ग दिखलाया। भारतीय कांग्रेस की पूर्वगामी संस्था बांबे प्रेसिडेंसी असोसिएशन थी, उसकी स्थापना में भी आपने योग दिया। साहित्य, राष्ट्र और समाज की सेवा करते हुए 43 वर्ष की अल्पायु में आपकी मृत्यु हुई।