भारतीय राज्योँ में उड़ीसा एक समृद्ध सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत है,कारण अतीत में विभिन्न शासकों के शासनकाल के दौरान ओड़िशा में कला और पारंपरिक हस्तशिल्प, चित्रकला और नक्काशी, नृत्य और संगीत के रूपों में आज एक कलात्मक विविधता देने के लिए कई परिवर्तन हुए।

नृत्य और संगीत

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ओड़िसी नृत्य विशेष रूप से अपने आप में इतिहास में कई शैलियों के विलय को प्रदर्शित करता है। ओड़िसी भारत के आठ शास्त्रीय नृत्य रूपों में से एक है।

 
ओड़िसी नृत्‍य करते हुए एक नृत्य मंडली

ओड़िसी परंपरा तीन स्कूलों में ही अस्तित्व है: महरी, नर्तकी, और गोटीपूअ।

  • महरी उड़िया देवदासियों या मंदिर लड़कियां थी।
  • गोटीपूअ लड़कियों के रूप में कपड़े पहने युवा लड़के थे और उन्हें महरी द्वारा नृत्य सिखाया जाता था।
  • नर्तकी नृत्य राज दरबार में होता था।[1]

हस्तशिल्प

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ओड़िशा में मुख्य हस्तशिल्प पिपली काम, पीतल और बेल धातु, चांदी के महीन और पत्थर नक्काशी शामिल हैं।[1]

 
कोणार्क का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर

पिपली अपनी कलाकृति के लिए जाना जाता है। पुरी में जगन्नाथ मंदिर, भूबनेस्वर में लिंगराज मंदिर , मुक्तेस्वर ,राजारानी और अनेक मंदिर अपने पत्थर की कलाकृति के लिए प्रसिद्ध है। कटक अपने चांदी के तारकशी काम, ताड़ का पट चित्र , नीलगिरी (बालासोर) प्रसिद्ध पत्थर के बर्तन और विभिन्न आदिवासी प्रभावित संस्कृतियों के लिए जाना जाता है। कोणार्क में सूर्य मंदिर अपनी स्थापत्य वैभव के लिए प्रसिद्ध है, जबकि संबलपुरी कपड़ा विशेष रूप से संबलपुरी साड़ी, अपनी कलात्मक भव्यता में इसके बराबर होती है। [2]

ओड़िशा में उपलब्ध हथकरघा साड़िया चार प्रमुख प्रकार के होते हैं ,जैसे;

  • इकत,
  • बंधा,
  • बोमकाइ
  • पसपल्ली

ओडिशा में, कला के रूप में बालू कला अद्वितीय प्रकार पुरी में विकसित की है।

बाहरी कड़ियाँ

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  1. "Arts and crafts". Odisha Tourism. मूल से 9 जुलाई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि March 31, 2009.
  2. "Orissa Painting". Travel Mati.com. मूल से 3 मार्च 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि March 31, 2009.