कालमापी
कालमापी एक विशेष प्रकार की घड़ी है जो बहुत सच्चा समय बताती है। इसका समय ग्रिनिच के स्थानीय समय से मिलाकर रखा जाता है, जिससे जहाज पर ग्रिनिच समय तुरंत जाना जा सकता है। सेक्सटैंट से सूर्य की स्थिति नापकर जलयान जिस स्थान पर है वहाँ का स्थानीय समय ज्ञात किया जा सकता है। स्थानीय समय और ग्रिनिच समय के अंतर से देशांतर की गणना की जा सकती है। देशांतरों में एक अंश का अंत पड़ने पर स्थानीय समयों में चार मिनट का अंतर पड़ता है।
परिचय
संपादित करेंदेखने में कालमापी एक साधारण बड़ी घड़ी के समान होता है। यह एक चक्र से दो धुरीधरों द्वारा लटका रहता है। चक्र स्वयं दूसरे दो धुरीधरो द्वारा लटका रहता है। धुरीधरों की जोड़ियाँ एक दूसरी से समकोण बनाती हैं। कालमापी इस प्रकार इसलिए लटकाया जाता है कि जहाज के हिलने डोलने पर भी वह सर्वदा क्षैतिज रहे। सर्वदा क्षैतिज स्थिति में रहने के कालमापी अधिक सच्चा समय बाताता है। कालमापी की बालकमानी साधारण घड़ी की तरह सर्पिल न होकर कुंतलाकार (helical) होती है। इसका मालमापी विमोचक (escapement) भी साधारण घड़ी से भिन्न प्रकार का होता है। (विमोचक उस युक्ति को कहते हैं जिसके कारण घड़ी का चक्रसमूह लगातार न चलकर रुक रुककर चलता है और टिक-टिक की ध्वनि उत्पन्न हाती है। इसी के द्वारा प्रधान कमानी की ऊर्जा बालकमानी में जाती है जिससे वह रुकने नहीं पाती)। देशांतर ज्ञात करने के लिए सच्ची घड़ी बनाने का पहला प्रयास विख्यात वैज्ञानिक क्रिश्चियन हाइगेन्स ने १६६२-७० में किया था, पर उनकी बनाई घड़ियों में ताप के घटने बढ़ने तथा जहाज के हिने डोलने के कारण बहुत अंतर पड़ जाता था और समय अधिक सचाई से नहीं नापा जा सकता था। १७१४ में ब्रिटिश सरकार ने ऐसा कालमापी बनाने के लिए, जो प्रतिदिन तीन सेकंड से अधिक तेज सुस्त न हो, २०,००० पाउंड (लगभग ढाई लाख रुपए) के पुरस्कार की घोषणा की। यह पुरस्कार जॉन हैरिसन ने जीता जिसने १७२९-६० में चार कालमापी बनाए, परंतु हैरिसन को कालमापी बनाने में मूल्य बहुत अधिक पड़ता था। पेरिस के पियर लरूआ ने १७६५ में और इंग्लैंड के जॉन आर्नोल्ड और टामस अर्नशा ने १७८५ में जो कालमापी बनाए वे आधुनिक यंत्रों से बहुत कुछ मिलते-जुलते थे। आधुनिक कालमापी का प्रयोग ठीक से करने पर वह बहुत ही सच्चा समय बताता है। दिन भर में एक सेकंड से अधिक अंतर नहीं पड़ने पाता। इस सूक्ष्म अंतर के कारण महीने भर चलने के बाद भी जहाज की गणना की स्थिति और सच्ची स्थिति में आठ मील से कम ही अंतर पड़ने पाता है। प्राचीन काल में सच्चे कालमापियों का महत्व बहुत अधिक था, क्योंकि इनके अभाव में लंबी यात्रा करना असंभव होता था। परंतु अब रेडियो संकेतों द्वारा सच्चे ग्रिनिच समय का पता दिन में कई बार मिलता रहता है और कालमापियों का बहुत सच्चा रहना पहले जैसा महत्वपूर्ण नहीं रह गया है।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- National Maritime Museum, Greenwich
- Henri MOTEL n°258 Chronomètre de Marine 40 heures
- GUB Marine-Chronometer caliber 100[मृत कड़ियाँ] - Presentation of marine chronometers of "Glashütter Uhrenbetriebe VEB" with picture and explanation (German) Link to H1 animation for iPad
- [1] link to H1 animation for iPhone
- [2]