औद्योगिक उत्पादन सूचकांक
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औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (अंग्रेजी:इंडेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन, लघु: आईआईपी) किसी अर्थ व्यवस्था के औद्योगिक क्षेत्र में किसी खास अवधि में उत्पादन के स्थिति के बारे में जानकारी देता है। भारत में हर माह इस सूचकांक के आंकड़े जारी किए जाते हैं। ये आंकड़े आधार वर्ष के मुकाबले उत्पादन में बढ़ोतरी या कमी के संकेत देते हैं। भारत में आईआईपी की तुलना के लिए वर्ष १९९३-९४ को आधार वर्ष माना गया है।[1] ये सूचकांक उद्योग क्षेत्र में हो रही बढ़ोतरी या कमी को बताने का सबसे सरल तरीका है।[2]
गणना
किसी माह का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक उस महीने के छः सप्ताह के भीतर जारी किया जाता है। इस सूचकांक के अनुमान के लिए १५ संस्थाओं से आंकड़े जुटाए जाते हैं।[2] इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन यानि डीआईआईपी),
- भारतीय खनन ब्यूरो (इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस),
- केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑर्गनाइजेशन) और
- केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण (सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी)
यह आवश्यक नहीं है कि किसी माह विशेष का सूचकांक तैयार करते समय उत्पादन से संबंधित सभी आंकड़े उपलब्ध हों, इसलिए पहले अस्थाई सूचकांक तैयार करने के बाद जारी कर दिया जाता है। उसके बाद के महीनों में इसमें प्रायः दो बार संशोधन किया जाता है।[1][2]
आरंभ
सबसे पहले १९३७ को आधार वर्ष मानते हुई औद्योगिक उत्पादन सूचकांक तैयार किया गया था। इसमें १५ उद्योगों को सम्मिलित किया गया था। तब से वर्तमान तक इसमें सात संशोधन हुए हैं। इन संशोधनों द्वारा आधार वर्ष को १९४६, १९५१, १९५६, १९६०, १९७०, १९८०-८१ और अंत में १९९३-९४ कर दिया गया। वर्तमान में जो मूल्य सूचकांक चल रहा है उसका आधार वर्ष १९९३-९४ है। वर्तमान आधार वर्ष के तहत ५४३ सामग्रियों को इस सूचकांक में शामिल किया गया है। इस सूचकांक के अंतर्गत इन सामग्रियों के आंकड़ों को सटीक तरीके से संग्रहित करने के लिए विनिर्माण क्षेत्र की ४७८ सामग्रियों को एक साथ शामिल करने का प्रस्ताव एजेंसियों द्वारा दिया गया है।[2] सूचकांक को पूर्ण प्रासंगिक बनाए रखने के लिए आधार वर्ष और इसमें सम्मिलित उत्पादों में बदलाव किया गया है। सांख्यिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी किए गए ताजा मानकों के अनुसार किसी उत्पाद के इसमें सम्मिलित किए जाने के लिए प्रमुख आवश्यकता यह होती है कि वस्तु के उत्पादन के स्तर पर उसके उत्पादन का कुल मूल्य कम से कम ८० करोड़ रुपए होना चाहिए। इसके अलावा यह भी आवश्यक है कि वस्तु के उत्पादन के मासिक आंकड़े लगातार उपलब्ध होने चाहिए। सूचकांक में सम्मिलित वस्तुओं को तीन समूहों-खनन, उत्पादन और विद्युत में बांटा जाता है। फिर इन्हें उप-श्रेणियों जैसे मूल उत्पाद, ऊंजीगत माल, माध्यमिक माल, उपभोक्ता-उपयोगी माल व उपभोक्ता नॉन-ड्यूरेबल्स में बांटा जाता है।[1]
तरीका
भारीय अंकगणितीय माध्य की विधि द्वारा सामग्रियों के भारों को आवंटित कर दिया जाता है। लेसपियर्स सूत्र के तहत आधार वर्ष के सापेक्ष इन सामग्रियों के भारों की गणना में समय समय पर वैल्यू ऐड किया जाता है। इसके लिये भारित गणितीय मीन का प्रयोग होता है।
जहां:
- I सूचकांक है,
- Ri- माह की iवीं टर्म का सापेक्ष उत्पादन एवं
- Wi उसे आवंटित किया गया भार है।
भारत में २००९ के अगस्त माह में औद्योगिक उत्पादन में १०.४ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जुलाई में औद्योगिक उत्पादन में ७.२ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। पिछले दो वर्षों में अगस्त में औद्योगिक उत्पादन में सर्वाधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस बढ़ोतरी में कंज्यूमर ड्यूरेबल और कैपिटल गुड्स क्षेत्रों का योगदान रहा है।
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ क्या है आईआईपी? और क्यों है इसकी चर्चा Archived 2009-12-20 at the वेबैक मशीन। इकोनॉमिक टाइम्स। १९ अक्टूबर २००९
- ↑ अ आ इ ई औद्योगिक क्षेत्रों के प्रदर्शन का पैमाना बताता औद्योगिक उत्पादन सूचकांक Archived 2016-03-06 at the वेबैक मशीन। बिज़्नेस स्टैन्डर्ड। १३ मई २००८। कुमार नरोत्तम